सपनन के लोक में रहत हैं, भइया एक विवेक
ढेर कहानी कहि गये,फ़िरि किन्हिन उई रिक्वेस्ट एक
किहिन्ह रिक्वेस्ट उई एक,कि चर्चा रोज करो जी
कैसे करना, क्या करना है, वो तुम जानो जी
कह ’अनूप’ कैसे होयेगा , जो कहते भाई विवेक
लेकिन शुरू तो कर दिया, अब चलो सपनन के लोक!!
अब क्या है कि ब्लाग जगत में काम का ऐसा है कि एक ढूंढों हजार मिलते हैं। बच के निकलो तो टकरा के चलते हैं। आज कुश धांसू च फ़ांसू चर्चा किये। धांसू इसलिये कि अच्छी किये। फ़ांसू इसलिये कि हमें फ़ंसा दिये। फ़ंसाने का ये कि उनकी चर्चा से ही मुझे पता चला कि विवेक सिंह चाहते हैं कि हम फ़ालतू न बैंठें और रोज चर्चा का पुण्य काम करते रहें। हालांकि विवेक ने लिखा था-
आप सभी ब्लॉगर भाइयों/भाभियों से भी हम अनूप जी से ऐसी ही रिक्वेस्ट करने की रिक्वेस्ट कर रहे हैं . आप रिक्वेस्ट करेंगे कैसे नहीं हम आपसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं .
लेकिन लगता है कि विवेक को उनकी कोई भाभी सीरियसली लेती नहीं(शायद इसलिये कि वो हमारी संगत में दिखते हैं कभी-कभी) इसलिये उनकी रिक्वेस्ट पर किसी भाभी ने कोई रिक्वेस्ट नहीं की। अलबत्ता कुछ भाई लोग जरूर कहने लगे-हां जी, हां जी ! होना चाहिये जी। बहरहाल हम विवेक की फ़रमाइश पर चर्चा के लिये हाजिर हैं।
हम कोशिश करेंगे कि सुबह की चर्चा हमारे साथी चर्चाकार और मैं जैसी करते आ रहे हैं वैसी करते रहें। इसके अलावा शाम को फ़रमाइशी चर्चा का कार्यक्रम चलता रहे। मैं प्रयास करूंगा कि रोज शाम को थोड़ी बहुत फ़्री स्टाइल करता रहूं। कुश से भी मैंने अनुरोध किया है कि वे भी रोज एकाध सवाल-जबाब दाग दिया करें। तरुण से भी अनुरोध है कि शनीचरी चर्चा के अलावा नियमित एक-दूजे के लिये ठेलते रहें। समीरलाल का मुंडलिया अभ्यास भी जारी रहे तो सोने में नयी पालिश। मसिजीवी, नीलिमा, सुजाता भी इसी तरह अपने नियमित दिन के अलावा जब मन आये शाम को चर्चा करते रहें। अब चूंकि कहा गया है कि बिना मेहनत के कुछ नहीं हासिल होता सो विवेक से गुजारिश है कि वे अपना पद लिखने का हुनर चर्चा में लगायें और रोज के ब्लागजगत की थीम (जिस मुद्दे पर ज्यादा पोस्ट लिखीं जायें या जो मुद्दा गरम हो) पर एक पद रोज लिखकर हमें भेजें ताकि हम उनके सहयोग से चिट्ठाचर्चा का राग फ़ैला सकें।
बहरहाल अब मौके का फ़ायदा उठाते हुये कुछ चर्चा कर डालते हैं, जो होगा देखा जायेगा। है कि नहीं?
यह संयोग ही रहा कि अभय तिवारी से उनके मुम्बई रहते हुये जित्ती बात हो जाती है उत्ती बात उनके करीब दो हफ़्ते के प्रवास के दौरान न हो पायी। न ही मुलाकात। लाहौलबिलाकूवत। इससे गुस्सा होकर उन्होंने दो ठो नये शगल पाल लिये। अब बताओ भला टहलना और चिड़ियां देखना कोई शौक है? यही नहीं उन्होंने दो ठो अंग्रेजी किताब भी पलट डालीं और बता दिया कि क्यों दिए जाते हैं पुरस्कार?।लेकिन सबसे काम की बात उन्होंने महीन अक्षरों में लिखी:
ओड़िसा में पिछले दिनों हुई बर्बरता के लिए बजरंग दल और अन्य हिन्दू संगठनो की जितनी निन्दा की जाय कम है। उन पर सरकार प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती, उसके पीछे शुद्ध राजनीतिक कारण हैं। मगर धर्म परिवर्तन में संलग्न चर्च की संस्थाएं, बजरंग दल की तरह आपराधिक सोच के भले न हों पर निहायत निर्दोष मानसिकता से अपना कार्य-व्यापार चला रहे हैं , ऐसा सोचना भी बचकाना होगा।
प्रमोदजी जब लिखते हैं:
दिखेगा कैसा तो बियाबान, हज़ारों वर्षों का इतिहास से बाहर सूना पड़ा रेगिस्तान है, नशे की नाद से जबड़ा लगाये मैं कोई काफ़िर ऊंट हूं अचानक मचलकर सर्च इंजन में टीपकर पकड़ना चाहता हूं राष्ट्रीय परायेपन का ठीक-ठीक बयान, अपने दुचित्तेपने का असंभव अनुसंधान, किसी तरह हाथ आये सिरा ऐसी कोई पहचान. अभी-अभी समुंदर से भागकर बाहर आये तीन बच्चे हैं, लंगोट लहकाते पेटें खुजा रहे हैं, मालूम नहीं उनका मज़ाक है या मेरी मदहोशी, लग यही रहा है मेरी आंखों में अपनी पतंगें उड़ा रहे हैं.
तो उनके लिये दीपक सही ही लिखते हैं-अद्भुत संयोजन !!आपको समझने के लिये समय की दरकार होती है!!
रवीशकुमार ने आज दैनिक हिन्दुस्तान के अपने वुधवारीय कालम में लोकरंग और कुछ अलग सा ब्लाग का जिक्र किया। रवीशकुमार अपना ग्यारह बजे का एसएमएस पढ़ाते हैं:
शाम होने से पहले ही बिहार में
२५ लाख विस्थापित हो चुके हैं
रात होते होते तमाम कंपनियों के
२५ हज़ार लोगों की नौकरियां खतम
सेंसेक्स और सेक्स के बीच झूलते
हुक्मरानों ने ताकत की दवा फेंक दी है
बाज़ार में खुलेआम सबके लिए मुफ्त
वो सवाल भी करते हैं:
ग्यारह बजे का एसएमएस तभी क्यों आया
जब बाज़ार बंद हो चुके थे, दलाल सो चुके थे
बैंक का ताला सुबह दस बजे तक के लिए बंद
जेट एयरवेज़ के पायलटों का चेहरा एकदम से
विस्थापित किसानों की रैली में अचानक दिखा
मेरे सारे सपने उस एसएमएस की दो लाइनों में
टूट कर चूर चूर हो कर बिखरे पड़े थे
अब एक और ब्लाग का जिक्र जो मुझे बहुत पहले करना चाहिये था लेकिन छूटता गया। पता नहीं आप लोगों में से कितने लोगों को शुऐब के ब्लाग के बारे में पता है। शुऐब ने खुदा सीरीज की जो पोस्टें लि्खीं हैं उनको, बावजूद वर्तनी की कुछ खटकने वाली कमियों के, देखकर जलन होती है किस बेबाकी से ये लिख लेता है यह सब। काफ़ी दिन के अंतराल के बाद शुऐब ने खुदा सीरीज फ़िर से लिखना शुरू किया और देखिये खुदा के हाल बने रखे हैं लोगों ने:
अपनी खोपड़ी खुजाते हुए ख़ुदा ने फर्मायाः ठीक है, यूं ही आंखें फाडे देखते रहोगे कि धर्ती पे उतरने की इजाज़त भी दोगे? तौबा, कबसे हवा मे लटके हैं पाजामा का नाडा भी ढीला होने को आया। कैसी बद्तमीज़ कौम हो ख़ुदा को हवा मे लटका देख रहे हो!! यकीन करो कि हम सभी ख़ुदाओं के ख़ुदा हैं अब तो इस धर्ती पे क़दम रखने दो….. हे देढ सौ करोड की आबादीयों!! जिसे तुम अपने दिलों मे याद करते हो, जिसकी ख़ुशी के लिए रात को उठकर पूजापाठ करते हो, जिसके डर से तुम तौबा करते हो, जिसे तुम भलाई करके हम पर ऐहसान समझते हो, जिसकी तबलीग़ मे रात दिन झक मारते हो……. वल्लाह हम वही ख़ुदा हैं जिसका नाम लेकर तुम दूसरों को डराते हो, ख़ुदा का नाम लेकर लोगों को धर्मों मे बांटते हो, जिसकी क़यामत का तुम इन्तेज़ार करते हो - अपनी दुआओं मे जिससे मालवदौलत की उम्मीदें लगाए बैठे हो….. हां हम ही वो ख़ुदा-ईश्वर हैं जो इस वक़्त हवा मे अटके हैं।
विवेक उधौ से संदेशा भिजवाते हैं:
ऊधौ इतनी कहियौ जाइ !
कभी भूलकर भी मुरलीधर बृज की ओर न आइ ।
दूध, दही, लाखन कौ माखन गयौ फ्री में खाइ ।
इस बीच कर्मनाशा ब्लाग का एक साल पूरा हुआ। सालगिरह पर सिद्धेश्वरजी को बधाई।
एक लाइना
- हो आये वाशिंग्टन-आप भी सुनो!! :हम क्या अपने कान के दुश्मन हैं जो सुनें?
- गिरते मार्केट में बृज :ने उठ के मोहन को वसूली की नोटिस भेज दी
- सुंदर कितना लगता है, पूनम का ये चांद,? शहर से बाहर आओ तो :पता चले
- ताऊ ने करवाया ताई और भैंस का बीमा:और अब क्लेम के इंतजार में बैठा है
- लो जी आ गई चिटठा चर्चा :.......खाली जगह आप भरें
- ग्यारह बजे का एसएमएस : बहुत लम्बा है जी
- सिपाही का तो घर मत जलाओ:कुछ तो शर्म करो
- आज नये कुछ बिम्ब उभारूँ : और नयी किताब छपवाने की तैयारी करूं
- फुर्सत वाली चाय :फ़ुरसतिया के यहां नहीं कुश के यहां मिलती है
- क्या पति भी करवा चौथ का व्रत करे: बाइस घंटे तो कर ही सकता है केवल दो घंटे खाये दिन में
- चांद को पिघलाकर कान का फूल बनाना :बड़ा बेढब काम है
- फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में:
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह, किताबें जल न जायें कहीं - संसार का सबसे मीठा शब्द ""माँ"" :जिससे कभी डायबिटीज नहीं होती
- गाँव का बदलता स्वरूप : बहुत तेजी से बदल रहा है जी
- क्या आपको पता है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं? : ये तो कोई बुद्धिजीवी बतायेगा
- एक सेमीनार की बर्बादी देखने का यह अनोखा मौका था: और आयेंगे मौके बार-बार
- विश्वनाथ जी का विचित्र प्रस्ताव :क्या इसलिये कि उन्होंने पूछा नहीं कि तलाक कैसे मिल सकता है!
- अपराध की राह पर हैं लोग मेरे गांव के : बड़ी स्पीड से हैं वो
- बुखार की देन है यह गजल : तभी इसका माथा बहुत गरम है
- हिन्दुस्तानी या भारतीय: बूझो तो जाने
टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी:
- टिप्पणी: अनिल पुसदकर
अनूप जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आपने कम-से-कम सती होने की खबर को महत्व दिया। आपने उस घटना के बाद की तस्वीर को भी चर्चा मे जगह दी,वो तस्वीर साफ़ कह रही है पुलिस की मौजूदगी मे भी वहां पूजा-अर्चना चल रही है।इस गंभीर विषय को स्थान देने के लिये छत्तीसगढ की जनता की ओर से मै आपका आभार व्यक्त कर रहा हूं।आपकी चर्चा पढ कर ऐसा लगता है अब कुछ बाकी नही रहा पढने को।बहुत समय और दिमाग खपाने वाला काम कर रहे हैं आप जो निश्चित रूप से चिट्ठे की दुनिया को आगे बढा रहा है।एक बार फ़िर आभार आपका।
प्रतिटिप्पणी: शुक्रिया। समय और दिमाग (मानने में कोई हर्ज?)है इसलिये खप जाता है। - टिप्पणी: दिनेशराय द्विवेदी:
बाबू, इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते।
यह क्या बात हुई? यह चर्चा क्या आप की रचना नहीं है?
विवरण, चर्चा, आलोचना आदि का बहुत महत्व है, और ये स्वतंत्र रचनाएँ भी हैं।
प्रतिटिप्पणी: हमे ये पता ही नहीं था कि ई सब होता है। वैसे आप देखिये तो हम ये भी तो लिखे थे-चर्चा का मजा ही और है। उसका क्या मतलब होता है? - टिप्पणी:कविता वाचक्नवी :
सम्वाद बना रहे,
शुभकामनाएँ।
प्रतिटिप्पणी: संवाद बना है। शुक्रिया! - टिप्पणी Gyandutt Pandey
घणी कँटिया फंसाऊ चिठ्ठा चर्चा है।
और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित:-
तुम मुझे टिप्पणी दो; मैं तुम्हें प्रति टिप्पणी दूंगा!
हमेशा की तरह जानदार शानदारश्च!
प्रतिटिप्पणी: आप सुभाषजी की बात पूरे मन से मानते कहां हैं? आप तो सेलेक्टेड प्रतिटिप्पणी करते हैं! धन्यवाद श्च शुक्रिया! - टिप्पणी :Hari Joshi:पुण्य जी से बाटला हाउस और जामिया नगर की और आपसे चिट्ठाजगत की शोभा है।
प्रतिटिप्पणी: शुक्रिया,हमारी शोभा तो आपके आने से बढी हरीजी! - टिप्पणी: रंजना [रंजू भाटिया]
बात होती रहे यूँ वही अच्छा है ...:) शुभ कामनाएं
प्रतिटिप्पणी: बातें हो रही हैं न!शुक्रिया! - टिप्पणी :जितेन्द़ भगत
very nice चर्चा ji, पर आप इस पर प्रति टिप्पणी मत देना। कुछ ढंग से लिखने का दबाव बन जाता है।
प्रतिटिप्पणी नहीं: हम प्रतिटिप्पणी नहीं दे रहे हैं। खाली शुक्रिया कह रहे हैं। अब दबाब खतम? - टिप्पणी:विवेक सिंह:बेहतरीन चर्चा रही .
प्रतिटिप्पणी : ये भली कही। शुक्रिया। - टिप्पणी शास्त्रीजी:
"प्रति टिप्पणी: शास्त्रीजी हमें जो लगा हमनें कहा। ये खुराफ़ाती मन ऐसे ही देखता है। सबसे ज्यादा सर फ़ुटौवल एकता परिषद में होती है। सबसे ज्यादा लफ़ड़ा समझाने वाले लोगों के चलते होता। और .... अब क्या कहें? आप फ़िर सफ़ाई देंगे। :)"
प्रिय अनूप, कुछ लोगों को ईश्वर ने इतने खास तरीके से बनाया होता है कि वे अपने मित्रों के लिये हमेशा प्रोत्साहन के कारण बनते रहते हैं. आप उन लोगों में एक हैं.
यह सफाई नहीं, प्रोत्साहन है!! अनुमोदन है!!!
प्रतिटिप्पणी : आप कहते हैं तो आज मान लेते हैं शास्त्रीजी! रोज-रोज मौज लेना ठीक नहीं! - टिप्पणी: अभिषेक ओझा:
"इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते" ऐसा सवाल मन में आना तो स्वाभाविक ही है... पर जैसा की आपने कहा है की चर्चा का मजा ही कुछ और है. चर्चियाते रहिये... इसे पढने का मजा भी सच में कुछ और है. (इसका मतलब ये मत लगा लीजियेगा की आपकी लिखी अपनी बातों को पढने में मजा नहीं आता !)
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और सुनहरा अनुपात तो चकाचक है सरकार, आजकल अक्सर आपकी चर्चा में भी दीखता है ! हम ज़रा छुट्टी पर चले गए थे... और इतने दिनों इन्टरनेट एक्सेस मोबाइल से ही कर पाते थे... बड़ी मुश्किल से टेढे-मेढे हिन्दी फॉण्ट दिख पाते थे.
प्रतिटिप्पणी: शुक्रिया!जरा यहां रहा करो भाई! अनुपात सही रहेगा। - टिप्पणी: दीपक
फ़ुरसतीया जी लेकर आये परफ़ेक्ट चिठ्ठा चर्चा
लंबा लिखकर बढाया अपने इंटरनेट का खर्चा
जबरीया लिखने वाले ने ठेला एक लाईना रोग
इतना अच्छे लिखै लगोगे तो जलने लगेंगे लोग ॥
प्रतिटिप्पणी: अब जलने वाले जला करें/ ज्यादा जलें तो बर्नाल अपने मला करें। - टिप्पणी:ताऊ रामपुरिया
शुक्ल जी आपके टी.वी. चैनल (चिठ्ठा चर्चा ) का एक सीरियल एक लाईना तो सुपर हिट हो ही गया ! और आपने जो दूसरा सीरियल "टिपणी प्रति टिपणी" लांच किया है , उसके तो पूत के पाँव पालने में ही दिख रहे हैं ! ये तो कमाल का आईडिया है आपका ! इसमे हर टिपणी कार को एक निजी फिलिंग आती है और उसे लगता है की हाँ इस मंच पर मेरी सहभागिता है ! आपकी सबको साथ लेकर चलने की ये कोशीश बहुत घणा रंग लाएगी ! आपको बहुत शुभकामनाएं !
प्रतिटिप्पणी : ताऊजी, आप पढ़ते रहो हम पढ़वाते रहेंगे। आईडिये भतेरे हैं। एक दिन ताऊ-ताई भी चर्चा करते पाये जायेंगे। भैंस के साथ। मज्जे आयेंगे। शुक्रिया आप सहयोग का। - टिप्पणी: Tarun :
ye sameerlal naam ka bachha hamesha udantashtari me baith ur jata hai aur hamesha class gol kar deta hai, Humari request hai ki ye bachha agar aage se class gol kare to use har din class me aane ki saja sunayi jaaye.
प्रतिटिप्पणी:सही है। बच्चा अभी तक कुछ कविता-फ़विता गाकर लोगों को बोर करना सीख रहा था। अब उसमें महारत हासिल करने के बाद और कोई नया बहाना बचा नहीं है बच्चे के पास। अब जल्द ही नियमित होगा वर्ना वही सजा दी जायेगी जो आपने बताई! - टिप्पणी: रौशन
हमें तो लगता है कि पुण्य प्रसून जी अब अपने लेखन पर की जाने वाली चिढाने वाली टिप्पणियों के आदी हो गए होंगे
उनके हर पोस्ट पर ऐसी ही सलाह मिलती रहती है!
प्रतिटिप्पणी: सही कह रहे हैं। मजे की बात यह भी कि उनमें से कुछ अनाम भी हैं शायद। उनके चाहने वाले हैं वे शायद! - टिप्पणी: लवली / Lovely kumari
"इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते" ..अनूप जी ढाई घंटे समय देने के बाद कोई भी माइक्रो पोस्ट ही लिखेगा ..पर आप ..आपमें बहुत उर्जा है हमें पता है.आप ऐसे बातें न सोंचे अगर आप यह सोचेंगे या समीर लाल जी टिप्पणी करना छोडके कहेंगे की क्यों न अपना कुछ लिखा जाए टिप्पणी करने में वक्त लगता है ..तो सोंचिये क्या होगा ब्लॉग जगत का..
प्रतिटिप्पणी: सही है, सही है। इसे कहते हैं चढ़ जा बेटा चर्चा सूली पर/भली करेगा ब्लाग! - टिप्पणी kavitaprayas:
ज़रा बताएं इतना बढ़िया कैसे लिख पाते हैं ?
कौन सी सब्जी, कौन सी दालें , क्या आटा खाते हैं ?
बहुत खूब .... अति उत्तम !
शुभ कामनाओं सहित ,
अर्चना
प्रतिटिप्पणी:अर्चनाजी, शुक्रिया लेकिन चक्की का पता तो हम तब बतायेंगे जब आप कहें कि हम भी चर्चा करेंगे जैसे शानदार एंकरिंग करती हैं। - टिप्पणी: seema gupta:
"my God, so much of analysis, so energtic, and so much hard work. commendable, enjoyed each word of your artical. really a great job. so much appreciable'
regards
प्रतिटिप्पणी: शुक्रिया सीमाजी! आप पढ़ती रहें हम ऐसे ही करते रहेंगे! वैसे आप यह बतायें कि क्या ब्लागिंग का भी आई.एस.ओ.9002 प्रमाणपत्र हो सकता है। कान्टिनुअल इम्प्रूवमेंट के नाम पर?
और अंत में
अंत में अब कुछ कहने को कुछ बचा नहीं है सिवाय इसके कि विवेक के झांसे में आकर लगभग पूरी चर्चा कर गये। आगे से जब कभी शाम को चर्चा करेंगे तो केवल एकाध पोस्ट और एकलाइना तथा प्रतिटिप्पणी के बारे में सोचेगे।
कुश की चर्चा पर प्रतिटिप्पणी कल जब सब सबके कमेंट आ जायेंगे।
कल की चर्चा समीरलाल करेंगे। उनके पास कोई नया बहाना है नहीं। पुराना अब चलना बन्द हो गया।
फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर। इंगलिश चैनेल के इस पार वाले सो जायें/ उसके उस पार वाले काम में खो जायें। :)
चर्चा पढ़ ली... चर्चा के कारणो (चिट्ठो को) कल पढूँगी... वैसे मुझे बताने की जरूरत है है क्या कि रोज पढ़ती हूँ :D मतलब चर्चा भी और चर्चा के कारणो को भी पढ़ती हूँ।
जवाब देंहटाएंआई.एस.ओ की क्या जरूरत.. हम प्रमाण पत्र देते हैं... :)
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जवाब देंहटाएंबहुत जरूरी थी आज की चर्चा वरना आज की सबसे महत्वपूर्ण रचना रविश कुमार की कविता पढ़ने से रह जाती।
जवाब देंहटाएंचढ़ जा बेटा चर्चा सूली पर/भली करेगा ब्लाग..
जवाब देंहटाएंसही है सही है
:-)
चिठ्ठा चर्चा को आपने अपनी प्रत्युन्न्मति से चिठ्ठा जगत का "चौपाल" बना दिया है. कहीं भी घुमने फिरने की जगह यहाँ आकर बैठ जाओ ब्लॉग के संस्कार और सम्मान के साथ ब्लॉग जगत के सभी वरिष्ठ-कनिष्ठ मूर्धन्य और उनकी रचनाओं से भेंट-चर्चा हो जाती है. फ़िर मन करे तो चुन चुन कर उन ठिकानों पर पहुंचकर अपने आनंद रस को गुणत करते रहें. एक लाइना और प्रति टिप्पणी की TRP कई लोगों को ईर्ष्यालु बनाने के लिए काफी है. अब तो पाठन प्रतीक्षा सूची में यह ऊपर के सोपान पर है.
जवाब देंहटाएंविवेकजी को धन्यवाद और आपको तो है ही. ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा नहीं तो मुझे भी कोई काम पकड़ा दिया जायेगा :-)
जवाब देंहटाएंअब देखिये इंग्लिश चैनल के इसपार होते हुए भी अभी तक जाग रहे हैं रोज़ करिए, इंग्लिश चैनल के किसी भी पार रहे हम आया करेंगे !
कभी कभी मुरादें ऐसे भी पूरी हो जाया करती हैं।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा, खासकर टिप्पणी प्रतिटिप्पणी
जवाब देंहटाएंदादा, कब चुप्पे से ठेल के चले गयो, ऎसी चोखी चर्चा.. हम्मैं ख़बर भी न हुयी ।
जवाब देंहटाएंअब औचक निरीक्षण करके आपको चर्चा करते पकड़ें, अच्छा नहीं लगेगा न ?
मेल डिब्बे में पाने का जुगाड़ यहाँ दिखता ही नहीं, और हम ब्लागर पर बिना लंगोट कसे आते नहीं ...
कइसे सुलटेगा यह समस्या ?
वैज्ञानिक गुरुवर ज्ञानदत्त कौन सा फ़ुरसतिया वार्निंग सिस्टम लगाये हैं, बताते नहीं !
अब भला बतावा, कइसे सपरी हो गुरु, कइसे सपरी..
चिट्ठाचर्चा बिन ब्लागिंग... कइसे सपरी ?
अब हमें थोडा कॉन्फिडेंस हो गया है( या कहें भ्रम हो गया है)कि हम और कोई काम सफलता पूर्वक कर सकें या न कर सकें किन्तु रिक्वेस्ट हम अच्छी कर लेते हैं. अनूप जी का शुक्रिया और चिट्ठा चर्चा के पाठकों को बधाई . मुझे ऐसा लगा जैसे माइक हाथ में देकर स्टेज पर खडा कर दिया गया हो . अनूप जी ने नियमित काम देने के योग्य मुझे समझा है उसके लिए धन्यवाद .पर कुछ मजबूरियाँ हैं गुरु जी(श्री शिव कुमार मिश्रा जी ) को तो पहले ही बता चुका हूँ .मंच पर चर्चा करना शायद ठीक न लगे . आशा है गुरुजी मेरी थोडी सिफारिश कर देंगे .
जवाब देंहटाएंअब तो आइ एस ओ 9002 ,14001 और 18001
जवाब देंहटाएंभी दिलवायेंगे अनुप जी !! अनुप जी आप लगे रहो भगवान आपके साथ है !!और हम भगवान के साथ है!!
"विश्वनाथ जी का विचित्र प्रस्ताव :क्या इसलिये कि उन्होंने पूछा नहीं कि तलाक कैसे मिल सकता है! "
जवाब देंहटाएंआप के एक लाईना पढ कर यदि मेरे घर भीड लग गई तो मैं सबको एक ट्रक पर लाद कर आपके लिविंग रूम में छोड जाऊंगा.
बडे "फुर्सत" के साथ सब को निपटाना पडेगा!!
लिखते रहें. चिट्ठाचर्चा तक भ्रमण दिनचर्या का आवश्यक हिस्स बन चुका है -- आपके कारण!!