मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008

मन चंगा तो कठौती में गंगा

 सती

आज संत रविदास जयंती है। उनकी कही बात मन चंगा तो कठौती में गंगा दोहराते हुये उनको नमन करके आज की चर्चा की करता हूं।

शुरुआत एक लम्बे लेख से। पुण्य प्रसून बाजपेयी काफ़ी देर तक बाटला हाउस की बाते बताते रहे। कुछ आफ़ द रिकार्ड भी बताया! आफ़ द रिकार्ड यह भी कि बाटला एनकाउंटर के बाद से जामियानगर की पहचान बढ़ी है । उनकी इस लम्बी पोस्ट पर टिपियाते हुये एक पाठक कहते हैं-
पंडित जी, मिजाज के अलावा कोई शब्द सीखा है या नहीं। ऐंकरिंग करो या फिर ब्लागिंग हर बार मिजाज ही मिजाज। अरे पंडित जी इसके अलावा भी अगर हिंदी पढ़ी होती तो ज्यादा अच्छा रहता। और रही आपकी बात तो आपसे कोई भी कुछ भी लिखवा ले। आडंबरपूर्ण और स्यूडो विद्वान के तौर पर आप नंबर एक आदमी है।


हुकूमत के हिंदू मानस को तार-तार करती चिट्ठियां जिनके लिये एक अनाम टिप्प्णीकार लिखता है
जैसे पत्र ये लिख रहे हैं हर चोर, हर कातिल हर जेबकट हर बलात्कारी, हर गुंडा लिखा करता है। आप तो खबरफरोश हैं, आपतो इन लंगडों को अच्छी तरह से जानते हैं कि हर मुजरिम बार बार यही चिल्लाता है

फ़िरदौस खान का इस बारे में कहना है-
धर्मनिरपेक्ष इस मुल्क में मुसलमानों पर इतने ज़ुल्म होते हैं...अगर यह हिन्दू राष्ट्र होता तो शायद इस मुल्क एक भी मुसलमान या ईसाई ज़िन्दा न बचता... इस ज़ुल्म के खिलाफ़ सेकुलर लोगों को आगे आना चाहिए..


कविता कवि के मन की बात कहती है। ज्ञानजी की ग्यारह साल पहले लिखी स्क्रैप कविता उनके मन की थाह देती है कि कवि कित्ता घणा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोधी था। ब्लागिंग ने कवि का पर्सोना थोड़ा ठीक किया वर्ना कवि तो बड़ा ऐंठू टाइप था। हर बात को कहने की बंदिश। ये मत कहना-वो मत कहना! बताइये भला कहीं ऐसा होता है?
मेरा देश चल रहा कछुये की रफ्तार पकड़
खरगोश सभी अब सो जायें यह मत कहना

मैं नहीं जानता – कितनी पी, कितनी बाकी है
बोतल पर मेरा हक नाजायज है, मत कहना


अब बताओ कोई बीमा एजेंट बिना अपना बीमा करवाये ताऊ का बीमा करवाने आयेगा तो क्या जबाब मिलेगा? यही न-
मन्नै या बता की तेरे धौरै कोई ऎसी पालिसी सै की नही, जिसमे तू मर जावै और पिस्से ( रुपये) मेरे को मिल जाए !


सीमा गुप्ताजी झूमती कविता के बाद विरह के रंग में रंग गईं जिसके बारे में उनका कहना है:
विरह का क्या रंग होता है यह मैं नही जानती . लेकिन इतना ज़रूर है की यह रंग -हीन भी नही होता और यह रंग आँखें नही दिल देखता है


देखा जा रहा है कि ये विरह हमारे कवि मना साथियों को घणा आकर्षित कर रहा था। कुछ दिन पहले समीरलाल अपनी विरह अगिन की तपन तापने पकड़े गये थे और आज सीमाजी कहती हैं -कितना सुंदर ये विरह का रंग हम किसी कवि को खोज रहे हैं जो एक कविता हमारे नाम से लिख दे जिसका शीर्षक होगा- मोरा संग का रंग लै ले/मोहे विरह का रंग दै दे।

डाक्टर अनुराग आर्य अपनी हर बात दिल से कहते हैं। बाकी सबको बाईपास करके। कल कहते भये-
एक बूढे नायक के पेट दर्द की मेडिकल रिपोर्ट मीडिया देश को हर घंटे ख़बर दे रहा है .. इस दौरान सौ करोड़ की इस आबादी वाले उस देश में जिसमे अभी अभी परमाणु करार पर हस्ताक्षर अधिक्रत रूप से हो गये है ....७० फीट गहरे बोरवेल में गिरे दो साल का वो नन्हा बच्चा जिंदगी से अपनी जंग हार गया है .


75 वर्षीया श्रीमती लालमति वर्मा अपने पति शिवनंदन वर्मा की चिता में कूदकर खुद को आग के हवाले कर दिया। यह खबर नेशनल मीडिया के लिये खबर नहीं बनी। अनिल पुसदकर की चिंता है:
ऐसा लगता है कि ख़बर उसके विषय के अनुरूप महत्‍वपूर्ण नहीं होती, बल्कि उसकी मार्केट वेल्‍यू या टीआरपी उसका महत्‍व तय करती है। उन लोगों से शिकायत करना बहुत ज्‍़यादा जायज भी नहीं लगता क्‍योंकि वे छत्‍तीसगढ़ के हैं नहीं और छत्‍तीसगढ़ से उन्‍हें बढि़या विज्ञापन या मोटी कमाई होती नहीं है। लेकिन छत्‍तीसगढ़ में विपक्ष के नेताओं से शिकायत होना लाज‍मी है।


शिवकुमार मिश्र एक ब्लागर हैं संयोग से अमिताभ बच्चन एक ब्लागर भी हैं। इसीलिये उनको जलन होती है जब अमिताभ बच्चन को ज्यादा लिफ़्ट मिलती है। भले ही अमिताभ बच्चन सदी के महानायक हों लेकिन ब्लागिंग में तो शिवबाबू के बाद लांच हुये। ये ब्लागरिया डाह ही शिवमुमार से लिखवाती है-पूरा देश ही कोशिश में लिप्त है...

रंजना भाटिया की किताब साया का जिक्र हिंदुस्तान में हुआ। खबर देखिये।

चारु अक्टूबर की पहली पोस्ट में लिखती हैं:
दिल के दीवारों मे तस्वीर कोई खिंच जाए,
मेरे लिए तो कोई पल रंगीन दे जाओ।

अब हकीकत से न बहलेगी तमन्ना मेरी,
इसके ख़ातिर इक सपना हसीन दे जाओ।


तुर्की लेखक ओरहान पामुक को जब नोबल पुरस्कार मिला तो उन्होंने बताया कि वो क्यों लिखते हैं। कुमार अम्बुज उनकी बात को हम तक पहुंचाते हैं:क आदत है, एक जुनून है। मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं विस्मृत कर दिये जाने से डरता हूँ। मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं उस यश और अभिरु
मैं लिखता हूँ क्योंकि अन्य किसी भी चीज से ज्यादा मुझे साहित्य में विश्वास है। मैं लिखता हूँ क्योंकि यह एचि को चाहता हूँ जो लिखने से मिलती है।


अभी कुछ दिन पहले सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगी। उसके पीछे जिनका योगदान है उनके बारे में जानकारी दे रही हैं रचना।

अंधेरी रात का सूरज का विमोचन विवरण

एक लाइना



  1. आज सवेरा न जागे तो मत कहना :वर्ना सूरज का मुंह फ़ूल जायेगा


  2. ओ.के.सेब : मतलब मंहगा सेब


  3. ताऊ का बीमा करने आया बीमा एजेंट:जबकि उसका खुद का बीमा गोल था


  4. "विरह का रंग": झूमती कविता के बाद


  5. एक ओर रात अपने हिसाब से घटायी होगी : उसी घपले में गजल निकल आई होगी


  6. चिंतन दुख :सुख भी देता है


  7. छत्‍तीसगढ़ में एक औरत का सती हो जाना क्‍या लोकल ख़बर है।:हां, लोकल ही है अगर उससे बाजार का कुछ भला नहीं होता


  8. पूरा देश ही कोशिश में लिप्त है : हम अकेले हैं जो कोशिश को नाकाम करने में संलिप्त हैं।


  9. बेवफ़ा हो जायेगा.....: बड़ा मजा आयेगा



  10. रहने दो :कविता न लिखो


  11. जिस्म की ख्वाहिशों पर रिवायतों के पहरे हैं...: मान लो हमारी बात हम कह रहे हैं


  12. कुछ सूचनायें :बहुत काम की हैं


  13. तुम हमे यू ना भुला पाओगे: जब भी भुलाओगे याद में भीग जाओगे


  14. चमत्कार हो गया सर झुकाओ : झुकाओ भाई ज्यादा मत खुजाओ


  15. जब भगवान भी मिडिया से परेशान हो गये : और रायबरेली निकल लिये


  16. २१ वी सदी के रिश्ते : ही रिश्ते -एक बार पढ़ तो लें


  17. मैं क्यों लिखता हूँ ? :क्योंकि मैं आप सबसे नाराज हूँ


  18. खुद में खुद को ढूँढ़ना : बड़ा वाहियात काम है जी



  19. कुतर्क को सलाम: करना ही पड़ता है जी


  20. खिन्न हूं: इसमें कौन बड़ी बात है जी? खिन्न तो कोई भी हो लेता है



  21. ...शहर मेरी मजबूरी गांव मेरी आदत है
    : जिसे छोड़ दिया जाता है वह मजबूरी और महात्मा गांधी ही कहलाने लगती है



  22. चमत्कार हो गया सर झुकाओ : कैसे झुकायें जी धार्मिक सपांडलाइटिस है

टिप्पणी/प्रति टिप्पणी



  1. टिप्पणी: ज्ञानदत्त पाण्डेय: इतना सुन्दर लिखा है कि आपको सम्मानित करने का मन हो रहा है।

    (आपके शीर्षक से प्रेरित नहीं! :-) )

    प्रति टिप्पणी: ज्ञानजी आप हमेशा गोली देते हैं। चाहते रहते हैं करते कुछ नहीं। फ़िर लिखते हैं हाय हमारे दिन सूखे-रूखे बीत गये। कलर फ़ुल सम्मान करिये न। हम उपलब्ध हैं।


  2. टिप्पणी कविता वाचक्नवी कहते हैं:
    कितना धैर्य चाहिए इतनी विषद चर्चा के लिए!
    आप भी कमाल हैं।

    और इन प्रतिटिप्पणियों ने तो एक नया ही सद्भावनापूर्ण माहौल ब्लॊगजगत् में रचने की भूमिका का सूत्रपात कर डाला है।

    एन्ड क्रेडिट गोज़ टू यू

    प्रति टिप्पणी कविताजी शुक्रिया,इसे पढ़कर सराहने के लिये भी बहुत कुछ चाहिये। जिसका क्रेडिट आपको जाता है।


  3. टिप्पणी: अनिल पुसदकर
    असली सम्‍मान तो आपने दिया है अनूप जी। कल मिले सम्‍मान से ज्‍यादा आपका दिया हुआ सम्‍मान मेरे लिए ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है और आपको आश्‍वस्‍त करता हूं कि मैं अपना काम जारी रखूंगा। ईनाम मिले ना मिले,आपका और आप जैसे प्‍यारे लोगों का प्‍यार मिलता रहना चाहिए तो हौसला बना रहेगा। आज का दिन ब्‍लॉग की दुनिया में कदम रखने के बाद सबसे सुनहरा दिन है। ये सब संभव हुआ अनुज संजीत त्रिपाठी की वजह से। धन्‍यवाद आपको जो आपने मूझे इस सम्‍मान के लायक समझा।
    प्रति टिप्पणी आप ऐसे ही लिखते रहिये। सम्मान का इंतजाम हम करते रहेंगे। हमारे आदमी हर जगह हैं। हम कोई ज्ञानजी नहीं हैं जो सोचते रहें और करें न! हम कर डालते हैं सोचते बाद में हैं- अरे! ये क्या हो गया दिया!


  4. टिप्पणी: विनय

    bhai is baar to sagar se moti dhhondhh laane wali baat ho gayi...
    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया। मोती तो आपकी नजर में हैं भाई


  5. टिप्पणी:विवेक सिंह

    टिप्पणी प्रति-टिप्पणी का सिलसिला ....
    जारी रहे जारी रहे .
    बेहतरीन अन्दाजे बयाँ .
    प्रति टिप्पणी:शुक्रिया। सिलसिला चालू आहे।


  6. टिप्पणी:दीपक

    अजी हम क्या कहे सब तो आप ने कह दिया !! आपकी मैनुफ़ेचरिंग डिफ़ेक्ट सबसे पसंदीदा है!!

    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया कि आप डिफ़ेक्ट ही पसंद करते हैं।

  7. प्रति टिप्पणी: अनीता कुमार
    भगवान से प्रार्थना है कि ये मैन्युफ़ैक्टरिंग डिफ़ेक्ट स्टेंडर्ड डिजाइन बन जाए। आज के वन लाइना भी गजब के, और अब ये प्रति टिप्पणी का स्तंभ चर्चा में चार चांद लगाता है। हम ज्ञान जी की टिप्पणी से सहमत्।
    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया अनीताजी, ज्ञानजी की टिप्पणी खाली दिखाने की है। उनके इरादे नेक नहीं हैं। पूरा नहीं करते वे अपने इरादों को।


  8. टिप्पणी रंजना [रंजू भाटिया]

    बहुत बढ़िया और मेहनत से कि गई चर्चा है यह
    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया। पढ़ने और सराहने के लिये।


  9. टिप्पणी :ताऊ रामपुरिया
    शुकल जी आज की करीब आधी चिठ्ठा चर्चा तो "लिव-इन-रिलेशनशिप" की हुई ! पिछले हफ्ते से इसकी सब तरफ़ चर्चा चल रही है ! सामयीक जानकारी के हिसाब से आपने आज ये अति उत्तम काम किया ! क्योंकि कल के टाइम्स आफ इंडिया में इसकी जबरदस्त चर्चा थी ! हमने ताई के डर से इस पर पोस्ट लिखने का विचार टाल दिया है ! :) अब आराम से एक लाइना यानी सोप-ओपेरा का मजा ले रहे हैं ! लाजवाब एपीसोड है ! शुभकामनाएं !
    प्रति टिप्पणी: ताऊ जी शुक्रिया! एपीसोड का मजा लीजिये। ये लिव इन रिलेशनशिप बड़ी अजीब चीज है। इसके बारे में लिखना है।


  10. टिप्पणी:सतीश सक्सेना
    अनूप भाई !
    लाजवाब और लाइलाज भी ;-),
    प्रति टिप्पणी: शुक्रियाजी।


  11. टिप्पणी:डॉ .अनुराग

    सबसे पहले अनिल जी को बधाई .इतने दिनों से उन को पढ़ कर यही जाना की जो उनके मन में वही लिखते है ,कागजो में कुछ ओर नजर नही आते ....
    आप की मेहनत साफ़ नजर आ रही है....चर्चा में .मानसी की कविता बहुत अच्छी है......ओर अनुजा जी भी बिंदास अंदाज में अपने मत-विमत दे ही देती है
    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया!


  12. टिप्पणी: दिनेशराय द्विवेदी

    एक लाइना और एकाधिक लाइना, आप कुछ भी कहें, कहें जरूर। सब की यह इच्छा बनी रहती है।
    फिर सब को समेटना संभव नहीं। सब को समेटने लगें तो चाह ही समाप्त हो जाए।
    हाँ,जिस तरह आप ने लिव-इन के बारे में मेरी धारणा को व्यक्त किया, लगता है मेरी प्रस्तुति में ही कोई त्रुटि रह गई है।
    प्रति टिप्पणी: प्रस्तुति में कोई कमी नहीं। हमने अपनी मैन्युफ़ैक्चरिंग डिफ़ेक्ट के चलते इसे अपने अंदाज में लिया। आप आराम से रहिये। अब तो लिव इन रिलेशन भी हैं !


  13. टिप्पणी: रंजन राजन

    आज की चर्चा तो कुछ ज्यादा ही मूड में की गई लगती है। खासकर एकलाइना में तो आपने नई जान डाल दी है। जोश बनाए रहें...
    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया।


  14. टिप्पणी: रौशन
    कोई अच्छा सम्मान करने वाला दिखे तो बताइए हम भी सम्मानित हो लें
    प्रति टिप्पणी: अनिल पुसदकरजी से टिप्स लें। वैसे सुना है पुलिस वाले अकेले में भी सम्मानित करते हैं। बगल के था्ने में संपर्क करें॥शायद मंशा पूरी हो जाये।


  15. टिप्पणी:जितेन्द़ भगत:

    आप अपने कार्य के प्रति‍ बेहद समर्पि‍त इंसान हैं, मेहनत देखकर हैरान हो जाता हूँ। इतना कुछ कहने के लि‍ए कि‍तना कुछ पढ़ना पड़ता होगा। यह सबके बस की बात नहीं।
    अनि‍ल जी को मेरी ओर से भी बधाई।
    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया। वैसे ये हैरानी की बात नहीं है भाई! आदमी का जो मन चाहता है, कर ही लेता है।


  16. टिप्पणी:PREETI BARTHWAL

    टिप्पणी:अनूप जी आपकी सलाह और अनुरोध दोनों ही सर आंखों पर। कोशिश करुंगी की आगे से आंसुओं को रचनाओँ से दूर रखुं और रचनाओं के साथ साथ लेख भी लिखूं।
    इस बार आपने टिप्पणी की प्रति टिप्पणी लिखी है तो लगा चिट्ठा चर्चा का नया रंग आ गया है। अच्छा लगा।
    प्रति टिप्पणी: प्रीतिजी, तारीफ़ का शुक्रिया। मैंने अपनी बात कही। आप नियमित लिखें। कविता के अलावा और भी लिखती रहें। और एक बार फ़िर से आपके ब्लाग पर फ़ोटॊ की बात। आपके ब्लाग के हेडर का आधा हिस्सा खाली है। या तो आप कोई पूरी फ़ोटो लगायें या फ़िर पुरानी वाली ही लगा दें। यह मेरा सुझाव है बस्स!


  17. टिप्पणी:शास्त्रीजी:
    "पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ !! :शास्त्रीजी से मिलो वो यही सब कराते हैं "

    अरे भैइया, मरवाओगे हमको. हम तो जोडते हैं तोडते नहीं!! कल को यदि कोई हमारे द्वारे आ गया तो हम तुरंत उसे आपके ठिये पर भेज देंगे!!!

    आप ने दो वाक्यों मे अपनी क्रियाशीलता को छुपा दिया है, लेकिन जो है वह है एवं छुप नहीं सकता.

    लिखते रहें क्योंकि आपकी "चर्चा" एवं एक-लाईना का कोई जोड नहीं है.

    आज रात 1 बजे यह टिप्पणी दे रहा हूँ क्योंकि दिन भर भागदौड कर रहे थे -- न तो तलाक देने के लिए, न दिलवाने के लिये -- पापी पेट की खातिर!!

    सस्नेह, शास्त्री
    प्रति टिप्पणी: शास्त्रीजी हमें जो लगा हमनें कहा। ये खुराफ़ाती मन ऐसे ही देखता है। सबसे ज्यादा सर फ़ुटौवल एकता परिषद में होती है। सबसे ज्यादा लफ़ड़ा समझाने वाले लोगों के चलते होता। और .... अब क्या कहें? आप फ़िर सफ़ाई देंगे। :)


  18. टिप्पणी:अभिषेक ओझा
    हम इतने दिन गायब रहे और इधर टिपण्णी चर्चा भी चल्लू हो गई... सलाम है आपके लगन को !

    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया। लेकिन गायब कहां रहे? सौन्दर्य अनुपात तो ठीक है न!

  19. टिप्पणी:मानोसी:

    इसबारकी चर्चा बहुत विस्तृत रही, विवरण के साथ और मुझे पता है कि ये आसान नहीं। एक लाइना भी सीमित संयोजित, बहुत अच्छी चिट्ठा चर्चा। और मेरी कविता को अपनी पसंद बनाने का भी शुक्रिया। टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी बहुत अच्छी रही।

    प्रति टिप्पणी: पसंद करने का शुक्रिया। तुम्हारी कविता पसंद न करें तो क्या करें? कौन आफ़त मोल ले भाई!



  20. टिप्पणी:तरुण:
    धांसू है जी, आज तो एक लाईना भी कंट्रोल में है, निकल लूँ इससे पहले सब मुझे गलियाने लगे एक लाईना के ऊपर ;)

    वैसे अब कोई आयेगा नही क्योंकि हम सबसे लास्ट होते हैं।

    प्रति टिप्पणी: शुक्रिया है जी। कौन गरियायेगा! और लास्ट में होने का मतलब ये थोड़ी कि खुदै गेट लास्ट हो लो। जाते कहां हो? चर्चा और निठल्ले तो एक दूजे के लिये हैं।


और अंत में:



अब कुछ बचा नहीं सिवाय इस बात के कि इस चर्चा ने ढाई घंटे खा लिये। फ़िर भी तमाम पोस्टें छूट गयीं। ब्लागिंग का सहज आकर्षण कभी- कभी कहता है बाबू, इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते। तमाम टापिक कुलबुलाते हैं। मानवाधिकार आयोग के आगे अपने शोषण की अर्जी लगाते हैं। लेकिन चर्चा का मजा ही और है।

टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी पसंद करने के पीछे शायद हमारी संवाद की इच्छा रहती है। हम जो कहते हैं चाहते हैं कि उसको सुना जाये और उसका जबाब दिया जाये। हमें हमारे पाठक ने सलाह दी थी कि हमें अपने ब्लाग पर आयी टिप्पणियों के जबाब देने चाहिये। कुछ लोग देते भी हैं लेकिन कम देते हैं। हम भी कभी-कभी देते हैं लेकिन अक्सर नहीं देते। समीरलालजी देने लगें तो उनकी तो वाट लग जाये और वो खाट से लग जायें।

हमें अभी शहर से बाहर निकलना है। इस समय तक जहां होना चाहिये था वहां के लिये अभी तक निकले नहीं। इससे बड़ा लापरवाही का नमूना मिलेगा लेकिन कम मिलेगा। ये मुई ब्लागिंग जो न कराये।

कल कुश की चर्चा का दिन रहेगा। परसों समीरलाल फ़िर मसिजीवी। इसके बाद तरूण। मुझे लगता है कि जिसके लिखने की बारी हो उसको लिखना चाहिये चाहे यही लिखे- आज हम कुछ नहीं लिखेंगे। यह हमारी माइक्रोपोस्ट है।

फ़िलहाल इत्ता ही। बकिया फ़िर कभी। मौज से रहें/ मस्त/ अलमस्त। शीर्षकानुसार- मन चंगा तो कठौती मां गंगा।

Post Comment

Post Comment

17 टिप्‍पणियां:

  1. अनूप जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आपने कम-से-कम सती होने की खबर को महत्व दिया। आपने उस घटना के बाद की तस्वीर को भी चर्चा मे जगह दी,वो तस्वीर साफ़ कह रही है पुलिस की मौजूदगी मे भी वहां पूजा-अर्चना चल रही है।इस गंभीर विषय को स्थान देने के लिये छत्तीसगढ की जनता की ओर से मै आपका आभार व्यक्त कर रहा हूं।आपकी चर्चा पढ कर ऐसा लगता है अब कुछ बाकी नही रहा पढने को।बहुत समय और दिमाग खपाने वाला काम कर रहे हैं आप जो निश्चित रूप से चिट्ठे की दुनिया को आगे बढा रहा है।एक बार फ़िर आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  2. बाबू, इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते।

    यह क्या बात हुई? यह चर्चा क्या आप की रचना नहीं है?

    विवरण, चर्चा, आलोचना आदि का बहुत महत्व है, और ये स्वतंत्र रचनाएँ भी हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. सम्वाद बना रहे,
    शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. घणी कँटिया फंसाऊ चिठ्ठा चर्चा है।
    और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित:-
    तुम मुझे टिप्पणी दो; मैं तुम्हें प्रति टिप्पणी दूंगा!

    -----
    हमेशा की तरह जानदार शानदारश्च!

    जवाब देंहटाएं
  5. पुण्‍य जी से बाटला हाउस और जामिया नगर की और आपसे चिट्ठाजगत की शोभा है।

    जवाब देंहटाएं
  6. बात होती रहे यूँ वही अच्छा है ...:) शुभ कामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. very nice चर्चा ji, पर आप इस पर प्रति‍ टि‍प्‍पणी मत देना। कुछ ढंग से लि‍खने का दबाव बन जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  8. "प्रति टिप्पणी: शास्त्रीजी हमें जो लगा हमनें कहा। ये खुराफ़ाती मन ऐसे ही देखता है। सबसे ज्यादा सर फ़ुटौवल एकता परिषद में होती है। सबसे ज्यादा लफ़ड़ा समझाने वाले लोगों के चलते होता। और .... अब क्या कहें? आप फ़िर सफ़ाई देंगे। :)"

    प्रिय अनूप, कुछ लोगों को ईश्वर ने इतने खास तरीके से बनाया होता है कि वे अपने मित्रों के लिये हमेशा प्रोत्साहन के कारण बनते रहते हैं. आप उन लोगों में एक हैं.

    यह सफाई नहीं, प्रोत्साहन है!! अनुमोदन है!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. "इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते" ऐसा सवाल मन में आना तो स्वाभाविक ही है... पर जैसा की आपने कहा है की चर्चा का मजा ही कुछ और है. चर्चियाते रहिये... इसे पढने का मजा भी सच में कुछ और है. (इसका मतलब ये मत लगा लीजियेगा की आपकी लिखी अपनी बातों को पढने में मजा नहीं आता !)

    ---
    और सुनहरा अनुपात तो चकाचक है सरकार, आजकल अक्सर आपकी चर्चा में भी दीखता है ! हम ज़रा छुट्टी पर चले गए थे... और इतने दिनों इन्टरनेट एक्सेस मोबाइल से ही कर पाते थे... बड़ी मुश्किल से टेढे-मेढे हिन्दी फॉण्ट दिख पाते थे.

    जवाब देंहटाएं
  10. फ़ुरसतीया जी लेकर आये परफ़ेक्ट चिठ्ठा चर्चा
    लंबा लिखकर बढाया अपने इंटरनेट का खर्चा

    जबरीया लिखने वाले ने ठेला एक लाईना रोग
    इतना अच्छे लिखै लगोगे तो जलने लगेंगे लोग ॥

    जवाब देंहटाएं
  11. शुक्ल जी आपके टी.वी. चैनल (चिठ्ठा चर्चा ) का एक सीरियल एक लाईना तो सुपर हिट हो ही गया ! और आपने जो दूसरा सीरियल "टिपणी प्रति टिपणी" लांच किया है , उसके तो पूत के पाँव पालने में ही दिख रहे हैं ! ये तो कमाल का आईडिया है आपका ! इसमे हर टिपणी कार को एक निजी फिलिंग आती है और उसे लगता है की हाँ इस मंच पर मेरी सहभागिता है ! आपकी सबको साथ लेकर चलने की ये कोशीश बहुत घणा रंग लाएगी ! आपको बहुत शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  12. ye sameerlal naam ka bachha hamesha udantashtari me baith ur jata hai aur hamesha class gol kar deta hai, Humari request hai ki ye bachha agar aage se class gol kare to use har din class me aane ki saja sunayi jaaye.

    जवाब देंहटाएं
  13. हमें तो लगता है कि पुण्य प्रसून जी अब अपने लेखन पर की जाने वाली चिढाने वाली टिप्पणियों के आदी हो गए होंगे
    उनके हर पोस्ट पर ऐसी ही सलाह मिलती रहती है

    जवाब देंहटाएं
  14. "इस चर्चा में टाइम खर्चा करने के बजाय अपना कुछ काहे नहीं लिखते" ..अनूप जी ढाई घंटे समय देने के बाद कोई भी माइक्रो पोस्ट ही लिखेगा ..पर आप ..आपमें बहुत उर्जा है हमें पता है.आप ऐसे बातें न सोंचे अगर आप यह सोचेंगे या समीर लाल जी टिप्पणी करना छोडके कहेंगे की क्यों न अपना कुछ लिखा जाए टिप्पणी करने में वक्त लगता है ..तो सोंचिये क्या होगा ब्लॉग जगत का..

    जवाब देंहटाएं
  15. ज़रा बताएं इतना बढ़िया कैसे लिख पाते हैं ?
    कौन सी सब्जी, कौन सी दालें , क्या आटा खाते हैं ?

    बहुत खूब .... अति उत्तम !
    शुभ कामनाओं सहित ,
    अर्चना

    जवाब देंहटाएं
  16. "my God, so much of analysis, so energtic, and so much hard work. commendable, enjoyed each word of your artical. really a great job. so much appreciable'

    regards

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative