वैसे तो हम ये नही लिखते.. पर डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी को डर लग रहा है हिंदू होने पर और वो जय श्री राम कहने से भी डर रहे है.. तो हम उनके साथ जय श्री राम कहते हुए उन्हे ना डरने की सलाह दे रहे है..
कहने को तो कोई ये भी कह सकता है की इस मंच का फ़ायदा उठाया जा रहा है.. तो भैया कहना तो हमने अपने पिताजी का भी नही माना तो फिर आप कौनसे खेत की गाज़र हो? हे हे हे
उड़ी बाबा चर्चा शुरू कर दी और नमस्ते किया ही नही.. पर आज आपको नमस्ते कराया जाएगा.. ज़मूरे के द्वारा.. अब आप पूछेंगे की ज़मूरा कौन.. अजी पढ़िए तो सही की ज़मूरा और उस्ताद क्या कह रहे है..
अब आइए ले चलते है आपको एक मास कॉम के छात्र से मिलवाने.. उन्होने अपनी पोस्ट में कुछ सवाल उठाए है.. क्या कहा? कैसे सवाल ? अजी यहा क्लिक करके देखिए..
नस्सिरुद्दीन जी कहते है
पुलिस के दावों के मुताबिक यूपी, जयपुर, अहमदाबाद और दिल्ली में विस्फोट करने वाले पकड़े गए। अच्छी बात है। गुनाहगारों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। ... लेकिन एक बात आज तक पता नहीं चली... किसी ब्रेकिंग न्यूज में भी नहीं आया... किसी सूत्र ने नहीं बताया और पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस में भी सवाल नहीं उठे। आखिर यह धमाके अगर इन्हीं नौजवानों की कारस्तानी है तो इन्होंने यह किया क्यों। ... पैसे की खातिर... सम्मान की खातिर... ऐशो आराम के लिए... आखिर क्यों। चूँकि यह सवाल ही नहीं आया तो जाहिर है जवाब कहाँ तलाशा जाता।
हालाँकि उनका जवाब भी ab inconvenienti द्वारा दे दिया गया है.. देखिए देखिए
वो जवाब देते है
तुम्हारा चौथा प्रश्न तो और भी जोरदार है: मेरे हिसाब से उसे ऐसा होना चाहिए: मुस्लिम युवाओं ने ट्विन टावर पर आत्मघाती हमले किए आख़िर क्यों? बाली में धमाके किए आख़िर क्यों? पाकिस्तान में होटल उड़ा डाला आख़िर क्यों? लन्दन में विस्फोट किए आख़िर क्यों? आज भी भारत में दलित और आदिवासी सर्वाधिक शोषित और उपेक्षित वर्ग है, अगर यह उपेक्षा और अलगाव की थ्योरी सही होती तो उसे ही सबसे पहले धमाके करने चाहिए थे? पर नहीं, दलित मोर्चे ने उग्रवाद को अपनाया नहीं, और आदिवासियों ने मासूमों पर धमाके करने के बजाए सरकारी मशीनरी यानि पुलिस, अफसर, नेता और सरकारी दफ्तर पर हमला करना सही समझा. पूरी दुनिया में जेहादियों को मासूम ही बम से फोड़ने लायक दिखाई देते हैं? आख़िर क्यों? आख़िर सरकार की सज़ा जनता को क्यों?
वैसे आज ब्लॉग जगत में जहा देखो हिंदू मुस्लिम... हिंदू मुस्लिम... बस यही सब मिल रहा है.. लोग भड़कती पोस्ट पढ़के भड़कते हुए कॉमेंट दे रहे है..
ऐसे में एक बढ़िया विचारो वाला लेख मिल जाए तो क्या बात है.. ये एक ऐसा लेख है जिसे हिंदू और मुसलमान दोनो को पढ़ना चाहिए.. अरे कोई और भी पढ़े तो लफडा नही..
आशुतोष जी लिखते है
कोई ये सवाल भी उठा सकता है कि कट्टरपंथ और फिरकापरस्ती तो हर धर्म में है तो ये हंगामा क्यों? मैं मानता हूं लेकिन थोड़ा फर्क है। हिंदू समाज में अगर भड़काने वाली कट्टरपंथी आवाज है तो वहीं इसके बराबर या कहें इससे भी अधिक मजूबत उदारपंथी आवाज भी है। ईसाईयत में ये जंग धार्मिक कट्टरपंथ काफी पहले हार चुका है। ईसाईयत में ये तय हो चुका है कि धर्म निजी आस्था का मामला है और राजनीति में मजहब के लिये कोई जगह नहीं है। हिंदुत्व और ईसाईयत में अबुल अल मौदूदी जैसे लोग नहीं दिखाई पड़ते जो धर्म और राजनीति का घालमेल करना चाहते हैं। मौदूदी दावा करते हैं कि इस्लाम एक क्रांतिकारी विचारधारा है और एक सिस्टम भी जो सरकारों को पलट देता है।
शिव कुमार जी अपने ब्लॉग पर लिखते है आख़िर नारा मंत्रालय जो खुल जायेगा.
उनका कहना है
पहले देश में दो तरह के लोग रहते थे. अमीर लोग और गरीब लोग. अब भी देश में दो तरह के ही लोग रहते हैं. लेकिन थोड़ा बदलाव है. अब निडर लोग और डरे हुए लोग हैं.
आगे वे कहते है
पिछले दिनों जिस रफ़्तार से बमबाजी और चर्च पर हमले हुए हैं, मैं इन निडर लोगों की कर्मठता पर दंग हूँ.
इस पर एक नटखट बच्चे ने कुछ यु टिपण्णी की है
एक किस्म ओर होती है
उस्ताद आज क्या चलायेगे ?सुबह से कोई बम नही फटा ?किसी ने किसी का चुम्मा नही लिया ?चुटकुले सुनाने वाले बिग बॉस में चले गए है ?
उस्ताद- बेटे चिंता मत करो अगर कोई बम शाम तक नही फूटा तो हम कहेगे कल वाला बम था ही नही ,फ़िर देखना सारे आपस में लड़ मरेगे ,एक आध मानवाधिकार वालो का भी इंटरव्यू ले लेना आप महान हो उस्ताद
अब इन खबरो को साइड में रखते हुए आगे की खबरो की तरफ चलते है..
सबसे पहले आपको ले चलते है चोखेर बाली की तरफ.. संगीता जी बताती है.. की स्त्रियो के पास कुछ ऐसा है जो और किसी के पास नही.. वाकई वो सच कहती है.. देखिए..
अब बारी है भूतनाथ की देखिए कैसे बेचारा हिटलर की प्रेमिका के हत्थे चढ़ा..
बचपन में हेलिकॉप्टर को तो टाटा करते ही थे अब पांडे जी टाटा नेनो को अपने अश्रुमिश्रित नैनो से टाटा बाय बाय कर रहे है..
जिन लोगो ने अपना इंश्योरेंस करा रखा है वो डा. अनुराग के साथ फटफटिया पर बैठकर घूम सकते है ज़िंदगी की गलियो से..
क्या कहा ब्लॉग को आकर्षक बनाने के लिए मदद चाहिए?
अजी अपने सागर जी है न आइये देखे वो क्या कह रहे है..
आइये अब चलते है सवाल जवाब राउंड की ओर..
जब हमने किए सवाल तो पोस्ट शीर्षक कैसे बने उनके जवाब आइये देखे
प्र: आप सेकुलर है या सांप्रदायिक?
ऊ : बड़ी मुश्किल है चुप रहूँ या कह दूँ
प्र: पढ़ने योग्य पोस्ट कैसे लिखने चाहिए?
ऊ : नये अंदाज में
प्र : आप अनोनामसली टिप्पणी क्यो करते थे?
ऊ : कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी..
प्र : ज़्यादा पीने के बाद पापा बेटे से क्या कहते है?
ऊ : पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा.....
प्र: ब्लॉगर को आप क्या कहेंगे?
ऊ : आदमी नामक प्राणी.
प्र: इस देश को किसकी ज़रूरत है?
ऊ : देश भक्ति के लिए प्रोत्साहन
प्र : टिप्पणी के बारे में आप क्या कहते है?
उ : मुझ को आज भी तुम्हारा इन्तज़ार है
वैसे आपको ये भी लग सकता है की हम जल्दी में है.. हमने चर्चा जल्दी में निपटा दी... तो भइया दरअसल हम व्यस्त है अभी ब्लोगाश्रम में.. क्या कहा ? आपने नही पढ़ा तो पढिये ना
गुरूजी कह रहे है
"तो मेरे प्यारे बंधु! क्या यहा पर प्रशंसाए लेने के लिए ही आते हो? यदि प्रशंसा बहुत प्रिय है तो आलोचनाए ग्रहण करना भी सीखो.. यदि प्रशंसा करने के लिए लिंक लगाया जा सकता है तो आलोचना करने के लिए भी लिंक लगाया जा सकता है.. अथवा कदाचित् प्रशंसा पाने के लिए ही आते हो यहा.."
अभी चलते है फ़िर मिलेंगे.. अगले बुधवार तब तक के लिए जय श्री राम...
अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंभाई कुश जी चर्चा में परमानंद आ गया ! इब हियाँ से आपका उसताद, जमूरा और बिल्ली पकड़ने निकलना है !
जवाब देंहटाएंजय श्रीराम !
बहुत बेहतरीन चर्चा ! बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंभाइ साहब
जवाब देंहटाएंआज़ तो ज़ल्द बाजी मेन लगे आप अरे हा आपको क्या हमको भी सभी को सेवैयो का इन्त्ज़ार नही है क्या ?
सो छॊटी चलेगी
andaaj nirala hai....kush ji
जवाब देंहटाएंआज का दिन उथल पुथल रहा उब कर हमने ब्लोग्वानी पर प्यार भरी नजर डाली तो अचानक कुछ ब्लॉग आपस में गुफ्तगू करते नजर आए ..एक नजर आप भी डाले
जवाब देंहटाएंमेरी दलील तेरी दलील से सफ़ेद -आइये ब्लॉग के रंगों को पहचाने ओर उन्हें बदले
माँ के जाने के बाद =पापा कहते थे बड़ा नाम करेगा
आदमी नाम का प्राणी =दास्ताने दाढ़ी है जारी
बोतल में बंद चिट्ठी =ये दिल दा मामला है
आपके ब्लॉग की धाक =बड़ी मुश्किल है चुप रहूँ या कह दूँ
दारू चढ़ने के बाद बके जाने वाले विशिष्ट बोल=तुम तो तुम साला हम भी गए भाड़ में
आलोक जी कर्ज अभी बाकी है =डर सा लगता है
कोयल ओर कौवे की अनोखी जुगलबंदी =कौन सही? कौन ग़लत
दोस्त मै शादी कर रही हूँ =मुझको आज भी तुम्हारा इन्तजार है
नंगे पैर =एक चुप्पी क्रोस पर चढी
भूतनाथ चढा हिटलर की प्रेमिका के हत्थे =कब लेगे सबक ?
अच्छी चर्चा रही कुश जी, साथ में अनुराग जी ने भी अच्छा साथ दिया। कोरम पूरा हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..कुश जी के सवाल जवाब राउंड और डॉ. अनुराग के गुफ्तगू को पढ़कर मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंवाह, जमूरा उवाच; और यह चर्चा। फिर जय श्री राम।
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत करते हो मित्र। बहुत सुन्दर।
मिर्ची छोटी हो मगर तीखी हो तो सी सी करवा देती है
जवाब देंहटाएंवीनस केसरी
मजेदार! डा.अनुराग के एकलाइना भी शानदार रहे।
जवाब देंहटाएंतो भैया कहना तो हमने अपने पिताजी का भी नही माना तो फिर आप कौनसे खेत की गाज़र हो? हे हे हे...
जवाब देंहटाएंकुश भाई यह मुहावरा बेहद ख़राब है ...भगवान् ना करे हमारी नयी पीढी इसे सीख ले ...
अभी भी बहुत से वृद्ध जन आश्रमों में रह रहे हैं :-(
A nice 'Charcha ' but...
जवाब देंहटाएंthe Looking Glass is frosted.
It should n't be, at this platform !
Anurag's well chosen contribution is commendable.
जै रामजी की भाई.
जवाब देंहटाएंनसीरुद्दीन जी को बोलें की क्यों किये लड़कों ने धमाके तो मेरी पोस्ट पर जाकर पढ़ लें-बाटला हाउस का सच,अर्द्धसत्य नहीं, पूर्ण सच है। सभी सवालों के जवाब इन्हें मिल जाएंगे।
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