पिछले कुछ दिनों से स्त्री और उसके कपड़ों को लेकर कुछ वैसा ही हल्ला मचा है जैसा संसद में विरोधी पार्टी वाले मचाते हैं यानि बात कुछ भी हो ये दूसरी तरफ होंगे। अब चूँकि बात चल निकली है तो बता दूँ कि अमेरिका में बर्थ सर्टिफिकेट में, स्कूल में माँ को (यानि स्त्री) प्राथमिकता मिलती है। नारी में कविताजी ने पूछा - स्त्री देह कितनी ढके, कितनी उघड़े -
देह को वस्तु समझने व उसके माध्यम से अपनी किसी लिप्सा को शांत करने की प्रवृत्ति का अंत जब तक हमारी नई नस्लों की नसों में रक्त की तरह नहीं समा जाता तब तक आने वाली पीढी से स्त्री देह के प्रति 'वैसी" अनासक्ति की अपेक्षा व आशा नहीं की जा सकती।हमारा तो यही कहना है कि भैया जिसकी देह है उसकी मर्जी जो चाहे पहने, लोगों का तो नजरिया कुछ ऐसा ही होता है जिसकी बात युग विमर्श में हो रही थी, बकौल जैदी जाफर रजा -
वो फ़नकारा थी, बांसों पर तनी रस्सी पे चलती थी,शायद स्त्री के प्रति यही सोच लेकर आदमी पैदा होता है, इसी सोच के साथ जीता है और फिर इसी सोच के साथ मर जाता है। इस शायरी पर एस बी सिंह ने टिप्पणी में जो कहा वो ही हम भी यहाँ दोहरा देते हैं - जाकी रही भावना जैसी, हरी मूरत देखि तिन्ह तैसी
तमाशाई थे हम और उसको पेशा-वर समझते थे.
आजकल एक और बात हवा में है जिसका शगूफा बनने में ज्यादा देर नही है, और वो है लिव एन रिलेसनशिप पर। इस बात पर प्रभाष अपना मत रखते हुए जानना चाहते हैं -
मान लीजिए अगर कोई शादीशुदा मर्द महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक 'पर्याप्त समय' तक किसी महिला के साथ लिव इन में रहता है तो क्या उसके ऊपर दो शादियों का केस हो सकेगा? अगर नहीं तो क्या केवल उन महिलाओं को आर्थिक रूप से सुरक्षा प्रदान की गई है जो पर्याप्त समय तक लिव इन में रहती हैं ताकि उनके ऊपर से सामाजिक दबाव हट सके और उनके बच्चों को पिता का नाम भी मिले सके।अब इसका जवाब तो कोई कानून का जानकार ही दे सकता है, लेकिन हमें लगता है आज नही तो कल ये होना ही है। और वैसे भी ये भारत में कोई नयी बात नही है, इससे पहले भी ये होता रहा है। कम से कम अब इसे कानूनी मान्यता तो मिलेगी।
बस आज इतना ही, एक-दो अच्छी पोस्ट और थीं लेकिन उनको पहले ही इतनी टिप्पणियाँ और पाठक मिल चुके हैं कि कल्टी मार ली। दो-तीन और पोस्ट थी जिनकी चर्चा हो सकती थी लेकिन ज्यादा कुछ लिखने को आज मन नही कर रहा है। पिछले ६ दिन में जो यहाँ की मार्केट में हुआ है जाते जाते उस पर ये पढ़ लीजिये (लट्ठ चलाने वाला अगर कविता करने लगे तो उसे इग्नोर करना नही बनता), वैसे जोसेफ किस्मत वाला था जो सिगरेट इंडिया में फूँक रहा था वरना यहाँ फूँकता तो मार्केट के बंद होने से पहले वो बंद होता।
रोम जल रहा था
नीरो चैन की बाँसुरी बजा रहा था
"जोसेफ सेम्युअल" आफिस के गलियारे में
सिगरेट फूंक रहा था !
सेंसेक्स १०८९ पाइंट गिर कर
शेयर बाजार में लोगो को झुलसा रहा था
तो फ़िर "जोसेफ सेम्युअल" गलियारे में
सिगरेट क्यूँ फूंक रहा था ?
मैंने पूछा , ये क्या हो रहा है ?
वो बोला, क्या करूं, सर ?
फूँकने को अब कुछ बचा ही नही
इसलिए सिगरेट फूंक रहा था !
अगले शनिवार मिलते है आपका ये सप्ताह हंसी खुशी बीते।
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जवाब देंहटाएंमैंने कुछ नहीं किया, तरूण भाई ! चाहे तो मेरी दसों ऊँगली चेक कर लो ...
वैसे आज की मस्त चर्चा पढ़ कर यह नहीं लगता कि आप निट्ठल्ले भी हो सकते हो...
कहीं ऎसा तो नहीं कि,
चिट्ठाकारी के इतिहास में यह दर्ज़ होने वाला है कि, चिट्ठाचर्चा का निट्ठल्ला-फ़ुरसतिया युग इसके स्वर्णिमकाल में गिना जाना चाहिये । फिर तो, एक वोट मेरा भी !
अच्छी लगी-चर्चा भी और चुटकुला भी।
जवाब देंहटाएं" ha ha nice post enjoyed reading it"
जवाब देंहटाएंRegards
लठ्ठ चलानेवाला लठ्ठ ले कर जा चुका शायद। लिंक पर है ही नहीं।
जवाब देंहटाएंआज अवकाश के दिन इतनी संक्षिप्त चर्चा, निराशा हुई तरुण जी !
जवाब देंहटाएंनिठल्ला बोला, मैं तो इंडेक्स फिंगर (की नोक) पर मांगूँगा, सब के मुँह से एक साथ निकला, वो भला क्यों। निठल्ला बोला, जिससे मैं इसके कान में अँगुली डाल के देख सकूँ कि इसके दिमाग में कौन सा कीड़ा काट रहा है, जो ये इस तरह का सवाल कर रहा है।
जवाब देंहटाएंभाई तरुण जी आपके साथ साथ हमको भी इसी फिंगर पर दिलवा देना प्लीज ! बहुत ज्यादा जरुरत है ! मैंने सोच कर देखा की अगर ऐसा हो जाए तो बहुत मजा आजाये ! भाई लोगो सोच कर देखो ये आइडिया तरुण साहब का !
सोचो आप जब किसी को उंगली करोगे तो क्या होगा :) ??? सोचते रहिये !
चर्चा के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंडा. अमर कुमार ने कहा, ''चिट्ठाकारी के इतिहास में यह दर्ज़ होने वाला है कि, चिट्ठाचर्चा का निट्ठल्ला-फ़ुरसतिया युग इसके स्वर्णिमकाल में गिना जाना चाहिये । फिर तो, एक वोट मेरा भी !''
जवाब देंहटाएंBhai, ek vote mera bhi raha.. :)
भैया हम झूठ नहीं बोलेंगे मज़ा नहीं आया आज़ .
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