मैं हर पोस्ट यह सोच-समझ के साथ लिखती हूं कि उस पर एक सार्थक बहस की शुरूआत हो सके। इस माध्यम से मैं अपने पाठकों की सोच और विचारधारा को जान सकूं कि फलां मुद्दे पर उनका मत क्या है। क्योंकि मेरे और उनके बीच यही संवाद का सबसे बेहतर और मजबूत माध्यम है। अक्सर कुछ मुद्दों पर मुझे ऐसी प्रतिक्रियाएं भी मिलती हैं, जिन्हें पढ़कर यह लगता है कि वे लोग बहस से डरते हैं। असहमियां उन्हें पसंद नहीं।इस पर डा. अनुराग का कहना है:
लेकिन संवाद प्रक्रिया दोनों ओर से होनी चाहिए ...ओर भाषा के संतुलन को बनाए रखते हुए ..उससे भी महतवपूर्ण ये की आप को भी दूसरो को पढ़ना चाहिए ...ताकि ऐसा न लगे की आप सिर्फ़ अपने विचारों पर बहस करना चाहती है...दूसरे के विचारों पर नही.
बहस के अलग-अलग मिजाज होते हैं। एक अंदाज अजित वडनेरकर जी का है। अजित की मिस यूनिवर्स पर कात्यायन जी ने कुछ सवाल उठाये। अजित जी ने उसका संतुलित जबाब लिखा। शीर्षक जानलेवा रखा-नाचीज़ हूं...जौहर क्या दिखाऊंगा ?
यह देखना मजेदार लगता है कि भाई लोग जो पोस्ट लिखते हैं शुरुआत उसके उसके धुर-उलट अंदाज में करते हैं। अजित जी अपने जौहर की पारी की शुरुआत नाचीज हूं ..जौहर क्या दिखलाऊंगा से करते हैं। उधर डा.अमरकुमार टाइम खोटीकार लम्बी पोस्ट लिखते हैं यह कहते हुये - अभी टैम नहीं शिव भाई
देखा गया है कि डा.अमर कुमार और भाई शिवकुमार को अनिद्रा का रोग लग गया है। रात में तीन-तीन बजे उठ के पोस्ट लिखते हैं। बाललीला का कापीराइट सूरदास जी के पास है इसलिये हम मजबूर हैं इस लीला का वर्णन करने में लेकिन ज्ञानजी जरूर अपने चेले और भाई की नोक-झोंक देखकर मुस्करा रहे होंगे। वे जो न करायें।
फ़िलहाल तो वे इस बाललीला से असंपृक्त जीतेन्द्र की जयगाथा लिख रहे हैं। आलोक पुराणिक नार्मलत्व की तरफ़ लउट आये।
अब बताइये एक तरफ़ ये वीर ब्लागर हैं जो रात में उठ-उठ के पोस्ट ठेल रहे हैं और दूसरी तरफ़ ममता जी हैं जो चाहते हुये भी नहीं लिख पा रही हैं।
सुजाताजी सवाल-जबाब करती हैं:
सवाल - पुरुषों को कब लगता है कि स्त्रियाँ अतार्किक हैं ?
जवाब - जब कोई स्त्री उनसे सहमत नही होती !
वैसे यह भी देखा गया है कि तार्किक-अतार्किक का यह सिद्धांत हर जगह लागू होता है। एक को दूसरा तब ही अतार्किक लगता है जब दूसरा उससे असहमत होता है। असहमत हो अतार्किक बनो।
सीमा जी ने लिखा
दीवारों दर के जरोखे (झरोखे?)मे कोई दबिश हुई ...
यूँ लगा मौत की रफ़्तार दबे पावँ आने लगी...
उनकी इस कविता पर टिप्पणी करते हुये मीत ने लिखा:
सच कहा है मौत की खामोशी तो आयी और मेरे भाई को ले गई...
१३-अक्टूबर को एक प्लेन ब्लास्ट में उसकी मौत हो गई... वो indian navy में इंजिनियर था...
इस वक्त में बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा हूँ...
मैं अपनी तरफ़ से और अपने तमाम साथियों की तरफ़ से मीत और उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं। ईश्वर उनको और उनके परिवार को इस अपार दुख को सहने की क्षमता प्रदान करे।
बांदा में हुये केदार सम्मान समारोह की रपट यहां देखिये।
चिट्ठाचर्चा में फ़िलहाल इत्ताही। बकिया एकलाइना और अन्य हलचल जल्द ही दिखेगी। परेशान न हों। बजरंग बली का नाम लेकर हर परेशानी की नली की वाट लगा दें।
कल विवेक सिंह के जुड़ने से चर्चा मंडली को एक और नया आयाम मिला। विवेक अपनी ब्लागचर्चा जब मन आयेगा करते रहेंगे। कोई भरोसा नहीं कि नियमित भी करने लगें। यह आपकी चाहत पर निर्भर करेगा कि वे मजबूर हो जायें नियमित होने के लिये।
.पहली टिप्पणी करने से बच रहे थे,
वरना ’कुछ तो लोग कहेंगे' वाले कयास लगाते फिरेंगे
कि कोनो मिली भगत है... ई का समीकरण बन रहा है आदि आदि इत्यादि
अब कोई पहले आगे आता नहीं दिख रहा है
सो 'बेकार की बातों में बिताई रैना'
तो अब टीप भी दिया जाये, लोगों का तो 'काम है कहना'
राइट बंधु ने हवाई ज़हाज़ उड़ाया, साधो.. साधो...
ब्लागर बंधुओं ने जो चाहा वह उड़ाया, बानगी है... अरे साक्षात बानगिये तो टीप रहा है, ईहाँ
सो, मुझ निट्ठल्ले से भी दो ताबड़तोड़ पोस्ट लिखवाया
बोलो, हे माधो... माधो... माधो...
प्रेमचंद जी ने बूढ़ी काकी को देखकर लिखा था कि; "बुढ़ापा बचपन का पुनरागमन होता है." यही बात वे बूढे काका को देखकर भी लिख सकते थे. लेकिन शायद 'लेडीज फर्स्ट' के चक्कर में नहीं लिख सके. सूरदास के पास बचपन वाली बाललीला का कॉपीराईट्स था. आप बुढ़ापे वाली बाललीला का कॉपीराईट्स रजिस्टर करवा लीजिये और इस लीला का वर्णन कर ही डालिए.....:-)
जवाब देंहटाएंएक सफाई देनी है. मैं पोस्ट रात के तीन बजे नहीं लिखता. कभी नहीं. मुझे अनिद्रा की शिकायत भी नहीं. तीन बजे तो 'इन्द्र' पोस्ट लिखते हैं और मैंने केवल कंप्यूटर टेबल के सामने पान मसाला और ज़र्दा का मिश्रण बनाते इन्द्र बाबू के बारे में लिखा था. केवल उनका आईपी ऐड्रेश नहीं पता था नहीं तो वो भी दे देता. कम से कम ये गलतफहमी नहीं होती......:-)
चिट्ठाचर्चा बहुत शानदार रही. हमेशा की तरह.
अरे वाह! आज लगता है डॉक्टर साहब 'शालीन' साबुन से नहाकर आए हैं. राईट बन्धुवों के हवाई जहाज उड़ाने का जिक्र करने के बाद ये नहीं लिखा कि 'रांग बन्धुवों' ने जो चाहा वह उड़वाया.
जवाब देंहटाएंआई सैल्यूट योर 'स्पिरिट' (एंड रजनीगंधा विद ज़र्दा), डॉक्टर साहेब.
आज उत्ता मज़ा नही आया अनूप भाई :-(
जवाब देंहटाएंएक लाइना मिस कर रहे हैं इस में बाकी सब अच्छा है
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रही चिठ्ठा चर्चा और अब एक लाईना का इंतजार है ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंभगवान मीत जी को और उनके परिवार को शक्ति प्रदान करे ।
जवाब देंहटाएंचर्चा हमेशा की तरह बढ़िया..और जानकारी मय पठनीय. किंतु "एक लाइना" नहीं देखने से यह अनुरागी मन पीड़ित होकर सोचने लगा कि वही तो एक आसरा था हमारे चिट्ठे की कभी-कभार चर्चा का. कोई बात नहीं अनूप जी, प्रतीक्षारत....! हम तो आश्वासनों पर कायम रहने वालों को सम्मान से देखते हैं.
जवाब देंहटाएंसैल्यूट देने वाले सुन..
जवाब देंहटाएंसल्यूट हम लेते नहीं, नमस्कार चल जायेगा
स्पिरिट से परहेज़ है, सो सैल्यूटवा आगे सरका दिया
बाबा ने स्वीकार किया, रज़नी ने गंधाने वाला मुँह बना कर मुँह फेर लिया
पता नहीं, रजनी ने ऎसा क्यों किया ?
अ.ब. पुराणिक जी की आज की पोस्ट बहुत दमदार है। उसकी टक्कर की टिप्पणी न हो पाई!
जवाब देंहटाएंहमें तो मज़े आ रहे थे कि सतीश भाई की एक लाइन पढ़ कर दहल गए....उन्हें मज़ा कैसे नहीं आया ....?
जवाब देंहटाएं@ डॉक्टर अमर कुमार
जवाब देंहटाएंडॉक्टर साहब, आपको सैल्यूट से परहेज है! अच्छा, एक बात बताईये. आप जो चीज देते हैं, उसे लेते क्यों नहीं जी? अभी दस दिन पहले आप हमारी तथाकथित स्पिरिट को सैल्यूट देकर गए थे. आज हम आपकी 'स्पिरिट' को सैल्यूट दे रहे हैं तो आप कह रहे हैं कि केवल नमस्कार लेते हैं. अब देखिये, ये बात ठीक नहीं. जो आप देते हैं, उसे लेने का समय आता है तो मना क्यों कर देते हैं?
रजनी का मुंह गंधाता भी है? फिर भी आप रजनी को मुंह क्यों लगाना चाहते हैं? चलिए बाबा ने तो स्वीकार किया न. ये ठीक हुआ आपके लिए. बाबा भी बाय बाय कर देते तो और गड़बड़ हो जाता.
"आपका क्या कहना है?"
जवाब देंहटाएंहमारा कहना यह है कि
रोज के समान आज
सौ कोस चल कर आये
आपके द्वारे,
पढने के लिये एक
विस्तृत चर्चा.
पकडा दिया आपने,
एक जरा सा
झुनझुना!!!
इस बार तो आपने बढिया लक्षणा चुनी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही चर्चा... थोडी छोटी जरूर है इस बार.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन चर्चा...अभी तो दिन में और आयेगी एक लाईना. उसका भी इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंबाकिया तो मुहाने पर बैठे सारा खेल देख ही रहे हैं. :)
जारी रहिये.
" लेकिन संवाद प्रक्रिया दोनों ओर से होनी चाहिए ...ओर भाषा के संतुलन को बनाए रखते हुए ..उससे भी महतवपूर्ण ये की आप को भी दूसरो को पढ़ना चाहिए ...ताकि ऐसा न लगे की आप सिर्फ़ अपने विचारों पर बहस करना चाहती है...दूसरे के विचारों पर नही."
जवाब देंहटाएंबहुत सही यह जिसके लिए लिखा गया है केवल उसी पर ही नही सभी अपने गिरेबाँ में झांके !
हम भी इधर कनफुजिया गए है ,किससे असहमत हो ?ओर किससे नही ?कुछ लोग हमेशा असहमत रहते है....उनके पास कई तरह की पर्चिया बनी रहती है......कोई भी बात हो...असहमति की पर्ची खिसका देते है......असहमत होना इन दिनों फैशन में है...बाटला काण्ड में भी असहमति दर्ज कराने वालो की होड़ लगी है....आज अरुंधती राय अपनी पर्ची लेकर खड़ी थी....अभी कुछ दिन पहले एक साहब ने अपने ब्लॉग पे लिखा था की भाई कोई सहमति की भी बात करो?पर लगता है कोई उनसे सहमत नही हुआ ....
जवाब देंहटाएंअब इतने सारे बुद्दिजीवी इकट्ठे हो ओर सहमत हो जाये एक बात पर तो फ़िर बुद्दिजीवी कैसे ठहरे ?हम भी सोच रहे है कई सारी पर्चिया बना ले ......कोई हमें बुद्दिजीवी नही गिनता .....
मीत जी के भाई साहब के निधन का पढकर बेहद अफसोस हुआ :(
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