मैं चाहता था हवा का रूख मोड़ दूँ, भीड़ के साथ-साथ चलने की मंशा छोड़ दूँ, जोश में आना और होश गँवाना छोड़ दूँ। फिर एक दिन मुझे दिखे वो छोटे छोटे बच्चे, एक साथ झुंड में हँसते खेलते, कल की चिंता से बेखबर, एक के ऊपर एक गिरते हुए। कुछ बच्चे फिर और आये, अब वो झुंड से भीड़ बन गये। तभी एक मीठी सी आवाज आयी - पा पा, मैं जैसे नींद से जागा, दो नन्हें नन्हें प्यारे हाथ मुझे ईशारे से बुला रहे थे। मैं जोश-होश-आक्रोश तीनों वहीं फेंक बच्चों के साथ बच्चा बनने चल दिया ये गुनगुनाते हुए - अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं, रूख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।
चलिये आज की चर्चा शुरू करते हैं बेरोजगारी के मुद्दे के साथ, प्रेमरंजन बेरोजगारी पर लिखते हैं, अरे जेट एअरलाईन के कर्मचारियों की नही बल्कि मुर्गे तीतर बटेर की, हमें शिकायत है उन्होंने कबूतरों को क्यों छोड़ दिया। आखिर कबूतरों के हाथ से भी तो चिट्ठी बाँटने का काम छुट गया ना। बरहाल साहित्य में डब्ल्यू डब्ल्यू एफ पाने की व्यथा-कथा बाँचिये, पढ़कर मजा ही आयेगा -
वे बुढ़ा भी गए थे और बूढ़ों को इस समाज में जिस दृष्टि से देखा जाता है उसे उपेक्षा की दृष्टि कहते है। अपने उपर विशिष्ट दृष्टि डलवाने के लिए लहू लुहान तक हो जाने वाले मुर्गे, तीतर, बटेर आदि कैसे इस उपेक्षा-दृष्टि को सह सकते हैं।जब बेरोजगारी की बात निकली तो दिनेशजी आकर बोलते हैं, खुशखबरी खुशखबरी सबको नौकरी मिल गयी। इस खुशी की खबर में लेकिन प्रतिक्रियायें लंबी लंबी आयीं खासकर उनकी तरफ से भी जो आभार कह के फुर्र हो लेते हैं (समीरजी जरा इस ढीठ चर्चाकार की ढीठता तो देखिये ;) )।
हम जब कविता लिखते हैं तो कोई हमारे द्वारे आकर पढ़ता नही इसलिये जैसे नेता, पुलिस, मीडिया सभी कुर्सी का फायदा उठाते हुए अपना काम निकालते हैं तो क्यों ना चर्चा का फायदा उठाते हुए हम भी दो लाईना सुना डालें, मुलाहयजा फरमायें -
इधर-उधर जब शहर-गाँव में, इनवेस्टर भरमायेगाएक कहावत है, सांप को कितना ही दूध क्यों ना पिला लो वो काटेगा ही। इक्कीसवीं सदी में भी ऐसी बातें सुन साँप उक्ता गये और उन्होंने तय किया कि वो दूध पीना छोड़ सब्जी खाना शुरू करेंगे। यकीन नही आ रहा तो यहाँ देखिये हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या।
एक मदारी आकर के, बंदर की कथा सुनायेगा
फिर एक दिन वो वक्त भी आया, इनवेस्टर-जनता घबराया
तभी अचानक मदारी आया, अथ श्री बंदर कथा सुनाया
वैसे हम अपनी ही पोस्ट अपनी ही चर्चा में करना पसंद नही करते लेकिन जब चर्चा का दुरूपयोग अपनी चार लाईना सुना कर ही लिया है तो क्यों ना ये काम की जानकारी भी बता ही डालें, शायद किसी के काम आ जाये। हम यहाँ उन साईटस के बारे में बता रहे हैं जहाँ से आप अपने ब्लोग के लिये अच्छे अच्छे ब्लोगर और वर्डप्रेस के टेंपलेट फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं।
मानोशी पढ़ाती हैं बच्चों को, इस बार बता रही हैं कि कैसे आपका बच्चा अच्छा लिखने की तरफ कदम बढ़ा सकता है लेकिन उनकी कही एक बात बच्चे, ब्लोगरस, लेखक यानि यू मी और हम पर भी लागू होती है -
लिखता कोई तभी अच्छा है जब वो पढ़ता है।अब एक गाना, एक रात में दो दो चांद खिले एक धरती में एक रेडियो एफ एम में (करवा चौथ व्रत धारियों के फायदे का सौदा जानिये)। धरती का चांद घर से निकल के देखिये और एफ एम का यहाँ सुनिये।
पुराने दौर में एक से एक समाज सुधारक हुए हैं, उनमें से ही एक हैं सर सैयद अहमद खां साहब को याद कर रहे हैं पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खाँ मार्फत सौरभ, उनके जन्मदिन १७ अक्टूबर के अवसर पर -
उन्होंने 1870 में तहजीबुल अखलाक नाम से समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। इसका उद्देश्य सामाजिक तथा पंथिक सुधार था। अगले छह वर्षो में इस पत्र में 222 लेख छपे, जिनमें 122 लेख सर सैयद ने स्वयं लिखे थे। इसके मुखपृष्ठ पर अरबी भाषा में एक पंक्ति छपी रहती थी, जिसका अर्थ है कि अपने राष्ट्र से प्रेम करना पंथिक आस्था का अनिवार्य तत्व है। तहजीबुल अखलाक के लेखों के पश्चात कट्टर पंथिक वर्ग की ओर से सर सैयद का विरोध और अधिक उग्र होता चला गया। सर सैयद को काफिर बताते हुए उनके खिलाफ साठ फतवे जारी किए गए।अब एक बूरी खबर, अरे हमारे लिये नही उनके लिये। तू हिन्दू बनेगा, ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा, हमने इस गीत के बोल सिर्फ गुनगुनाये, श्रीमती रंजन राठौर ने इनका अर्थ समझा भी। हमने दोस्ती फिल्म देखकर उसकी अच्छी समीक्षा लिखी इन्होंने दोस्ती सही मायने में निभायी, रंजन राठौर को हमारा नमन।
ऐसे दौर में जब देश साम्प्रदायिकता की भंवरों में फंसता निकलता नज़र आ रहा है, तब किसी हिन्दू का किसी मुस्लिम को किडनी दे देना तारीफ के काबिल हैं। सलाम है श्रीमती रंजन को जिसने अपनी सहेली सलीमा को किडनी देकर अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। प्रणाम है सलीमा को, जिसे अपने व्यवहार से रंजन जैसी सहेली मिली। नमन है दोनों की दोस्ती को, जो बम धमाकों और नफरत की आग के ऐसे नाजुक दौर में भी प्यार का मीठा संदेश दे रही है।चोखेरबाली में एक महिला सिस्टर अल्फोंसा के बारे में बताया गया जिन्हें संतत्व की उपाधि से नवाजा गया लेकिन फिर से एक लाईना बता उसे नारी मुक्ति से जोड़ दिया गया। अच्छा लगता उनके बारे में जानने के लिये बजाय अंग्रेजी विकी का लिंक थमा थोड़ा बताया जाता, खैर ये उनकी अभिव्यक्ति का तरीका है।
हमें ये तो नही पता करवा चौथ किस दिन है लेकिन कल और आज में इस पर ठेली जा रही पोस्ट से लगता है कि जल्द ही है। इस अवसर पर सिद्धेश्वर यशपाल की लिखी एक प्यारी और मार्मिक कहानी लेकर आये हैं, आप भी जरूर पढ़िये -
कन्हैयालाल का गुस्सा भी उबल पड़ा- ' यह अकड़ है! ...आज तुझे ठीक कर ही दूँ।' उसने कहा और लाजो को बाँह से पकड़, खींचकर गिराते हुये दो थप्पड़ पूरे हाथ के जोर से ताबड़तोड़ जड़ दिये और हाँफते हुये लात उठाकर कहा, ' और मिजाज दिखा?... खड़ी हो सीधी।'ईस्वामी जी भी लगता है हमारी तरहा थोड़ा कनफ्यूजिया गये हैं यानि लिखने को मसाला बहुत है लेकिन लिखने के लिये वक्त नही है इसलिये जितना निपटा सको एक ही पोस्ट में ठेल दो क्या पता फिर कब मौका मिले। हैलोवीन से डराते हुए गरबा कराते हुए सीधे जा पहुँचे एनआरआई नारियों की करवा चौथ कथा सुनाने। उसके बाद जाते जाते लास्ट की लाईन को भी नही छोड़ा और लिव-इन रिलेशनशिप को ठेल के ही बॉय बॉय करी -
लाजो का क्रोध भी सीमा पार कर चुका था। खींची जाने पर भी फर्श से उठी नहीं। और मार खाने के लिये तैयार हो उसने चिल्लाकर कहा,' मार ले, मार ले! जान से मार डाल! पीछा छूटे! आज ही तो मारेगा!
इट फ़ील्स गुड.. इट फ़ील्स राईट.. यू कान्ट डू इट इन अ लिव-इन रिलेशन्शिप.. कैन यू?
अब गीत-कविता चर्चा
मानोशी लिखती है तो कहती है, भागो नही ठहरो क्योंकि -
क्यों न ठहर कर बाँध लोरघुवंशमनी एक बार फिर से स्वप्निल श्रीवास्तव की कविता 'ईश्वर एक लाठी है' सुना रहे हैं लेकिन इस बार थोड़ा व्याख्या भी समझायी है -
उन लम्हों को जो झोली में
अचानक ही यूँ आ गिरे थे
बिन पूछे ही संग लिपटे थे
रोक लो जाने से उनको
ज़िंदगी में जो आ रुके थे
ईश्वर एक लाठी हैअशोक पांडे बहुत श्रेष्ठ कबाड़ी हैं चुनकर कबाड़ लाते हैं, इस बात की पुष्टी हम अभी कर देते हैं। आपने आजतक सिर्फ उर्दू के ही शेर पढ़े-सुने होंगे लेकिन अशोक जैसा कोई कबाड़ी ही लुप्तप्रायः हो चली संस्कृत का शेर ला सकता है, शेर हम यहाँ पढ़ा देते हैं लेकिन मतलब वहाँ जाकर टिप्पणी में खोजिये क्योंकि 'समझ समझ के समझ को समझो, समझ समझना भी एक समझ है' -
जिसके सहारे अब तक
चल रहे हैं पिता
मैं जानता हूँ कहाँ-कहाँ
दरक गई है उनकी
यह कमज़ोर लाठी
काकः कृष्णः पिकः कृष्णःअब एक कबाड़ी संस्कृत का शेर लाये तो दूसरा कबाड़ी राजेश कैसे पीछे रह सकता था भला, उन्होंने तुरंत दूसरी पोस्ट संस्कृत की गलतफहमी में ठेली -
कः भेद पिककाकयो
वसन्त समये प्राप्ते
काकः काकः पिकः पिकः
पंडा: करोति पांडित्यम्इसे पढ़ श्यामल सुमन पगला गये और टिप्पणी भी इसी भाषा में करने लगे जाकर देखिये।
ज्ञानर्बघारिते ब्लगम्
अनेषां पिण्ड किं लाभम्
जब ख्वर पर पड़ें सड़े अण्डे
श्रद्धा जैन की इस गजल को पहले हि खूब वाह-वाही मिल चुकी है लेकिन फिर भी अगर आप की नजरें इनायत नही हुई तो ये रहा लिंक -
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवाऐसा ही पहले से वाह-वाही बटोरे एक गीत है यौगेन्द्र मुदगिल का -
खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
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कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
एक सुविधा है पोलीथीन मियां,छुट्टी किसे नही अच्छे लगती, हम तो कब से दिसम्बर का इंतजार कर रहे हैं, जल्दी से आये तो देहली की फ्लाईट पकड़ें। छुट्टी चाहे किसी भी रूप में हो, वीकेंड के या नज्म के पसंद आयगी ही। किसने लिखी ये बताने की जरूरत नही पढ़कर समझ आ ही जायेगा -
हमने दुविधा मगर खुदी कर ली.
नीम-पीपल तो काट डाले पर,
युकेलिप्टस से दोस्ती कर ली.
धूपनदीम को जाने क्यों लगता है कि निकलेगा जब चाँद तो दिल उनका बूझ जायेगा, एफ एम रेडियो में तो निकल चुका है उससे ये बुझा कि नही ये तो वो ही बता सकते हैं। फिलहाल एक नजर डालिये -
जब किवाडो की दरारो से झाँककर
मेरे घर मे दख़ल देती है..
अलसायी सी मेरी नींद
उबासी लेकर उसको उलहाना देती है.
तुलसी का वो पोधा ,जो आँगन मे खड़ा है
धीमे लहज़ो मे
पानी ना मिलने की शिकायत करता है।
मेज़ पर रखी किताब के पन्ने हवा मे फडफ़ड़ाते है.......
पता नही.......
सबको कैसे मालूम है..
आज मेरी छुट्टी है.
मैं सोच कर बैठा था के, न याद करूँगा तुझे,अब एक गीत और, 'इस दीवाने बिरादर को कोई ये समझाये, प्यार मोहब्बत से ना जाने, ये क्यों घबराये', यकीन नही आ रहा तो खुद जाकर देखिये, नमूना ये रहा -
फिर सुबह से, इन हिचकियों ने तड़पाया है।
है हैरान देखकर, ग़म भी ये हमारे,
क्या यही वो शख्स है, जिसको हमने रुलाया है?
ड्रेस को हरदम प्रेस किया,हम ज्यों का त्यों दे रहे हैं लेकिन लगता है इक्सपैस नही एक्सप्रैस होना चाहिये था।
गीफ्ट दे-देके इम्प्रेस किया
ऑंखों ही ऑंखों में
भावों को इक्सपैस किया।
पूजा आज कुछ उदास है, अपनी उदासी कुछ यूँ बयाँ कर रही है -
रूठ कर नहीं जाते हैं घर सेआना जाना तो लगा रहता है, शून्य में विलय होते सुना था लेकिन शून्य का आना आज जाना -
सुबह सुबह
तुम्हारे साथ चली जाती है
घर से हवा
दम घुटने लगता है
अपने ही घर में
खामोश हो जाती है
डाल पर बैठी गौरैया
मुरझा जाते हैं
रजनीगंधा के सारे फूल
शून्य था तेरा आना "और"
एक सवाल यूँ ही लौट जाना.
किसी किसी ब्लोगरस को क्या दबाकर टिप्पणियाँ मिलती हैं, हमें तो जलन सी होनी लगी है, धुँवा दिखायी दे रहा है क्या? किसी की कोई अच्छी पोस्ट रह गयी हो तो भूल चूक लेनी देनी। आज के लिये इत्ता ही फिर मुक्कालात होगी अगले शनिचर, तब तक आपके दिन हँसी-खुशी और रात सोते हुए बीते। जाते जाते अभय को जन्मदिन की शुभकामनायें इन लाईनों के साथ - आपसे जन्मदिन का केक जब कटवाया होगा, भाभीजी ने खिलाने के बजाय सारा केक चेहरे पे लगाया होगा।लॉस्ट इन ट्रांसलेशन
अनुपजी काफी दिनों से एक दूजे के लिये कह रहे थे, इसलिये आज थोड़ा वक्त था तो पेश है सभी कुछ यानि 'एक दुजे के लिये' की जुगलबंदी 'सवाल जवाब' के साथ और उसके बाद एक लाईना।
एक दुजे की जुगलबंदी सवाल जवाब के साथ
सवालः यदि आपको कंप्युटर से दूर रहना हो तो क्या करेंगे?
जवाबःछुट्टियाँ
सवालः कैसे डराए अपने दोस्तो को?
जवाबः सुहागिन के हाथ में तलवार देकर
सवालः जीवन के अज्ञात रहस्य में से कोई एक बताओ?
जवाबः क़ानून बना, कुएं में डाल
सवालः तुम्हारा नाम?
जवाबः जाकर. के. लौटआना
सवालः हमारे देश मे सबसे ज्यादा क्या पसंद किया जाता है?
जवाबः रनों के शिखर पर सरताज सचिन
एक लाईना
1. ये तो नशा है - तो क्या डॉलर या यूरो समझे थे
2. बंदा ये बिंदास है - क्योंकि सिर्फ आठवीं पास है
3. खुशियों की खुरचन ही मिली - अच्छा तो वो तुम थे जो सारी खुरच के ले गये, बाकि बेचारे खुरचन से भी रह गये
4. पधारो ना म्हारे देस - अजी आप टिकिट तो भिजवाईये हम तो कब से तैयार बैठे हैं
5. सचिन के धमाके में हुए करोड़ों घायल - अच्छा! कोई नया बम मार्केट में आया है क्या
बाई! अगले सनीच्चर को मिलेंगे। उसके लिये शुक्रवार को पोस्ट ठेलेंगे!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा !
जवाब देंहटाएंबढि़या है तरुण बाबू। हमने भी सोच लिया है कि अगले शुक्र को ज्ञान जी की रेल के पीछे हम भी लटक लेंगे।
जवाब देंहटाएंभूल सुधार के लिए शुक्रिया तरूण जी।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा विस्तृत और अच्छी रही।
आज की चर्चा बेहद सुंदर और उपयोगी है। लगता है सप्लीमेंट्री प्रभावित करने लगी है। सही है प्रतियोगिता सदैव गुणवत्ता में समृद्धि लाती है।
जवाब देंहटाएंकाफी प्रभावी रही आजकी चर्चा, अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं" ha ha ha ha very intresting to read"
जवाब देंहटाएंRegards
बेहतरीन चर्चा लगी आज की ..सवाल जवाब बहुत बढ़िया ...अगले शनिवार का इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएं"किसी की कोई अच्छी पोस्ट रह गयी हो तो भूल चूक लेनी देनी।"
जवाब देंहटाएंचलिये इस बार माफ कर दिया!!
चर्चा काफी विस्तार से की है एवं काफी अच्छे एवं चिंतनीय आलेखों से परिचय करवा दिया है! आभार!
लिखते रहें (चर्चियाते रहें).
सस्नेह -- शास्त्री
आज की चर्चा को दस में से दस नंबर... बहुत ही सार्थक चर्चा रही इस बार.. बधाई स्वीकार करे दिल से
जवाब देंहटाएंयह प्रश्नोत्तरी वाला सिस्टम रोचक है। बधाई!
जवाब देंहटाएंटनाटन चर्चा !
जवाब देंहटाएंखूब रही चर्चा एक ही दिन में दो दो .....आपने भी लगता है आज सुबह सुबह कई चाय की प्यालिया ठेली होगी ...एक लाइना जानदार है खास तौर से आखिरी दो वाली ......नया बम ....हा हा हा ...झकास बोले तो
जवाब देंहटाएंतरुण भाई मजा आ गया ! आज की फ्री स्टाईल चिठ्ठा चर्चा में ! प्रश्नोत्तार तो गजब के रहे ! पर ये क्या ? कुल ५ प्रशनो के जबाव ! कम से कम ११ तो शगुन के होने ही चाहिए ! आगे से ध्यान रहे ! :) बहुत बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंएक लाइना और जुगलबंदी !
जवाब देंहटाएंअगले शनिचर की राह ताक रहे हैं.
क्यों कभी यहाँ आती बास है
जवाब देंहटाएंवाह,यह चर्चा तो झक्कास है
चर्चाकार भी लगता बिंदास है
आज तभी सबकुछ बस ख़ास है
पर,पता नहीं कौन यहाँ आठवाँ पास है
यह डाक्टर तो करता ही रहता बकवास है
पण उसके मन का बोलता यह उल्लास है
मिल जो जाता यहाँ सब पास पास है
एक लाईना अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंचिटठा चर्चा काफ़ी रोचक हो चली है. हम पहली बार कई ब्लोग्स पर चिट्ठाचर्चा के ही माध्यम से पहुंचे हैं
जवाब देंहटाएंहमारा सोचना है कि टिप्पणीचर्चा के लिए एक अलग ब्लॉग कि शुरुआत हो सकती है. इस पर सिर्फ़ टिप्पणियों पर चर्चा हो. आजकल टिप्पणियां भी काफी रोचक हो रही हैं.
नमस्कार जी, दो दिवस का रेस्ट...! आपने कहीं भी अनूप भाई की कमी महसूस नही होने दी.
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