नटी : चौं रे नट, तू दशैरो जाते ई इतनौ थकौ सो चौं लग्ग रौ ऐ। तौए डेंगू तो ना व्है गयौ? अपने दरशकन ने चिट्ठों की लीला का बरनन ना करेगौ का?
नट: नैक सॉंस तो ले-लैन दे, हवाल ही तो रावन मरौ ऐ। अबरार तो कह रे हैं कि रावण तुम्हें जिंदा रहना होगा। फिरदौस रावण के साथ बंजरंगी रावणन ने बी पजारना चा रिए ऐं।
नटी : कल्ल के मरते आज मरैं..बुराई तो जितनी जल्दी निपटें अच्छी हैं। दशहरे में सब अच्छा ही अच्छा है..नहीं। शराबी बी खुश निपटे नवरात्र।
नट : अरे नहीं सब अच्छा नहीं, पुतलों से पुतली डर्र री ऐं-
त्यौहारों पर हमारे कारीगरों के चेहरों पर जो चमक-चहक आती थी वो जाती रही। ग्लोबलाइज़ेशन की काली ताकतों ने ग्राहकों का चेहरा तो क्रीम लगा कर गोरा कर दिया है पर आपसी तालमेल की भावना का निचोरा कर दिया है। अभी कुछ चीज़ें हैं जो बदली नहीं है। मुझे डर है, कहीं वो भी बदल न जाएं।
नटी : जे तो बता हमारी गली, मतलब नारी वीथीं में आज कुछ ह्वै ह्वा रौ कि नहीं-
नट: हो चौं न रौ- लिवइन कानूनी बन रौ ए
नटी : का मतलब ?
नैतिकता का जिम्मा अब सब का होगा केवल और केवल उस स्त्री का नहीं जो बिना विवाह के किसी के साथ रहती हैं । अब पत्नी को भी ये देखना होगा की क्या उसको केवल और केवल सामजिक दबाव के चलते अपने पति के दोहरे जीवन को स्वीकार करना हैं या जिन्दगी को दुबारा शुरू करना हैं ।
अनुजा ने भी भोग्या वाली बात आगे ले जाने की ठानी है। रवीश टिप्पणी में कहते हैं-
मर्दों के मन की इन परतों को उधेड़ दीजिए। आर अनुराधा का ब्लॉग पढ़ रहा था। उन्होंने भी खुल कर कैंसर की बीमारी के बहाने औरतों के शरीर के प्रति मर्दों के मन के भीतर बैठी तस्वीरों को सामने रख दिया है। आप लोग खुल कर लिखिये। मर्दवादी प्रतिक्रिया से घबराने की ज़रूरत नहीं। ये सोच खुद को समझदार कहने वाले मर्दों के भीतर भी है।
शिक्षा व मौलिक प्रतिरोध की भी बातें हैं।
नटी : चल काई ना जे तो तेरी-मेरी मतलब नट-नटी की लड़ाई है चलती ही रहेगी। बाकी लीला सुना
नट : बड़ी लीला तो है बड़े बी की, बोले तो अमिताभ बच्चन के ब्लॉग की। चवन्नीचैप ने बताया है कि राहुल उपाध्याय अब अमिताभ की पोस्टों का स्वयंसेवी अनुवाद पेश कर रहे हैं। राहुल के परिश्रम की दाद दी जानी चाहिए। और हॉं अब अमिताभी भी राहुल से कुछ नाराजगी नहीं जाहिर कर सकते क्योंकि टिप्पणी में राहुल ने उनसे आज्ञा ले ली है। फिर राहुल उनके फैन हैं तथा इन प्रशंसकों को पिछली एक पोस्ट में अमिताभ ने शुक्रिया कहा-
आप - मेरा ही एक अंग बन चुके हैं। आप मेरे दु:ख और सुख अपने साथ बांटते हैं। मेरी पोशाक और मेरी यात्रा। मेरा मूड और मेरी हरकतें। मेरे विश्वास और मेरे संबंध। मेरा काम। मेरा उत्थान और मेरा पतन।
आप - मेरा दूसरा अस्तित्व है। मैं आपसे सब कुछ खोल कर कह देता हूँ। इतना जितना मैं शायद पहले कभी नहीं करता।
आप - जिन्होंने मेरा विश्वास जीत लिया और भरोसा कर लिया और दोस्ती कर ली। और मैंने आपकी भक्ति।
आप - अद्वितीय हैं। परोक्ष और अपरोक्ष रुप से। हमने मिल कर अपनी एक दुनिया बनाई है। यद्यपि, एक छोटी सी दुनिया। लेकिन एक ऐसी दुनिया जिसमें एक बहुत बड़ी भावना समा जाती है।
नटी : और शहर गॉंव की कुछ नई पुरानी ?
नट : अलग अलग जगह को रस स्वाद लेने के लिए ब्लॉगलगत अब घणी चोखी जगह हो गई है, देखो संजय बता रे हैं कि गुजरात में जलेबी फाफडा़ से मनेगा दशहरा। जो घंटों लाइन में लगकर ही मिल पाएगा। जबकि बेचारे शिवकुमारजी को कलकत्ता में ऐसा पिनका सा रावण मिला जिसे शत्रुघ्न भी मार ले। रावण तो बस दिल्ली में असली दिख्खे हैं। साढे पॉंच सौ तो एक ही साथ बैठाते हैं हम एक ही इमारत में। इधर उधर बिखरे हुओं की क्या कहें।
नट-नटी: तो भक्त जन देखें लीला ब्लॉगजगत की...चलते चलते ये देखें नए ब्लॉग
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क्यों दें पहली टिप्पणी ?
जवाब देंहटाएंहमतो आखिरी भी देने रहे ? टिप्पणी क्या मुफ़्त में आती है ?
मेहनत करो, फिर टिप्पणी माँगो ! पढ़ लिये यही क्या कम है ?
देखो देखो, कोई इसको बदतमीज़ी नहीं कहेगा, यह तो अपनी अदा ठहरी !
बहुत अच्छी रही आज की चर्चा ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंअनुजा ने भी भोग्या वाली बात आगे ले जाने की ठानी है।
जवाब देंहटाएंplease link lagaa daetey shaayad reh gayaa haen
"Interesting to read great'
जवाब देंहटाएंregards
छुट्टी के बाद का दिन.....ओर गंभीर विषय ......चर्चा अच्छी है.
जवाब देंहटाएंउन कष्टों को जो एक लडकी समाज में सहती है, अनुजा और रचना की लेखनी एक आवाज दे रही हैं ! कड़वा जरूर है मगर सच है !
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! क्या कहने .
जवाब देंहटाएंचलिए, चर्चा देखकर जान लिया कि आप घूम घाम कर लौट आये हैं. :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.
अच्छी चर्चा !
जवाब देंहटाएंअच्छा है!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रही आज की चर्चा
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