दीपावली के मौके पर लोगों का लिखना-पढ़ना ,टिपियाना-विपियाना कम हो गया।
सब बाजार और सेंसेक्स की तरह लुढ़कायमान हैं। लेकिन हम चर्चा तो करेंगे। न करेंगे तो चर्चा होगी। आफ़त है न! करो तो चर्चा , न करो तो चर्चा।
अनुपम मिश्र जल संचयन संरक्षण के क्षेत्र के जाने-माने व्यक्ति हैं। उन्होंने हिन्दू-मुसलमान वाकये पर भी कुछ विचार व्यक्त हुये हुये होंगे। दो साल पहले कही उनकी किसी बात को लेकर एक जिद्दी धुन बज रही है। अनुपम मिश्र के समर्थन और विरोध में कुछ न कहते हुये यह लगता है कि एक पर्यावरणविद क्या जीवन के हर क्षेत्र में संपूर्ण होगा? हिन्दू-मुसलमान और दूसरी सांप्रदायिक समस्याओं पर उनके कुछ सही-गलत विचार होंगे उनको बिना पूरी बात सामने रखे उनके काम को सड़ांध युक्त बताना कैसे ठीक है?
एक कविता जो इस बात से कहीं ताल्लुक नहीं रखती कैलाश बाजपेयी जी की याद आ रही है:
दर्पण पर शाम की धूप पड़ रही है
घिर कर उतरती शाम से बेखबर
जिद्दी थकी एक चिड़िया
अब भी लड़ रही है अपने प्रतिबिम्ब से।
तुम जो कांच और छाया से जन्मे दर्द को समझते हो
तो तरस नहीं खाना
न तिरस्कार करना
बस जुड़े रहना
इस चिड़िया की जूझन की के दृश्य से।
जिद्दी थकी चिड़िया के बरअक्स एक बकरी है जो वहां जाती है जहां दूसरी बकरियां नहीं जातीं। ज्ञानबकरी के बहाने ज्ञानजी कहते हैं:
इतनी नार्मल-नार्मल सी पोस्ट पर भी अगर फुरसतिया टीजियाने वाली टिप्पणी कर जायें, तो मैं शरीफ कर क्या सकता हूं!
अब आफ़त है। कुछ कहो तो आफ़त, न कहो तो आफ़त। ज्ञानजी झाम फ़ैला देते हैं। न छेड़ो तो परेशान रहते हैं, छेड़ो तो कहते हैं देखो शरीफ़ को छेड़ रहे हैं ये। लोग शरीफ़ कहलाने के लिये बकरी-शरणागत हो जाते हैं।
शरीफ़ों की बातचीत में ही समीरलाल अपना खुलासा खुद करते हैं-
समय का टंटा, पता नहीं क्यूँ, मेरे पास कभी नहीं रहता. ऑफिस भी जाना होता है जो लगभग दिन के १२ घंटॆ ले लेता है-याने सुबह ६ से शाम ६-घर से ६०-७० किमी की दूरी. फिर घर पर भी यहाँ नौकर तो होते नहीं तो गृहकार्यों में हाथ बटाना होता है (यह मैं पत्नी की तरफ से मॉडरेट होकर कह रहा हूँ वरना हाथ बटाना कि जगह करना लिखता) :))
फिर कुछ पढ़ना, कुछ हल्का फुल्का लिखना, टेक्नोलॉजी पर लेखन- बाकी सामाजिक दायित्व,,और इन सबके टॉप पर टिपियाना भी तो होता है. :)
यह सब हो जाता है लेकिन अपनी बारी आने पर चिट्ठाचर्चा नहीं हो पाती। सिर्फ़ छुटकी पोस्ट हो जाती है।
आलोक पुराणिक आज ज्ञान बांटने पर तुले हैं:
1- सत्य सिर्फ सत्य ही नहीं, रोचक भी होना चाहिए।
2- सूखे चरित्र की बात करने के वाले के पास, सिर्फ चरित्र बचता है। इंटरेस्टिंग सत्य बताने वाले के पास कई अभिनेत्रियां होती हैं और सत्य अवार्ड भी।
3- अफेयर जास्ती, तो लक्ष्मी आस्ती।
सुनील दीपक कम लिखते हैं लेकिन जब लिखते हैं मन से लिखते हैं। अपने पिछले लेख में उन्होंने किताबें पढ़ने वाली औरतों के बारे में लिखा। आखिरी में वे कहते हैं:
दुनिया के देशों में अगर देखा जाये कि सरकारें स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए देश की आय का कितना प्रतिशत लगाती है तो भारत सबसे पीछे दिखता है, बहुत सारे अफ्रीकी देशों से भी पीछे. जब तक यह नहीं बदलेगा, भारत सच में विकसित देश नहीं बन पायेगा.
सुनील जी के इस लेख का जिक्र किन्हीं विजेन्द्र सिंह चौहान ने भी किया है।
समांतर कोश और द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी के रचयिता अरविंद कुमार उन चंद लोगों में हैं जो मानते हैं कि ब्लागिंग की संभावनायें अपार हैं। उनका आत्मकथ्य पढ़ने पर पता चलता है कि बचपन की घटनायें आगे आने वाले समय में किये जाने वाले बड़े कामों की नींव डालती हैं। यह आलेख लम्बा है लेकिन पठनीय च संग्रहणीय है।
दीपावली के मौके पर अभिषेक कुछ गणितीय रंगोली पेश करते हैं। मनविन्दर का सवाल है- आखिर क्यों धमकाया किरण को लखनऊ पुलिस ने ?????
ताऊ को उनके दोस्तों ने पीने की लत लगा दी तो उसके लिये पैसा पाने के लिये वे गणेश जी के कान ऐंठने लगे:
अब ताऊ जैसे ही मन्दिर में आया और सामने गणेश जी को देखा तो उसका माथा ठनक गया ! और सोचण लाग गया की यो शिव जी कित चल्या गया ? और थोड़ी देर तो देखता और सोचता रहा ! फ़िर गणेश जी के कान उमेठता हुआ बोला - क्यो रे छोरे ? घणी देर हो गी सै तेरे बापू का इंतजार करते करते मन्नै , सीधी तरिया बता - तेरा बापू कित गया सै ? उसतैं मन्नै पव्वै के पिस्से चाहिए ! वो नही सै तो इब तू निकाल ! मैं इब और ज्यादा इन्तजार नही कर सकदा ! मेरा टेम हो लिया सै खीन्चण का !
प्रमोदजी अस्थिरता पैदा करने वाली ताकतों का खुलासा करते हुये कहते हैं:
आज सुबह से दस-बारह खोजी रपटों को बांचने के बाद अदबदाकर मन कर रहा है कि कहीं खुले में बीस लोगों के बीच जाकर खड़े हों और जोर-जोर से कहना शुरू करें कि इस देश में अस्थिरता पैदा करनेवाली सबसे बड़ी ताक़त कोई है तो वह इस देश की सरकार है. मगर, देखिये, ऐसी सीधी बात कहने में भी बुद्धि आड़े आ रही है!
अजित बडनेरकर शब्द सरताज हैं। जिन शब्दों को आप बचपन से बोलते-बरतते चले आ रहे हैं उनके बारे में जब वे बताते हैं तो पता चलता है- अरे अच्छा इसका मतलब यह होता है। हमें तो पता ही न था। आज वे छोटे पर मेहरबान हैं:
छोटा शब्द संस्कृत के क्षुद्रकः का रूप है जो क्षुद्र शब्द से बना। इसमे सूक्ष्मता, तुच्छता, निम्नता, हलकेपन आदि भाव हैं। इन्ही का अर्थविस्तार होता है ग़रीब, कृपण, कंजूस, कमीना, नीच, दुष्ट आदि के रूप में। अवधी-भोजपुरी में क्षुद्र को छुद्र भी कहा जाता है। दरअसल यह बना है संस्कृत धातु क्षुद् से जिसमें दबाने, कुचलने , रगड़ने , पीसने आदि के भाव हैं। जाहिर है ये सभी क्रियाएं क्षीण, हीन और सूक्ष्म ही बना रही हैं। छोटा बनने का सफर कुछ यूं रहा होगा – क्षुद्रकः > छुद्दकअ > छोटआ > छोटा।
नीलिमा खबर देती हैं-चिट्ठाजगत में हुए 5000 चिट्ठे! इनमे सक्रिय कितने हैं यह भी एक रोचक आंकड़ा होगा।
लावण्याजी को देखिये ,देखते रह जायेंगे। लेकिन ये केवल डा.अनुराग के लिये क्यों लावण्याजी?
गोरखपांडे का एक बेहतरीन समूह गीत जिसके बारे में विमल वर्माजी कहते हैं-महेश्वर जी की आवाज़ सुनकर आंखे नम हो गई...महेश्वर जी के साथ बीते वो दिन आंखो के सामने घूम आ गये...अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
एक लाइना
- किताबें पढ़ने वाली औरतें : पहले भी थीं!
- आखिर क्यों धमकाया किरण को लखनऊ पुलिस ने ?????: ताकि पुलिस का हड़काने का अभ्यास हो सके
- दिवाली पर गणितीय रंगोली !: क्या समझ में आ जायेगी?
- जोनाथन लिविंगस्टन बकरी : चढ़ गई है ज्ञानखंड़हर पर
- छुटकू की खुर्दबीन और खुदाई : क्या चीज है भाई!
- अस्थिरता पैदा करनेवाली ताक़तें.. : बहुत मेहनत करती हैं भाई!
- अरे छोरे, सीधी तरिया बता - तेरा बापू कित गया सै ? :सुबह से पोस्ट लिखी है अभी तक आकर टिपियाया नहीं
- चिट्ठाजगत में हुए 5000 चिट्ठे: उड़ी बाबा
- क्या आपका मन नहीं करता 'ठां' करके गले मिलने का ? :करता है लेकिन कोई ठां पार्टनर नहीं मिलता
- वकीलों के दुर्दशा अब देखने लायक नहीं: कोई दर्शनीय दु्र्दशा दिखाइये फ़िर तो
- औरतों की कवितायें : औरतों की हैं,औरतों के बारे में हैं, औरतों के लिए हैं। मर्द पड़ेंगे तो समझ लें!
- आप का क्या कहना है? : यही कि हमने सारथी को संरक्षण दिया?
- इस महिलाओं से कुछ सीखना होगा : सीख लो कुछ करना तो है नहीं!
- हुआ तिमिर का देश निकाला दीपक जलने से :तिमिर दीपक तले शरण लिये बैठा है चपक के
- जरा सोचिये, आपका २० रुपया क्या कर सकता है? : वो आपके लिये दस के दो नोट ला सकता है!
- अफेयर जास्ती, लक्ष्मी आस्ती: मजनू बन, पैसा कमा
- सबसे छोटा होने के कई फा़यदे हैं!!: हर जगह छुटकू डिस्काउंट मिलता है।
- सावधान !! यहॉं जेबरा क्रौसिंग नहीं होता !! : क्रासिंग होता तो विश्राम करते
- सड़ांध मार रहे हैं तालाब : बदबू ब्लाग तक फ़ैली है
- अंतिम इच्छा का आखिरी साल: सब कुछ डिस्काउंट पर
- और रेहड़ घाटी में उतर चुके हैं : और छटपटा रहे हैं!
- लुच्चों ने मेरी मुल्क की चढ्ढी उतार ली : मंहगी वाली वी.आई.पी. की थी
- अपने सच्चे प्यार से शादी मत कर बैठना! : वर्ना फ़िर कभी प्यार न मिलेगा
- ब्लॉगर तू उतावला क्यूँ है? :लिखने के लिये इत्ता बावला क्युं है
मेरी पसन्द
चित्रकारों, राजनीतिज्ञों, दार्शनिकों की
दुनिया के बाहर
मालिकों की दुनिया के बाहर
पिताओं की दुनिया के बाहर
औरतें बहुत से काम करती हैं
वे बच्चे को बैल जैसा बलिष्ठ
नौजवान बना देती हैं
आटे को रोटी में
कपड़े को पोशाक में
और धागे को कपड़े में बदल देती हैं।
वे खंडहरों को
घरों में बदल देती हैं
और घरों को कुंए में
वे काले चूल्हे मिट्टी से चमका देती हैं
और तमाम चीज़ें संवार देती हैं
वे बोलती हैं
और कई अंधविश्वासों को जन्म देती हैं
कथाएं लोकगीत रचती हैं
बाहर की दुनिया के आदमी को देखते ही
औरतें ख़ामोश हो जाती हैं।
शुभा -नारी ब्लाग से साभार
और अंत में
कुछ कहना नहीं है सिवाय दीवाली मुबारक के। हमें पता है कि सब बहुत बिजी हैं। किसी के पास कोई काम नहीं है सिवाय बिजी रहने के।
आप इत्ता पढ़ लो। तब तक हम और आगे का हाल बताते हैं।
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअनूप भाई !
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनायें !
अब गूगल से अनुदित आलेख भी चढने लगे हैं ब्लाग पर। वकीलों की दुर्दशा देखने गए। कुछ समझ नहीं आया।
जवाब देंहटाएंदीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
यह दीपावली आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए।
चाँगली चर्चा झाली।
जवाब देंहटाएंचाँगली चर्चा झाली पा तो गये..
जवाब देंहटाएंअब हमहूँ से एक टिप्पणी लेहौ ?
एक दूसर बकरी ज्ञानमंडी से ले आबै, तबहिन टिप्पणी करब ।
हमार पहिले वाली तो कोनो हलाल कई दिहिस !
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंमर्द पड़ेंगे तो समझ लें!
जवाब देंहटाएंपड़ेंगे या पढेगे??
गिरे हुए ही उठेगे
दिवाली शुभ हो
लो जी सर जी आगये वसूली करके ! :) हम फोकट नही टिपियाते ! पहले दो तीन बार एक लाईना पढ़ कर मजा लेते हैं तब कहीं जाकर टिपियाते हैं ! लाजवाब !
जवाब देंहटाएंआपको परिवार व इष्ट मित्रो सहित दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
लुढ़कायमान? अजी, आप तो लुढ़कते पड़कते चिठ्ठाजगत को दस गज की चर्चा के फलक्रम से सीधा खड़ा किये रहते हैं।
जवाब देंहटाएंआपके शरीफत्व का जवाब नहीं! :)
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं अनूप जी.
जवाब देंहटाएं"आप का क्या कहना है? : यही कि हमने सारथी को संरक्षण दिया?"
जवाब देंहटाएंअरे, आप को यह बात मालूम नहीं थी क्या? कोई बात नहीं, अब तो मालूम हो गया न?
बीजी-बीजी के खेल में पोस्ट तो कम आ रहे हैं लेकिन रोचक हैं... चर्चा में मजा आया, एक लाइना तो गजबे है. खासकर (# जोनाथन लिविंगस्टन बकरी : चढ़ गई है ज्ञानखंड़हर पर :-)
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपने त्यौहार के मौसम में समय निकाल कर चर्चा की..आपका समर्पण भाव अनुकरणीय है. हार्दिक अबिनन्दन, बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंआपको तथा आपके परिवार को दीपोत्सव की ढ़ेरों शुभकामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ, प्रसन्न रहें। यही मंगलकामना है।
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