समय बहुत ही अच्छा
स्थान ब्लॉगी कॉलोनी, चिट्ठा नगर
पिछले छ् महीने से इसी कॉलोनी में रह रहा हू... हालाँकि मकान लिए हुए तो काफ़ी टाइम हो गया.. पर रहना करीब छ् महीने पहले ही शुरू किया.. कॉर्नर वाला मकान होने से एक बात अच्छी है काफ़ी कुछ नज़र आ जाता है.. कल शाम कुछ देर घर की छत से जब देखा तो पूरी ब्लोगी कोलोनी के कुछ नज़ारे दिख गये.. सोचा उनकी चर्चा कर लू आपके साथ...
सामने वाले मिश्रा जी के घर कल दिन भर मेहमानों का आवागमन रहा.. जुते चप्पलो की लाइन दरवाजे के बाहर दिन भर लगी रही.. शाम को उनके घर से बड़ी 'फ़ुर्सत' में निकले एक मेहमान से पता चला की मिश्रा जी ने आज टिप्पणीकारो और ब्लॉगरो हेतु एक भोज का आयोजन किया था.. परंतु खुद् परेशान हो गये सोच कर की दोनो में से किसके पाँव लगू...
और कहते हुए पाए गए की अभी अभी चिट्ठा चर्चा में हीएक मसला -मत विमत ऐसा भी आया कि कुछ मित्र केवल अपने ही लिखे पर आत्ममुग्ध हो टिप्पणियों कीअपेक्षा करते हैं -दूसरों की पढने की इच्छा ही नही करते -मानों वे सर्व ज्ञान संपृक्त हो चुके हों -मैं भी ऐसे कई लोगों को जानता हूँ ।
उनसे दो मकान छोड़ के जो नीली पुताई वाला मकान है.. हा वही जिसके बाहर एक भैंस बँधी रहती है.. उस मकान पे कल पुलिस का छापा पड़ा.. सुना है वहा किसी ने ठगी का कोई नया धंधा शुरू किया..
ताऊ को तलब करण का नोटिस निकलवा दिया ! और ताऊ के घर ख़बर करवा दी पंचो ने की, शनिवार को पंचायत बैठेगी !
गली के खंबो से अक्सर कुछ लड़के लट्टू चुरा लेते थे.. उन्ही से परेशान होकर पीछे वाली गली के रेलवे क्वॉर्टर में रहने वाले एक अंकल ने अपनी परेशानी कुछ यू रखी...
हजार दो हजार रुपये के केबल के तांबे की चोरी का खामियाजा देश १००० गुणा भुगतता है। और इस पूर्वांचल क्षेत्र में इस तरह की छोटी चोरी को न कोई सामाजिक कलंक माना जाता है, न कोई जन जागरण है उसके खिलाफ।
कल फिर से प्राथमिक विद्यालय में लड़कियो को भेजने की अच्छी बात सीखने वाली संगीता जी ने चित्रो के माध्यम से कोलोनी को जागरूक किया की भ्रूण हत्या नही करनी चहिये...
कोने वाली बिल्डिंग के दूसरे माले पर रहने वाली अनुजा जी गली में साइकल पर बिताए हुए अपने पुराने दिनों को याद करते हुए चिंतित दिखी क्योंकि गली में आज कोई साइकल नही चला रहा था.. आई मीन चला रही थी...
कल सुबह सुबह ही आदित्य के पापा घर पे खीर ले आए और बोले आदित्य की मम्मी ने सूजी की खीर बनाई है आपको ज़रूर खानी पड़ेगी.. सच कहु तो बहुत स्वादिष्ट खीर थी.. आप भी खाईए
मेरे बगल में रहने वाले नीरज भाई अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहते है.. आज सुबह उनसे मिलना हुआ, देश को लेकर चिंतित लग रहे थे..
पूरा देश एक बड़ी सी मैस है। देश टेबल पर पड़ा है। खाने वालों की लम्बी कतार है। सब देश खाना चाहते हैं। जीभें लपलपा रही है। देश मुर्गे की तरह फड़फड़ा रहा है। खाने वाले ज्यादा है, देश छोटा। हर किसी को उसका हिस्सा चाहिए। समस्या संगीन है। मगर लोग होशियार। उच्च दर्ज़े के न्यायाधीश। वो किसी को भूखा मरने नहीं देंगे। जानते हैं सब एक साथ देश पर टूट पड़े तो अराजकता फैलेगी।
बगल वाले डा. साहब बहुत परेशान दिखे... घर के बाहर क्रेन खड़ी थी .. पूछने पर पता चला कल चाँद पीकर उनके आँगन में गिर गया..
रात भर तारो की बेवफ़ाई पर बड़बड़ाया है
तुम उठाकर इसको आसमान मे टांग देना ...
चाँद कल पी कर गिर पड़ा था आँगन मे
कुछ देर बाद हमारे बराबर के मकान वाले ब्लॉगर साहब चाय लेकर आ गये.. एक चाय हमे हाथ में देते हुए बोले.. क्या देख रहे हो.. हमने कहा बस यूही देख रहा हू छ् महीने में कितने करीब से देखा है कॉलोनी को.. वो बोले ज़्यादा करीब भी मत जाना.. ज़्यादा करीब जाने से चेहरे के दाग नज़र आ जाते है..
मैं समझा नही.. तो मैने उनसे कुछ सवाल जवाब कर लिए...
प्र: आप ब्लॉगी कॉलोनी के बारे में क्या सोचते है ?
ऊ: आरी को काटने के लिए सूत की तलवार
प्र: यहा आए दिन होने वाले पंगो से आपको दुख नही होता?
ऊ: होता तो है फिर भी सबको जीना है !!
प्र: और जो लोग कहते है की यहा कुछ भी सार्थक नही होता?
ऊ: लोगों का काम है कहना
प्र: आप इन सब के बीच कैसा महसूस करते है?
ऊ: कुछ दर्द , कुछ हँसी
प्र: जो दूसरो की प्रशंसा नही करते, उनसे क्या कहेंगे आप?
ऊ: आओ पीछे लौट चलें...
प्र: अगर यहा इतनी समस्याए है तो कोई कुछ कहता क्यो नही?
ऊ: यह चुप्पियों का शहर है
फिर जब चुप्पियो का ही शहर है तो मैं क्यो बोल रहा हू.. मैं भी चुप हो जाता हू.. गला फाड़ने से क्या होगा.. हो सकता है कोई ये कहे की मुझे थोड़ी देर और खड़ा रहकर बाकी के घर भी देखने थे.. या फिर मेरे पड़ोसी से और सवाल करने थे.. उनकी बात मानता हू.. मगर कुछ लोगो ने तो सारे सवाल भी नही सुने होंगे... ना ही उन्हे पता होगा मैने कौन कौन से घर के बारे में लिखा है..
खैर मुझे उनसे क्या.. जिन्होने सब पढ़ा है उनसे बस यही कहूँगा.. मेरी भी कुछ सीमाए है.. मेरी छत से जितना दूर तक देख सकता था देखा.. इस से ज़्यादा उस वक़्त नही देख सकता था.. रौशनी कम थी .. अगर किसी का घर छूट गया हो तो वादा करता हू अगली बार शिकायत का मौका नही दूँगा..
मौसम थोड़ा खराब है... अभी छत से उतरता हू... फिर मिलूँगा
मकान की छत अभी नीची है। प्रथम तल बनाया नहीं है। मकान कुछ कम ही नजर आए। हाँ कालीदास लिखते तो मेघदूत भी शुरू किया जा सकता था।
जवाब देंहटाएंमेरा तो इतना ही कहना है कि छत से सारी कालोनी नजर नहीं आती है। मसलन मेरा घर, जो आपके दायीं तरफ क्रीम कलर वाले तिमंजिले के पीछे छिप जाता है। सो कभी घूमने निकलें, घर आएं, साथ-साथ चाय पीयेंगें। अच्छा लगेगा। इंतजार करूं?
जवाब देंहटाएंबड़ी अच्छी जगह घर ले रखा है :-)
जवाब देंहटाएंअगर यहा इतनी समस्याए है तो कोई कुछ कहता क्यो नही?
जवाब देंहटाएंयह चुप्पियों का शहर है
बहुत बढ़िया बोलते हैं जी आप :) बहुत बढ़िया लिखा है सवाल जवाब ...जरा छत्त ऊँची करो .कई जगह यहाँ से साफ़ नही दिख रही है :)
ranju ki baat se mai sahamat hun....chatt jara unchi kro taki saaf saaf dikho to shai.....
जवाब देंहटाएंfir bhi jo aapne dekha.....achcha dekha.....
चुप्पियों के शहर से आगे भी जाते
जवाब देंहटाएंवो शहर तो नुक्कड़ पर है थोड़ा आगे
मुड़ते तो हरी भरी बगीची पाते
वहां कुछ देर बैठकर झकाझक टाइम्स पढ़ते
और आगे बढ़ते तो तेताला मिलते
।
इस घर में अविनाश वाचस्पति रहते हैं
चुप्पियों के शहर की अजीब दास्तान है
जो मित्र आते हैं वे बोलते रहते हैं
अविनाश जी तो सदा चुप ही रहते हैं।
तांका- झांकी जरा संभल कर कीजिये ....ओर इस छत का जरा रेनोवेशन करवाये .... थोड़ा गेलरी भी एकाध ओर कोनो में बनवाये ...कालोनी में ६ महीने ही हुए है ओर आप दूरबीन लेकर बैठ गये .... कालोनी वाले शरीफ है .बेचारे ....वरना कुंवारे नौजवान भरी दोपहरी में मुंडेर पर वो भी ऐसे जो हिमेश रेशमिया की कर्ज देखने जाते हो........
जवाब देंहटाएंबढ़िया!
जवाब देंहटाएंकुश भाई , आप भी नए २ रंग देने में माहिर हैं ! क्या दूरबीन लेकर छत पर चढ़े हैं आप भी ? जवाब नही आपका ! बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉगर कालोनी में सिक्यूरिटी का क्या सिस्टम है? रात बिरात घूमना निर्विघ्न है या नहीं?
जवाब देंहटाएंआर द चिल्ड्रन इन देयर बेड आप्टर टेन ओ क्लॉक?! :-)
अब तो मौसम अच्छा हो रहा है जरा दुपहरी में छत पर जाइएगा. उजाला भी खूब रहेगा और नजारा भी बदला बदला सा होगा.
जवाब देंहटाएंछत ऊँची न हो सके तो कुछ जुगाड़ लगाइए कि दूर तक दिखे और चारों ओर नजर पड़े और डाक्टर साब से कहिये कि पीने पिलाने का दौर कम रखें नही चांदों का क्या वो तो लुढ़क ही जायेंगे. कहीं चंद्रयान में कुछ बोतलें तो नही भिजवा दीं गजब हो जाएगा
इस बार का अंदाज़ अच्छा है !
जवाब देंहटाएंहर बार नया अंदाज़ , नया जोश . बहुत अच्छा कुश जी . आपसे बहुत उम्मीदें हैं .
जवाब देंहटाएंचर्चा में भी रोमानीयत नजर आई। इस वजह से मौलिक स्टाइल लगा।
जवाब देंहटाएंवैसे, एक घर की तलाश है,क्या आपकी कॉलोनी में कोई खाली जगह है जहॉ में अपने सपनों का घर बना सकूँ।
हमारा यही कहना है कि सुबह-सुबह देखा करो नजारे और भी दिखेंगें!
जवाब देंहटाएंघर कलात्मक है आपका। उसमें सुहागा ये कि आप छत से ही बिना दूरबीन के इतना देख लेते हैं।
जवाब देंहटाएंकुश भाई, हम पहले हि डेक्लेयर कर
जवाब देंहटाएंदीए थे, के कुश ईज़ कींग आफ आईडीयाज़
सो तो आप साबुत करबै कीए हैं, मुला
घरवा सब देखते देखते झुग्गी-झोपड़िया
वाला स्लम एरिया को भुला दीए हैं,
ऊँहा भि गुदड़िया में कोनो कोनो लाल पड़ा मिलबै करेगा ।
पता नहीं आपके छतवा से देखाता है के नहिं ?
हमरी भाशा पर लोग सब बड़ा न ऎतराज़ कर रहा है, आज कल..
सो, बताइयेगा कि ईहाँ परगट होने वाले ऎतना बिद्वान सबको ई हज़म होने वाला है के नहिं ?
यह नया प्रयोग बहुत पठनीय है!!
जवाब देंहटाएंअगली बार छत पर जाने से पहले एलान करवा दें, हम अपने छत-आंगन आदि में रोशनी करवा रखेंगे!!
अच्छा प्रयास है, कुश जी आपके स्टाइल की झलक भी है..चाँद की झलक अब दुनिया हमारी नज़र से भी दीदार करेगी इसका ऐलान शानदार है...
जवाब देंहटाएंओये कुश भाई ! ब्लागी कालोनी में आप मेरे सामने वाले ही मकान में हैं यह जानकर सीना गर्व से फूल गया ! अभी तक तो मुझे पता ही नही था -शहरी संस्कृति में पड़ोस का ही पता प्रायः लोगों को कुछ रेयर से रूमानी मामलों को छोड़कर नही होता -पर मुझे आपके पड़ोसी होने का विशिष्ट सम्मान मिला हुआ है यह जान कर सचमुच आत्मविभोर हूँ -अब आना जाना कुछ ज्यादा होता रहेगा !
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