राज ठाकरे अगर कोई बेनाम टिप्पणी होती तो अब तक अनगिन हिन्दी चिट्ठाकार बांकुरों ने उसे कब का डिलीट कर मारा होता पर अफसोस राज ठाकरे एक टिप्पणी नहीं, वे हैं-इतिहास की पैदाइश। महाराष्ट्र का ही इतिहास नहीं वरन बिहार का भी इतिहास। इतिहास बार बार बताता है कि भविष्य की चिंता न करने वाले लतियाए जाते हैं, हरिवंशजी याद दिला रहे हैं कि ये ट्रेन फूंकने का नहीं जागने और कर दिखाने का अवसर है-
अपना नुकसान कर हम अपनी कायरता का परिचय दे रहे हैं। अपनी पौरुषहीनता दिखा रहे हैं। अगर सचमुच हम दुखी, आहत और अपमानित हैं, तो दुख, पीड़ा और अपमान को एक अद-भुत सृजनात्मक ऊर्जा में बदल सकते हैं। चुनौतियों को स्वीकार करने की पौरुष दृष्टि ही इतिहास बनाती है। इस घटना से सबक लेकर हम हिंदीभाषी भविष्य का इतिहास बना सकते हैं।
पर अधिकांश ब्लॉग बांकुरे इसे अधिकार और आजादी की बाइनरी में ही देखने के लिए अभिशप्त हैं तभी तो कमलेश मदान को राहुल राज भगत सिंह जान पड़ रह हैं, तिसपर मुबई बायकॉट का नारा भी। 'ऐब' इन्कन्वेंटिए महोदय को ये बेचारे राज ठाकरे की मजबूरी जान पड़ती है। नीतीश इस क्षेत्रवाद की आग को पहचान रहे हैं। वैसे ब्लॉगरों के 'प्रिय' किरदार राज ठाकरे ही रहे हैं- मिथिलेश को वे भस्मासुर नजर आ रहे हैं। वहीं राहुल राज के पीछे मूल कारण के रूप में भी ठाकरे को पहचाना जा रहा है। हैरानी की बात है कि कोई लालू, मायावती, मुलायम जैसों को नहीं पहचान रहा है जिसने हमें दर बदर बेइज्जत होने वाला बनने पर विवश कर दिया है-
सारे प्रकरण में लालू ने ही पाया है. इसके आगे नितीश और पासवान तो पिछलग्गू की तरह खड़े दिखते हैं. जो लोग बिहार की जड़े खोद कर खागये आप उनके पीछे चलने को कैसे कहते हैं? जिस तरह राज ठाकरे और बाल ठाकरे समाज की विकृतिया हैं, लालू भी इन सबसे अधिक विकृति है.
ब्लॉग से क्षेत्रवाद खत्म करने पर उतारू इस बात पर भी हैरान हैं कि भैया ये मेधा पाटकर काहे चुप हैं, मराठी मानूस काहे हमारी लड़ाई नही लड़तीं। अमिताभ बच्चन जरूर विवेकपूर्ण बने रहने की कोशिश कर रहे हैं।
कुछ लूगों (लोगों) का ये मानना है की अब क्यूंकि मै हिन्दी मे लिख रहा हूँ इसलिए वे अब इस ब्लॉग से सम्बन्ध तोड़ना चाहते हैं I
मैंने उन्हें लिखा की जो भी मै अंग्रेज़ी मे लिख रहा हूँ वो ही हिन्दी मे भी लिख रहा हूँ I हम सब को अपनी मात्रि भाषा से मुह नहीं मोड़ लेना चहिये I अंग्रेज़ी मे लिखी बात यदि मै हिन्दी मे भी कहना चाहूँ तो मै उसे कहूँगा , और इसी तरह हिन्दी मे लिखी बात अगर मै अंग्रजी मे कहना चाहूँ तो मै उसे अवश्य कहूँगा I
हमें सब भाषा ओं पे गर्व है , उनकी सोच समझ और उनके विश्वास पे भी I हम उनका आदर करते हैं I
इसकी सूचना हिन्दी जगत को दे रहे हैं विजय ठाकुर।
इस क्षेत्रवाद को खत्म करने या बढ़ाने के अलावा भी हिन्दी ब्लॉगजगत बहुत कुछ करने में व्यस्त है। मसलन पासवर्ड याद रखना। सबसे आसान है पहले प्यार को पासवर्ड बना लेना
.. पहले जिस अधूरे प्यार की जगह किसी किताब में, किसी नोवेल में या फिर क्लास नोट्स के आखिरी पन्नों पर होती थी (दिल के किसी कोने में होने के अलावा) उसको एक नई जगह मिल गई है... और कमाल की सुरक्षित जगह है... पासवर्ड !
दिक्कत बस ये ही है कि पासवर्ड चाहिए सैकड़ों और पहला प्यार तो एकाध ही हो सकता है बहुत हुआ दो चार- ऊधौ मन न भए दस बीस :)
पासवर्ड, क्षेत्रवाद छोडि़ए आनंद लीजिए -अनिल रस घोल रहे हैं देसी मिठाइयों का। ये सब न भी करना चाहें तब भी कोई बात नहीं, कुछ न करना क्या कम बड़ा काम है?
मेरे लिए
कोई सोम-मंगल-बुध नहीं होता
मेरे लिए
महीने की पहली तारीख हो
या आखिरी
क्यों फर्क नहीं पड़ता
मेरी रात कई टुकड़ों में होती है
दोपहर-शाम
नींद जब भी आ जाती है
मेरे लिए
सपने, दुख देते हैं
पर आप न ही मानते हों और कुछ न कुछ करने पर अड़े हों तो रविजी का साथ दें वे छत्तीसगढ़ी आपरेटिंग सिस्टम बनाने पर तुले हैं। वैसे आप भैंस की पूंछ पर हो रही ब्लॉगर मीट का हाल भी पढ़ सकते हैं। तो करने को बहुत कुछ है ब्लॉग में। और परेशान न हों...असम में भी बम फट गए हैं अब कई दिन उस पर स्यापा करेंगे तब तक फिर कुछ हो जाएगा।
हम ठहरे ब्लॉग के समाजिक सरोकारों से शून्य जन, हमारी पसंद की पोस्ट आज है, अनिल यादव का हिचकीय सपना-
..............सारा डर, सारी उत्तेजना को आदतन भींच कर, मैं खुद को बस गिर जाने देता हूं। मैं चीखता नहीं क्योंकि हर दिन ढेरों अचरजों पर तटस्थ रहने का आदती हो चला हूं। बस एक आंधी जैसी सीटी गले और कान के पास बज रही है जिसे सिर्फ मैं सुन सकता हूं। एक खामोश लंबी यात्रा शुरू होती है...हरा, काई में लिपटा अंधेरा भागा जा रहा है....नीले आसमान की कौंध....पंख फैलाए निश्चिंत गोल चक्कर घूमती एक चील की झलक....भागता अंधेरा। प्रतीक्षा....प्रतीक्षा....प्रतीक्षा.....वह झटका और मैं वापस उछाल दिया जाऊंगा फिर निश्चित ही जमीन की तरफ लौटने की यात्रा शुरू होगी।
चलते चलते एक नजर कुछ नए ब्लॉगों पर-
राही मासूम रजा का साहित्य - अरे वाह शुक्रिया
प्रकाश सिंह का अर्श जुल्म ए मोहब्बत की सजा
पत्रकार राजेश रंजन का यदा कदा
शोधार्थी शालिनी दुबे के जिंदगी के अनुभव
मास्साब मनोज मिश्रा का मा पलायनम
अनिल सौमित्र की तीखी लगने वाली लाल मिर्ची
स्वप्न मेरे- दिगम्बर नासवा के।
इन पत्रकार का कलम क्रांति
मीना अग्रवाल का टमाटर (वाह क्या नाम है, ब्लॉग का- रसीला और महँगा)
हमारा कहना है कि आजकी चर्चा बढिया रही :)
जवाब देंहटाएंआज के युग में आपको किसी से कुछ लाभ लेना है तो आपको उसके लिए स्वयं को अतिआवश्यक सिद्ध करना ही होगा जिसकी जरूरत नहीं उसको हर जगह से हटाया जाता है . वैसे मैं यह कहकर राज ठाकरे को सही नहीं बता रहा . पर आजकल जब लोग अपने बूढे माँ बाप को अनावश्यक समझने लगे हैं तो औरों की तो बात ही क्या .
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया और सुंदर चर्चा ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआज चर्चा में राज ठाकरे ही राज ठाकरे छाया है। मुझे ये राज ठाकरे किसी आतंकवादी से कम नहीं बहुत ज्यादा ही लगता है।
जवाब देंहटाएंराज को यहाँ भी कवरेज मिल रहा है, सही है :-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा है जी
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंwell presented,.....
जवाब देंहटाएंRegards
भाई आज की चर्चा ने तो मस्त कर दिया..
जवाब देंहटाएंसुना करवै हैं, कि ब्लाग्स की सामूहिक ताकत सरकारें तक बदल डाल्यै करे हैं..
ईहाँ हिन्दी वालों मे वो बात मन्नै तो दिक्खी नाय ?
हिन्दी और हिन्दुद्तानी
सदियों से मार खाते रहने और मारने वालों को
गरियाते रहने की संस्कृति ही ओढ़ते बिछाते रहे हैं !
मसिजीवी ने ब्लागरीय सरोकार का परिचय देते हुये
कुछेक बेहतरीन ब्लाग्स नेपथ्य के सामने लाये हैं, साधुवाद !
हिन्दी ब्लागिंग कब तक दुधमुँही बनी रहेगी, मित्रों ?
अब उसे कुछ ठोस आहार भी देना आरंभ करो, भाई !
चुने हुए कुछ चिट्ठों, आलेखों, एवं विश्लेषण से भरे इस चिट्ठाचर्चा के लिये आभार!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया .....आपके द्वारा कई चिट्ठो पर नजर डालने का मौका मिला ....एक अच्छी चर्चा .
जवाब देंहटाएंसदा की तरह बेहतरीन, खुशनुमा
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा चर्चा की है..बढ़िया कवरेज और स्टाईल तो आपका है ही लाजबाब!! बधाई!!
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग के नामोल्लेख के लिए शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंवेरी गुड... जी, बहुत अच्छा!
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