वेद में यों तो मानवजीवन के उत्थान से सम्बन्धित अनेक मंत्र है किंतु एक ऐसा मंत्र है जो बहुप्रचलित व अपने शाब्दिक अर्थ में अत्यन्त बोधगम्य है -
"असतो मा सद् गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतम् गमय"
अर्थात् मनुष्य जीवन की यात्रा की दिशा इतने सरल तरीके से बता दी गई है कि इस प्रकाश के मार्ग का पथिक बनने का यत्न हमें पल-पल करना है। असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर व मृत्यु से अमरत्व की ओर की यह यात्रा हमें पल पल करनी चाहिए। यह यात्रा भले ही असत्य पर सत्य की विजय, अन्धकार पर प्रकाश की जय और मृत्यु को अमरत्व के लिए के जाने वाली साधना द्वारा होती हो, परन्तु होती अवश्य है। दीपावली ऐसे ही उजाले बिखेरे।
कभी सोचती हूँ
वस्तुत: बात यहाँ कलम व स्याही की नहीं है, ये तो दो उपादान भर हैं, बात है अपने भीतर बैठे और जमे उस कलुष को एक सर्जनात्मक अभिव्यक्ति देने की जहाँ वह लेखक व पाठक दोनों को निर्मल कर देता है, मालिन्य के विरेचन की। पर यह विरेचन कैसा हो इसके लिए भारतीय काव्यशास्त्र ही नहीं पाश्चात्य काव्यशास्त्र में भी बहुत विवेचना मिलती है और सारे मन्थन के बाद उसी साहित्य को उत्तम साहित्य माना गया है जो लोकमंगल की साधना क माध्यम बनता है; जैसे वाल्मीकी का श्राप और पीड़ा (गालियों के रूप में नहीं अपितु रामायण के रूप में फूटा। तभी वह वाल्मीकि की आदि कवि के रूप में अमरता का माध्यम बना। बस इसी कसौटी पर हम भी दीपावली के इस पावन अवसर पर अपने अपने को कस लें कि क्या हमारा लिखा एक एक शब्द हमारी मालिन्यता को धोता है --- "औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय" ,कि वह व्यक्ति क्या कहना चाहता होगा जिसने काली स्याही ( स्याही तो स्याह ही होती है ) को रोशनाई नाम दिया । स्याह जब कलम के नोक पर लगकर लोकमंगल के लिए काम आता है तो वह रोशनाई (उज्ज्वल) हो जाता है और कालिमा से उज्ज्वलता की ओर जाने का एक मार्ग है कि उसे कलम पर आँज दिया जाए। आप कहेंगे नेट के युग में कहाँ मैं कलम और स्याही की बातें करने बैठ गई ।
यदि ऐसा न होने के कारण के रूप में कोई भी, कैसे भी तर्क हमें देने पड़ते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ऐस लिख लिख कर कोई भी कभी भी अपनी स्याही को रोशनाई नहीं कर रहा है, अपने अन्धेरे को मेटने के लिए उजाले की किरण नहीं धर रहा है; अन्धेरा उगल कर और अन्धेरा ही बढ़ा रहा है - अपने लिए भी अन्यों के लिए भी। काश! सब के अन्धेरे इस दीपावली पर परास्त हों व उजाले को विजयश्री मिले - इस दीपावली यह वरदान मिले।
वस्तुत: रात में ९ से १२.४० तक हिन्दीभारत का पहला वार्षिक अधिवेशन एक चर्चागोष्ठी के रूप में ऒनलाईन सम्पन्न हुआ यह इसके प्रथम वर्ष की पूर्णता का उत्सव मात्र ही नहीं अपितु एक ध्येय की सिद्धि का पहला चरण धरने की निश्चयात्मकता का आयोजन था, जो अत्यन्त सफलता से सम्पन्न हुआ । मेरे लिए यह दुरूह था कि उसके पश्चात् ब्लॊगजगत् को उचित समय दे कर यह रविवार्ता आप तक पहुँचा पाती, किन्तु ..रात्रि ३ बजे आरम्भ किए इस चिट्ठाचर्चा के कार्यक्रम को किसी भी तरह हर हाल में अपने निश्चित दिन पर आप तक पहुँचाने की जिद्द ने सोने नहीं दिया। वैसे आप सभी के लिए दीपावली की शुभकामना देने का अवसर भी तो चूक जाता, यदि यह आज ही नहीं हो पाता। अत: साथियो! इस बार अधिक न चाहते हुए भी चर्चा में मेरे कुछ पढ़ा न होने का भाव अवश्य आपके मन में आएगा, आ सकता है।
मुझ पर अपने इस क्रोध को शान्त करने के लिए आप इसका सहारा लें।
गिरे हुए को उठाने या उसके उठने की प्रतीक्षा न करें तो क्या करें?
करना क्या है, कानून के दायरे से नहीं बच सकते ।
हिंदुस्तान टाइम्स को ललकारा तोमर जी
आईन्स्टीन की हिन्दी वर्तनी
पलायनवाद की प्रवृत्ति और उसके सन्दर्भ
सुखी रहना है तो - आप भी करें - पत्नी प्रसंगम
लुप्तप्राय - सारथी ही रथ छोड़ कर ?
बधाई की प्रतीक्षा में
सतर्क रहें क्योंकि
(कुमार अम्बुज)जो उन्नीस सौ चौहत्तर में और जो
उन्नीस सौ नवासी में
करते थे तुमसे प्यार
उगते हुए पौधे की तरह देते थे पानी
जो थोड़ी-सी जगह छोड़ कर खड़े होते थे
कि तुम्हें मिले प्रकाश
वे भी एक दिन इसलिए दूर जा सकते
हैं कि अब
तुम्हारे होने की परछाईं
उनकी जगह तक पहुँचती है
तुम्हारे पक्ष में सिर्फ यही उम्मीद हो सकती है
कि कुछ लोग
तुम्हारे खुरदरेपन की वज़ह से भी
करने लगते हैं
तुम्हें प्यार
जीवन में उस रंगीन चिडिया की तरफ देखो
जो किसी एक का मन मोहती है
और ठीक उसी वक्त एक दूसरा उसे देखता है
अपने शिकार की तरह।
इस बार के लिए अभी इतना ही। जिनकी चर्चा चाहते हुए भी नहीं कर पाई हूँ वे क्षमा करें। इस ३ घन्टे से चली आ रही चर्चा का समापन आपकी रुष्टता से तो कदापि नहीं करना था... परन्तु कुछ बात ऐसी है कि सूर्योदय के समय ही सही थोड़ी नींद ले लेनी चाहिए क्या पता उठकर देखूँ तो त्यौहार पर भी अधूरी रविवार्ता के लिए शुभकामनाएँ मिलने से रह जाएँ।
सभी को पुन: धनतेरस, यम चतुर्दशी ( महाराष्ट्र में इस दिन सूर्योदय से पूर्व सभी को नहा-धो लेना पड़ता है) , दीपावली व भाईदूज की अशेष मंगल कामनाएँ ।
भाषा भनिति भूत भल सोयी सुरसरि सम सब कर हित होई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंदेर रात को कार्यक्रम से लौटकर चर्चा करना! आप धन्य हैं। बहुत सुन्दर लिखा। अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा में एक नया आयाम आ गया है आपकी शैली द्वारा!!
जवाब देंहटाएंदीपावली मुबारक
-- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
सप्ताह में एक दिन भी नियमित लिखना बहुत बड़ा बंधन है। फिर चर्चा बड़ा काम। अधिक से अधिक को समेटने में कितना पढ़ना पड़ता होगा यह समझा जा सकता है। आप का ही नहीं चर्चा के सभी ब्लागरों का प्रयास स्तुत्य है। सभी ब्लागर साथियों को दीपावली का अभिनन्दन।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल दुरुस्त बात !
जवाब देंहटाएंसारगर्भित चर्चा। आपको भी धनतेरस की बधाई।
जवाब देंहटाएंदेवी जागरण का बड़ा माहात्म्य बताया जाता है, कविताजी !
जवाब देंहटाएंअब यदि, देवीजी स्वयं ही चिट्ठाचर्चा-जागरण में लीन हों.. तो ?
हम अदना ब्लागरों की बल्ले-बल्ले होनी ही है !
सो, यहाँ दिख ही रहा है !
एक चुटकी हो जाये ? हो जाने दीजिये..
यदि ऊँघती निंदियायी आँखों से की गयी चर्चा ऎसी हो.. तो,
जागती आँखों से की हुई चर्चा का आलम क्या होगा ?
वह भी देखने पढ़ने को मिलेगा ही, कभी..
आनन्दम आनन्दम ।
हिन्दी - इन्टरनेट
जवाब देंहटाएंकी तरफ से आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
देर से लौटकर भी चर्चा-वाह!! बहुत बढ़िया चर्चा की.
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
बहुत मेहनत का काम है और बहुत सुन्दर अंजाम दिया है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा... आपको भी शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंएक गहरी चर्चा के लिए आभारी हूँ आपका
जवाब देंहटाएंआपको भी धनतेरस, यम चतुर्दशी ,, दीपावली व भाईदूज की अशेष मंगल कामनाएँ ।
दिपावली की शूभकामनाऎं!!
जवाब देंहटाएंदिपावली की ढेर सारी बढाईयां
शूभ दिपावली!!