आज इतवार का दिन है। लोग छुट्टी के मूड में रहते हैं। हल्के-फ़ुल्के। इसलिये हम ज्यादा भारी भरकम बात न करेंगे। शुरुआत ब्लाग जगत मे प्रमुख समाचारों से:
- ताऊ ने कवि, ज्ञानदत्त पान्डेय ने विदेह और शिवकुमार मिश्र ने माइक्रोब्लागर बनने की धमकी दी- टिप्पणियों से समझाने का प्रयास
- होम्योपैथिक चिकित्सक पूर्वाग्रह से मुक्त रहें, डायरी लिखें! - डा. प्रभात टंडन
- लोकनायक पर भारी महानायक
- प्रशान्त प्रियदर्शी अंत में इंडियन आयडल चुने गये
- लिव-इन-रिलेशनशिप 65% से अधिक भारतीय समाज की वास्तविकता है दिनेशराय द्विवेदी का खुलासा
- प्रकृति को हक़ देने वाला पहला देश : इक्वाडोर
- अमेरिका में उगेगा अंधेरी रात का सूरज -विमोचन के टनाटन इंतजाम
- एक टीवी एंकर का माफीनामा...मैं कमीना हूं
- कागज की कश्ती पर समंदर की सैर की तैयारी
एक लाइना
- नारी मन:आख़िर क्या है तेरे जेहन में जो इत्ते सारे स्पैम पीछे लगे हैं?
स्त्रीदेह : कितनी ढँके, कितनी उघड़े : हम बोलेंगे तो बोलेंगी कि बोलता है!- झूमती कविता:लड़खड़ाते श्रोता
- लिव-इन-रिलेशनशिप और पत्नी पर बेमानी बहस: कर रहे हैं दिनेशराय द्विवेदी कोटा राजस्थान वाले
- जहॉं मैं घंटे-भर बेहोश रहा.... : और ठीक होकर आ गया!
- ये रिश्ते खून के . :पोस्ट लिखवा के मानते हैं
- कटहल का पौधा :देखते ही वैराग्य उपजा
- पोषण-जीवन का सेहत भरा तरीका : लिखो ब्लाग-गाओ फ़ाग
- जी.एफ.टी. समझने का यत्न! :जी.एफ.टी.(महा मूर्खा नियम) खग ही जाने खग की भाषा
- प्यार की बातें..... : लफ्ज़ों के हेरफेर से तलवार की बातें.
- ऑनलाईन चैटिंग के फायदे :बात करते समय पिटाई की कोई गुंजाइश नहीं
- जमीन का लोकतंत्र, लोकतंत्र की जमीन : एक-दूसरे में गुत्थम-गुत्था
- मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूं : ...ओफ़्फ़ो!
- तुम : मानते क्यों नहीं?
- मैं हिन्दू हूँ, हिन्दू हूँ मैं, मन की मैं करता ही जाऊं........ : हिंदूगीरी करने के अलावा और कोई काम नहीं?
- ये मान कर चलिए कि ये भड़ास भी बस कुछ दिनों का ही मेहमान है :हम तो बहुत पहले से मानकर चल रहे हैं
- लोकनायक पर भारी महानायक : वजन के लिये धर्म कांटे की रसीद दिखाओ
- मैं हूं तुम हो और ये चांदनी.... : भगवान न जाने क्या कराना चाहता है हमसे
- बोलो, अंकल सैम, पूंजीवाद जिंदाबाद या मुर्दाबाद :बोलो,बोलो कोई सुन थोड़ी न रहा है
- दुखी हैं देवता: क्योंकि वे अवतार नहीं ले पा रहे
- हमारा भारत जिंदाबाद.... :जिन्दाबाद,जिन्दाबाद..
- शादी की नीव… तलाक है???: नींव भरायें, मकान बनवायें
- लूज कैरेक्टर का बिहार :बिहार से कैरेक्टर के संबंध साबित
- कोफ़्तथोती है यह सब पढ़कर
- कवि शिव सागर शर्मा - मुहावरों का पानी और पानी के मुहावरे : जिधर देखो उधर पानी ही पानी
- अगले जनम मोहे मास्टर ना कीजो: पढ़े-लिखे हो इसी जनम में छोड़ दो नौकरी
- अमिताभ बच्चन हमारे घर आये : और बोले आप हमारे ब्लाग पर टिपियाते क्यों नहीं भाई!
- लिव-इन-रिलेशनशिप 65% से अधिक भारतीय समाज की वास्तविकता है : कुछ तो कम करो भाई ,आपके पुराने मुवक्किल हैं
- छोकरी का रिबनः अछूत होने का मजा : रिबन भी मजा लेता है ?
- ........जो अपनी औकात है :क्या बात है, क्या बात है!
- क्या फकीर को राजमहल का सुख उठाना शोभा देता है ?: बात शौक की नहीं बूते की है, राजमहल के शौक भारी होते हैं
- अच्छी बात तो अच्छी ही कहलाएगी:आआच्छा
- रहने दो खुशियों के घर में:रहने तो दें लेकिन किराया कौन देगा?
- पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ !! :ताकि उससे लिवइन रिलेशन बना सकूं
- संगत : बड़े काम की चीज है
- लिख रहा हूँ बिना कुछ सोचे : झेलेंगे तो पढ़ने वाले
- चल दिए हम भी एक नई नौकरी और नए शहर की ओर! :तब तो नयी पोस्ट लाजिमी है भई!!
- कांच की बरनी और दो कप चाय :की गुंजाइश हमेशा रहनी चाहिये
- अब जापान की बारी : हमरे दिन भी बहुरेंगे
- ये रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं : कुछ लोग ज्यादा ही करीब होते हैं
- नशीली मस्ती में डूबे युवा : तो क्या जुलुम हुआ?
- दूध है कि मानता नहीं : उफ़नता ही रहता है
- गांधी जयंती के बहाने। : गांधी जयंती पर भी बहानेबाजी!
- धीरे-धीरे ग़म सहना : क्योंकि जल्दी का काम शैतान का होता है
- रोटी कपड़ा मकान और हमारे हुक्मरान : इनसे आदमी हमेशा रहता है हलकान
- मुंबई तेरे बाप की और खंडाला तेरी माँ का : अपने लिये भी तो कुछ रखो भाई
- क्या करें :अब भी कुछ बाकी है क्या?
- सपनो को फ्रिज में रख छोड़ा है :और लाइट चली गई
- दिल टूट गया : कित्ते टुकड़े हुये? फ़ेवीकोल से कुछ बनेगा?
- नष्ट होती धरोहर : तो होकर रहेगी
- अन्तिम सफर तो सब करते मिट्टी या चंदन में :आपका क्या प्लान है?
- बेवतन फ़कीरों से :दोस्ताना क्या?
- लुका छिपी खेले आ हम : क्या लुका-छिपी तुम तो हमेशा एक ही जगह रहते हो
- सांसों के मुसाफ़िर: क्या तैयारी है ?
- हम जुझ रहे हैं : क्यों क्या कोई डाक्टर बताइस है जूझने को
- हायकू : कायकू
- आप किस किस्म के ब्लॉगर है जी? : बूझो तो जाने
और अंत में
इतवार को सब काम आराम से होता है तो चर्चा काहे न हो आराम से। कल कुछ साथी निराश हो गये चर्चा से। अब तक उनकी निराशा दूर हॊ गयी होगी। न हुई हो बतायें फ़िर कुछ इंतजाम किया जायेगा।
कल एक कवि सम्मेलन में कविता सुनने गये। वहां बेकल उत्साही जी अध्यक्षता कर रहे थे। वो देर तक पढ़ते रहे। तमाम गीत। बेकल जी बेकल होकर अध्यक्षता छोड़कर चल दिये बोले -आराम से पढ़वाओ अपने शहर वालों को।
हमें लगा कि टंकी पर चढ़ने वाले इक्ल्ले ब्लागिंग में ही नहीं होते। ब्लागर तो फ़िर भी उतर आते हैं मनाने पर। लेकिन बेकल जी तो निकल लिये। अस्सी साल की उमर में बचपना बचा के रखा है बुजुर्गों ने!
कल एक शायर ने कुछ ये कविता पढ़ी-
वो हंसता ही जा रहा है मुसल्लल बेसबब
देखों कहीं उसकी आंख नम तो नहीं।
हमें ब्लागर साथी प्रीति बड़थ्वाल, सीमा गुप्ता(जिनका की कल जन्मदिन था जयप्रकाश नारायण और अमिताभ बच्चन के साथ) और नीरज गोस्वामी जी की कुछ (सब नहीं) कविताओं याद आये।
फ़िलहाल इत्ते से ही काम चलाइये। फ़िर मुलाकात होती है जल्द ही।
वाकई इत्मिनान से की गई चर्चा। अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंअब क्या कहें इस के छपने और पढ़ने के पहले चम्बल में बहुत पानी बह गया।
जवाब देंहटाएंएक लाइना:
जवाब देंहटाएंइतवारी चर्चा जरा इत्मिनान से - तगड़े ब्रंच के बाद!
kahe jaao bhai, achchha hai...
जवाब देंहटाएं"पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ !! :ताकि उससे लिवइन रिलेशन बना सकूं "
जवाब देंहटाएंआपका हर एक-लाईना इतना क्लासिक होता है कि जवाब नहीं है.
एक बात बातायेंगे क्या: आपकी क्रियाशीलता का रहस्य क्या है (यकीन रखिये मैं किसी को नहीं बताऊंगा) जिसे मैं भी जरा सेवन कर सकूँ!!!
सस्नेह
-- शास्त्री
अनुप जी एक लाइना है लाजवाब । हंसी थमती ही नहीं । बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक कमेंट्स
जवाब देंहटाएंअरे पंडित जीश्
जवाब देंहटाएंआपउ रहम नाहें खाए मास्टरन पे
"अगले जनम मोहे मास्टर ना कीजो: पढ़े-लिखे हो इसी जनम में छोड़ दो नौकरी"
जवाब देंहटाएंलगता है की अब ब्लोगरी छोडनी ही पड़ेगी!
इतनी कड़वी गोली ?
फ़िर भी बढ़िया!
हम भी पूरे इत्मीनान से आए,बाँचे,मुस्काए और कुछ कहे बिना रह न सके।
जवाब देंहटाएं???????
बहुत अच्छा लगा!!
इतवारी चर्चा जरा इत्मिनान से -वाकई बहुत अच्छी..
जवाब देंहटाएंक्या केने क्या केने
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी की बात से सहमत हूँ ! एक दम क्लासिक !
जवाब देंहटाएंशुक्लजी आप जब इत्मीनान से कहते हो मतलब इत्मीनान ! एक लाईना बांचने में पुरी २० मिनट लगती है ! पहले उनको पढ़ कर कही आगे जाने का मन होता है ! पुरी एक पोस्ट के बराबर ! फ़िर भी मन नही भरता ! हमको तो इसकी सोप-ओपेरा जैसी आदत लग गई ! बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंमज़ा नहीं आया इस बार। एक एक लाइन में निपटा दिया आपने अधिक से अधिक चिट्ठों को समाने के चक्कर में। कम चिट्ठें हों पर विस्ट्रुत हो तो अच्छा लगता है। ऐसी एक एक लाइन तो हमें ब्लाग्वाणी पत मिल जाती है।
जवाब देंहटाएंsunday is in air.......good
जवाब देंहटाएंइत्मिनान चर्चा काफी इत्मिनान से हुई धन्यवाद अनूप जी।
जवाब देंहटाएंआज की वन लाइना तो गजब की हैं…।:)हमेशा की तरह चर्चा बड़िया रही। कौन सी कविताएं सुनवाने वाले हैं। कवि सम्मेलन में सिर्फ़ अस्सी साल का बचपना ही देखा या कोई कविता भी रिकॉर्ड की, सुनाइए न
जवाब देंहटाएंअरे सिर्फ़ शास्त्री जी को ही क्युं हमें भी बताइए, हम कौनुहु गुनाह किए जी। ये प्रसाद हमें भी चाहिए
जवाब देंहटाएंकौन आदित्य,इस बच्चे का नाम तो हमारे बेटे के नाम से मिलता ही है, आखों की शरारत भी बिल्कुल वैसी है। GOD BLESS THE CHILD
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