शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

नये ब्लागर की टिप्पणी एक तरह की मिस्ड काल है

आज की चर्चा में एक पोस्ट की चर्चा करेंगे बस्स!

शास्त्रीजी पता नहीं कैसे आज तलाक,भोग्या स्त्री, बहन ने सिखाई गंदी आदत जैसे जन शिक्षा के विषयों के हटकर टिप्पणियों पर बात करने लगे। आज की उनकी पोस्ट का विषय रहा - सिर्फ कुछ चिट्ठों को टिप्पणियां मिलती हैं!!!

इस लेख में विस्तार से यह बात हुयी कि कुछ ही लोग सारी टिप्पणियां बटोर ले जाते हैं। शास्त्रीजी ने लिखा-

अपने पहले आलेख के समय विश्लेष्लेषणात्मक टिप्पणियों की इच्छा करना आम चिट्ठाकारों के लिये गलत है।

मेरे हिसाब से किसी भी चिट्ठाकार के लिये टिप्पणियों की इच्छा सहज स्वाभाविक है। इसमें कोई गलत बात नहीं!

शास्त्रीजी ने लिखा-
जिनको टिप्पणियां मिलती हैं उनको फ़्री फ़ंड में टिप्पणियां नहीं मिलती। यह उनके योजनाबद्ध तरीके के निवेश का फ़ल है। उन सबने अपनी निस्वार्थ सेवा के द्वारा यह कमाया है।

शास्त्रीजी अपनी बात को ही काटते हैं। एक तरफ़ लिखते हैं योजनाबद्ध टिप्पनी निवेश का फ़ल और दूसरी तरफ़ निस्वार्थ टिप्पनी सेवा। शास्त्रीजी योजनाबद्ध निवेश की आपकी परिभाषा पर यह बात भले खरी उतरती हो लेकिन निस्वार्थ सेवा और योजनाबद्ध निवेश अलग-अलग होते हैं। योजनाबद्ध निवेश निस्वार्थ नहीं हो सकता भले ही उसका उद्देश्य कितना ही पवित्र क्यों न हो?

शास्त्रीजी का मानना है:

हर पेशे में कोर कस्टमर बनाने पड़ते हैं। हर चिट्ठाकार को कम से कम १० चिट्ठों पर रोज टिप्पणी करनी चाहिये।

यह बात कुछ हद तक सही है लेकिन कोर कस्टमर टिप्पणियों के अलावा लेखन से भी बनते हैं। कई ब्लागर हैं जो हमारे यहां कभी टिप्पणी नहीं करते लेकिन हम उनके ब्लाग पढ़ते हैं। यह तो पाठक का सुख है। मोहल्ला में हम कभी टिप्पणी नहीं करते बहुत दिन से वहां लिखा भी है कि हम वहां नहीं जाते और हमारे और कुछ अन्य साथियों के ब्लाग के नाम भी दिये हैं यह लिखकर- जो यहां नहीं आते, आप वहां भी जाएं! हम मोहल्ला के लेख नियमित पढ़ते हैं लेकिन टिपियाते नहीं। इस तरह हम मोहल्ला के कोर कस्टमर हैं लेकिन वहां अपनी गुनहगारी का सबूत नहीं छोड़ते।

शास्त्रीजी का तेवर नये चिट्ठाकारों के लिये एकदम हड़काऊ टाइप है। बेचारा कोई भोला-भाला नवोदित ब्लागर पढ़ ले तो यहीं उसका माडरेशन हो जाये। लेख का अंदाज ऐसा है जैसे कि शास्त्रीजी किसी नये-नवेले चिट्ठाकार को उसकी टिप्पणी आसक्ति के लिये फ़टकार रहे हों। शरम नहीं आती टिप्पणी के प्रति वासनात्मक नजरिया रखते हो। उसे पाना चाहते हो? उसके लिये मेहनत नहीं करना चाहते! ऐसी क्लास से कोई भी बच्चा फ़ूट लेगा। हम भी फ़ूट लेते अगर वहां कुछ सार्थक टिप्पनियां न होंती।

इसी पोस्ट पर संजीव कहते हैं-
ये टिप्पणी कर कर टिपण्णी पाने का तरीके से मैं सहमत नही हूँ, टिप्पणियों की संख्या से बड़ी चीज़ है पाठक, आप ऐसे लेख लिखें जिसे पाठक मिले…खैर

मैं उनकी बात से सहमत हूं। टिप्पणियां आपके ब्लाग पर सिर्फ़ इसलिये नहीं लोग करते क्योंकि आप कहीं टिप्पणी करते हो! टिप्पणियां पाने की पहली शर्त काम भर का अच्छा लिखना होता है।

सरिता अरगरे जी लिखती हैं:
लेकिन महज़ गिनती बढाने के लिए की गई टिपण्णी का क्या औचित्य ? भले ही एक लाइन की एक ही एक ही प्रतिक्रिया हो । मगर उसकी सटीकता में ही लेखक के सफ़लता होती है ।
टिप्पणियों की संख्या हमेशा लेखन के स्तर के समानुपाती नहीं होती। टिप्पणियों का संबंध लेखन से होने के साथ लेखक की नेटवर्किंग से भी होता है!

विनय जी ने लिखा:
आपने बिल्कुल सही कहा शास्त्री जी फल के लिए कर्म करना पड़ता है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं जैसे कुछ‌ महिलाओं के चिट्ठे हैं जिन पर न टाइप सही होता हैं और न ही कही जाने वाली बात में दम मगर लोग उनके चिट्ठे पर जाकर उनकी बेहूदा रचना पर वाह-वाही करते हैं। (नोट: महिलाएँ इस टिप्पणी को अन्यथा न लें जो बेहतर रचनाएँ दे रही हैं और दूसरों का सहयोग कर रहीं उनका अंतर्मन तो स्वयं जानता है)

यह शायद काफ़ी हद तक सही है। महिला होने के नाते कुछ लोगों को कुछ ज्यादा टिप्पणियां मिल जाती हैं। लेकिन टिप्पणियों से आसानी से जाना जा सकता है कि टिप्पणियों का कारण क्या है?

विश्वनाथ जी ने लिखा:
क्या टिप्पणी के पीछे पीछे इस भागदौड की भी कोई सीमा होनी चाहिए?टिप्पणीयों की सही संख्या क्या होनी चाहिए, जिसे चिट्ठाकार अपना लक्ष्य माने?
टिप्पणिकार का भी अहं होता है। यदि उसकी टिप्पणी हर बार नज़रनदाज़ किया जाता है तो वह टिप्पणी करना बन्द कर देगा या कहीं और चला जाएगा।
मैं समझता हूँ कि हर चिट्ठा अधूरा होता है जब तक उस पर कम से कम एक अच्छी और दमदार टिप्पणी न हो।

विश्वनाथजी ऐसा कॊई पैमाना नहीं है। टिप्पणियों की सही संख्या हर लेखक अपने हिसाब से तय कर सकता है कि वह कित्ती टिप्पणियों पर अपने को धन्य मान सकता है। चिट्ठाकार का अहं वाली बात सही हो सकती है लेकिन ज्यादातर ब्लागर टिप्पणियॊं के जबाब नहीं देते। दमदार टिप्पणी की बात सही है। लेकिन दमदार टिप्पणी करने का दम आमतौर पर कम ही लोग दिखाते हैं।
तरुण ने लिखा:


टिप्पणी का महत्व तभी है जब वो सार्थक हो, लेख के साथ वो Extension का काम करे। सिर्फ संख्या के लिये टिप्पणी मिलने से हो सकता है शुरू में अच्छा लगे लेकिन बाद में आपको खुद लगेगा कि क्या मेरा लेख पढ़ा भी या सिर्फ टिप्पणी के लिये टिप्पणी कर दी।

लेख अच्छा हो और पाठक के मतलब का हो तो हमेशा टिप्पणी मिलती रहती है। मेरे उस हिंदी चिट्ठे में सबसे ज्यादा टिप्पणी मिलती है जिसे शायद २-४ ब्लोगरस ही पढ़ते हैं, वरना उसके ज्यादातर पाठक सिर्फ पाठक है। टिप्पणी के मामले में जो पांचवे नंबर की पोस्ट मेरे उस चिट्ठे में है उसको अब तक १४९ टिप्पणी मिली है और जो पहले पर उसे कुल ३५६ And I am still Counting। लेकिन इससे इन चार पांच लेखों की महत्ता बढ़ नही जाती और जिन्हें कम मिले हैं उनकी कम नही हो जाती।

ये भी जरूरी नही कि आप तमाम जानकारी वाला लेख लिखें और उसमें टिप्पणी की बौछार होने लगे, ऐसा भी चिट्ठा है मेरे पास। इसलिये टिप्पणी की चिंता छोड़ ब्लोगर को अपने लेख और उसकी विषयवस्तु में ध्यान देना चाहिये, हाँ तनिक क्षण के लिये दिल को लगता है लेकिन फिर सब चकाचक।

तरुण की बात से मैं एकदम सहमत हूं। मेरी कुछ ऐसी पोस्टे हैं जिनको मैं बहुत अच्छी मानता हूं उन पर कम टिप्पणियां इनायत हुई। कुछ बेफ़िजूल की पोस्टों (ज्यादातर ऐसी ही हैं) पर काफ़ी टिप्पणियां मिलीं।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का कहना है:

आपके विश्लेषण से पूरी तरह से सहमत हूँ। ये बात अलग है कि यह सूत्र जानते हुए भी कभी- कभी अपनाना मुश्किल हो जाता है।

शास्त्रीजी की पोस्ट के बहाने टिप्पणियों पर काफ़ी चर्चा हुई। अब हम भी कुछ ज्ञान ठेलेगें।

मैने देखा है कि बेहतर लेखन के अलावा निम्न तरह की पोस्टों पर मजे की टिप्प्णियां मिलती हैं:

१. आपके जनमदिन /ब्लागसाल गिरह या और कोई खुशी या गम का मौका अगर आप पोस्ट में बतायें। लोगों को बधाई या सहानुभूति जताना आसान लगता है। बीमार होने की या ठीक होकर आने की सूचना दे दें बस! टिप्पणियां ही टिप्पणियां
२. आप कुछ दिन ब्लाग लिखें फ़िर बन्द करने की घोषणा कर दें। मानमनौवल करने वाले घेर लेंगे।
३. आप किसी के द्वारा की गयी तानाशाही/बुरी बात या बदतमीजी की खबर छापते हैं। नारद विवाद के समय यह हुआ।
४. सनसनी या अश्लीलता हिट्स की गारन्टी हो सकती टिप्प्णी की नहीं


टिप्प्णियां सहज रूप में आयें तो अच्छा है। सार्थक हों तो और भी अच्छा। लेकिन टिप्पणियों के पीछे भागना दयनीय स्थिति है। नेटवर्किंग के चलते टिप्पणियों की भरमार लेखक को अपने बारे में गलतफ़हमी पैदा करने का सुअवसर प्रदान करती है। बहुत चमत्कृत कर देने वाला लेखन भी अच्छी टिप्पणियों से आपको वंचित करता है। लोग आपके लेखन को अद्भुत/ आनन्दित करने देने वाला और न जाने क्या-क्या बताकर तारीफ़ के डुबा के निकल लेते हैं।

एक बात जिस पर अक्सर लेखक ध्यान नहीं देते वह यह है कि आपके ब्लाग पर टिप्पणी करने वाले की सम्मान की रक्षा का कर्तव्य आपका होता है। अक्सर लोग ब्लाग पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम अपने टिप्पणीकार की भद्द , जो कि अक्सर अनाम और प्रायोजित भी होती है, पिटते देखते हैं और कुटिलता से मुस्कराते हैं। ऐसा जला हुआ पाठक आपके ब्लाग पर दुबारा आने से पहले कई बार सोचेगा। मोहल्ला और अपने उद्देश्य से भी ज्यादा आक्रामक तेवर रखने थीम ब्लाग पर इस तरह के उदाहरण मिल जायेगे।

समीरलाल और ज्ञानजी अधिक टिप्पणियां पाने वालों में हैं। समीरजी को टिप्पणियां उनके लेखन और नेटवर्किंग के कारण मिलती हैं। उनका व्यवहार भी अजातशत्रु टाइप का है। उनके ब्लाग पर ज्यादातर पाठक उनकी ही लाइने टीप कर वाह-वाह करते हैं। शायद समीरलाल जी के लिखने का अंदाज अपने आप में इत्ता संपूर्ण होता है कि पाठक को और कुछ जोड़ने की गुंजाइश नहीं दिखती।

ज्ञानजी के ब्लाग पर टिप्पणियों में वैल्यू एडीशन काफ़ी होता है। कभी-कभी तो यह भी लगता है कि ज्ञानजी के ब्लाग पर वैलुएबल चीज केवल उनके ब्लाग पर आयीं टिप्प्णियां ही हैं। ज्ञानजी का ब्लाग असल में एक चौपाल की तरह है। जिस पर ज्ञानजी केवल विषय प्रवर्तन करते हैं। इसके बाद बाकी लोग बात आगे बढ़ाते हैं। इस मामले में मैं ज्ञानजी को एक ’घाघ ब्लागर’ मानता हूं। वे सुर्री छोड़कर बैठ जाते हैं और शाम तक टिप्पणियां माडरेट करते रहते हैं।

हमारे ब्लाग पर जो पाठक टिपियाते हैं हम अक्सर उनके ब्लाग पर टिप्पणी नहीं कर पाते। इसका कारण हमारी कोई ऐठ नहीं वरन यह कि चर्चा और तमाम दूसरे सामूहिक कार्यों में समय इत्ता खर्च हो जाता है पता नहीं चलता। सच पूछा जाये तो अब टिप्पणी-चाह का बुखार दो-चार टिप्पणी मिलते ही उतर जाता है। फ़िर सोचते हैं कि अगली पोस्ट लिखी जाये। क्या कूड़ा लिख दिया यहां।

सबसे विकट हाल कविताओं पर आई टिप्पणियों पर होता है। जित्ती कविता की मेरी समझ है उसके अनुसार ब्लाग जगत में आजकल जो कवितायें लिखी जा रही हैं उनमें से ज्यादातर का स्तर औसत, इकहरा और सपाट सा होता है। इसके बावजूद थोक में टिप्पणियां पाठकों की उदारहृदयता और कविमना और संवेदनशील होने का परिचायक है। पचीस-तीस कमेंट पायी कविता पर कुछ लिखकर टोंकना भी खतरनाक काम है। कवि लोग पोयटिक जस्टिस की तलवार लेकर टुकड़े-टुकड़े कर देंगे हमारे तर्क शरीर के।

यह मजे की बात है कि अनियमितता और नेटवर्किंग के अभाव में तमाम क्लासिक लेख लिखने वाले लोग कम टिप्पणी पाते हैं। हिंदीब्लागर, लप्पूझन्ना, कबाड़खाना और अन्य तमाम ब्लाग पर ऐसी सामग्री होती है जो क्लासिक टाइप की है। लेकिन टिप्पणी उत्ती नहीं मिलती।

बहुत कुछ कह गया टिप्प्णी के बहाने। जित्ता कुछ कहा उससे ज्यादा छूट गया। लब्बोलुआबन यही कहना चाहता हूं कि
- टिप्पणी ब्लाग लेखन के लिये बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं। असल चीज आपका लेखन है।
- जो टिप्पणीकार आपकी खिल्ली उड़ाते हैं,आपके लेखन की मौज लेते हैं वे आपके सच्चे हितैषी भी/ही हो सकते हैं।
-टिप्पणीबाजी एक तरह की रिश्तेदारी है। जित्ती आप निभाओगे उत्ती दूसरा निभायेगा।
-नये साथी दूसरे के ब्लाग पर जायें टिपियायें। नये ब्लागर की टिप्पणी किसी एक तरह का मिस्ड काल है जिसे देखकर पुराना ब्लागर समझ सकता है एक नया साथी आ गया है। मिस्ड काल के जबाब में आम तौर पर लोग कालबैक करते ही हैं। नये ब्लागर को संपर्क बनाने के लिये मिस्ड काल करते रहना चाहिये।




एक लाइना


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  21. ब्‍लॉगर्स को सूचित किया जाता है कि : वे चिट्ठाचर्चा की एकलाइना पढ़ रहे हैं।



सवाल-जबाब



  1. सवाल:शास्त्रीजी का आज का अरण्य रोदन का विषय क्या है?
    जबाब:सिर्फ कुछ चिट्ठों को टिप्पणियां मिलती हैं!!!


  2. सवाल:चुनाव होने वाले हैं! देश के निठल्लों का क्या हाल है?उनका रुख क्या है? क्या कहते हैं वे?
    जबाब: रूख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं


  3. सवाल:आज का चिट्ठाकार क्या चाहता है?
    जबाब: तुरत लिखा, फुरत आलोचक मिले और 'धुरत' फ़ैसला....

  4. सवाल:ताऊ आजकल क्या सोचकर हलकान हैं?
    जबाब: क्या ये आर्थिक मंदी की शुरुआत है ?


  5. सवाल:आप अपनी जिन्दगी में क्या चाहते हैं?
    जबाब: उसका साथ


  6. सवाल:स्वामीजी के आज के प्रवचन का विषय क्या है?
    जबाब: एन्टी-करवाचौथ: मॉडर्न नारी होनें का अचूक नुस्खा!


  7. सवाल:अजित वडनेरकर जी क्या कर रहे हैं सुबह से भाई?
    जबाब: आलमारी में ख़ज़ाने की तलाश



...और अंत में


आज शास्त्रीजी के ब्लाग पर टिप्पणी के संबंध में पोस्ट चर्चा करते हुये काफ़ी कुछ लिखा लेकिन बहुत कुछ रह गया।

टिप्पणी की बहुत महिमा गायी जाती है लेकिन लगता है कि कुछ ज्यादा ही टिप्प्णी संवेदन हैं हम लोग। इस पर मैंने एक लेख लिखा था -टिप्पणी करी करी न करी
हमने वहां लिखा था:
  • टिप्पणी को अपने प्रति प्रेम का पैमाना न बनायें। बहुत लोग हैं जो आपसे बहुत खुश होंगे लेकिन आपके ब्लाग पर टिपियाते नहीं। टिप्पणी तो क्षणिक है जी। प्रेम शाश्वत है। आराम से प्रकट होगा।

  • टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है।


  • कल से कवितावाचक्नवी जी भी चर्चा करना शुरू करेंगी। उनकी पोस्ट दोपहर तक आयेगी। वे नियमित इतवार को चर्चा करेंगी। उनके जुड़ने से निश्चय ही चर्चा में निखार आयेगा।

    पोस्ट काफ़ी लम्बी हो गयी और रात भी काफ़ी हो गयी इसलिये टिप्पणी/प्रतिटिप्प्णी फ़िर सही।

    आपका इतवार शानदार गुजरे। स्वस्थ/प्रसन्न! मस्त/ टिचन्न!

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    21 टिप्‍पणियां:

    1. दरअसल आज लगा कि चिट्ठाचर्चा का जो उद्देश्य होना चाहिये, वो पूरा हुआ.

      मैं विषय वस्तु के समर्थन या विरोध में अभी कुछ नहीं कह रहा हूँ, मात्र प्रारुप के विषय में बात कर रहा हूँ.

      यह प्रारुप देकर आपने बहुत उम्दा कार्य किया है. पसंद आया. साधुवाद.

      विषय वस्तु पर तो एक पोस्ट की बनती है. :)

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    2. सही है जी, हाम भि तो येहि बोलता हाय..
      हामारा बात याहि हाय के पोस्ट में माल डालो फेर दाम माँगो

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    3. चकाचकतम चिठ्ठाचर्चा।
      टिप्पणियां आयें, न आयें, पर टिप्पणी पर सारगर्भित चर्चा सतत होगी; यह मैने जान लिया है।

      बाकी शाम को दिन भर की बुककीपिंग करते समय यह जरूर मन में आता है - आज कितने आये कालिया!

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    4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    5. ऐसा लगा आज पहली बार चिट्ठा चर्चा में वास्तव में चर्चा हुई। हम तो यही चाहेंगे कि अगर आप किसी दूसरे के दिन चर्चा करने बैठते हैं तो इसी तरह के फार्मेट में करें, चाहे एक लाईना और सवाल-जवाब की जगह एक और चिट्ठा लें लें लेकिन फार्मेट ऐसा ही हो, ये मेरी व्यक्तिगत राय है। एकदम चकाचक

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    6. ये हुई चर्चा, कीर्तन-भजन-निन्दा-नाम स्मरण से परे।

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    7. भाई शुकल जी , आज तो नए अंदाज में ! पसंद आया ! तरुण भाई से सहमत हूँ ! शुभकामनाएं !

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    8. Sanjeev ki baat 100% sahi hai! Aur ye main hi nahi balki bahut sare young bloggers dekh rahe hein ki hindi blogjagat mein log kaise tipanni karte hein! Waise bhi post padhkar pata chal jata hai ki koun kaisa likhta hai lekin yahan bahut badhiyan jaise shabd aapko aise dekhne ko milenge jaise bihar ke flood ke pani jisa hai jiska koi importance hi nahi hai! Aur is wah - wahi pane ka sabse achha tarika hai aap tippani kijiye or wapas ham bhi kar denge....yani len den ka relation maintain rahega!


      Ab kisi ke paas ek din mein 100 bloggers ko 'bahut badhiya' jaise shabdon ka copy paste karne ke liye faltoo time hai to kariye cut paste or badhaiye apna comments bank! Yahi to ho raha hai hamare mahan HINDI BLOG JAGAT mein or ye sirf hindi bloggers hi karte hein! Niabhaiye bhai...Tippani roopi swarthpurn dosti banaye rakhen or shriday nibhaiye! Bhagwan aaplogon ko isme uchaai tak pahunchaye!


      Aap badde badde logon se hi ham chote ye sab sikh rahe hein....Isliye KEEP IT UP!



      Rgds,
      Rewa

      जवाब देंहटाएं
    9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      जवाब देंहटाएं
    10. ये हुई ना बात। चिट्ठा चर्चा अब अपने उद्देश्य मे सफल होता दिख रहा है। चिट्ठों की चर्चा के साथ साथ, ऐसे विषयों पर भी चर्चा होनी चाहिए। ये एक अच्छा प्रयोग रहेगा। लोग भी जुटेंगे, लोग जुटेंगे तो कुछ कहेंगे भी। कहेंगे तो बवाल भी होगा, बवाल होगा तो लोग टिप्पणियां करेंगे अथवा अपने ब्लॉग पर लिखेंगे। और फिर बवाल बढेगा, कुल मिलाकर, चिट्ठाकारों को लिखने के लिए मसाला मिलेगा। मतलब कि एक हफ़्ते का इंतजाम तो कर ही दिया गया है। बाकी का आगे देखा जाए।

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    11. "लेकिन महज़ गिनती बढाने के लिए की गई टिपण्णी का क्या औचित्य?"


      ? Bilkul nahi....sarthakta hai aapke readers per...aapke blog ko kitne log padh rahe hein...bhale hi comment na kare lekin sarthakta post reading per hi depend hai. Lekin hindi blogjagat isme kafi peeche hai...maine dekha hai kitni ashuddhiyan pai jati hein inke hindi lekhan mein...balki ye log hindi bhash ki hi pair todne mein lage hein. Post karne se pahle kam se kam ek baar type ki gayi shabd ke spell per dhyan dena chhaiye.

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    12. शास्त्री जी को मुबारकबाद !

      जवाब देंहटाएं
    13. "लेकिन कुछ अपवाद भी हैं जैसे कुछ‌ महिलाओं के चिट्ठे हैं जिन पर न टाइप सही होता हैं और न ही कही जाने वाली बात में दम मगर लोग उनके चिट्ठे पर जाकर उनकी बेहूदा रचना पर वाह-वाही करते हैं। (नोट: महिलाएँ इस टिप्पणी को अन्यथा न लें जो बेहतर रचनाएँ दे रही हैं और दूसरों का सहयोग कर रहीं उनका अंतर्मन तो स्वयं जानता है)"


      Vinay ji, Bilkul nahi...ham aapki baaton ko anyatha nahi le rahe hein!

      To All,

      Lekin behuda post sirf mahilayen hi nahi likhti hai...balki purush varg bhi ise batorne mein peeche nahi hein! Aur praman chahiye to wo bhi de sakti hun lekin main kisi ka name nahi lena chahti hun. Waise sachchai se achuta koi nahi hai ki hindi bloggers world mein kinki lekhni kitni giri hui or maha ghatiya hoti hai. Iske liye koi praman ki jarrurat nahi hai. Ye bataiye 50-60 ke age ke hokar bhi koi young heroine ka vulger photo apne post per dalkar kya sabit karna chahte hein....ab ye mat kahiyega ki ye dekhne ka nazariya hai...bachche bhi dekhte hein insab cheezon ko aur kya ye socha hai ki wo kya sikhenge hamse? Duniya mein achhe photo ki kami nahi hai lekin ye hame sochna chahiye ki kaisi photo dalna chahiye kyunki isse hamare charitra bhi ujagar hota hai. Main bolna nahi chah rahi thee lekin jab baat nikali hai to bahut door talak jayegi isliye share karna jarruri hai.

      Ab bhi bahut kuch hai likhne ko...!


      rgds
      www.rewa.wordpress.com

      जवाब देंहटाएं
    14. पाठक जरुरी हैं टिपण्णी नहीं .

      और हर टिपण्णी का जवाब ब्लॉग पर देने से यानि " थैंक्स " कहने से केवल और केवल संख्या बढाई जाती हैं .

      ब्लॉग और वेबसाइट मे फरक हैं . आप से निवेदन हैं चर्चा ब्लॉग पर करे , जिन लोगो ने वेबसाइट बनाई हैं हिन्दी मे वो ब्लॉग यानी वेबलॉग नहीं लिखते हैं .

      वो हिन्दी मे अपनी वेबसाइट चलाते हैं अपनी रोजी रोटी के लिये और इस लिये उन पर इस मंच पर चर्चा ना की जाए . ब्लॉग चर्चा हो , और ये प्रयास बहुत अच्छा हैं लेकिन सारथि अब ब्लॉग नहीं रहा हैं वो एक वेबसाइट हैं और ब्लॉग चर्चा की परिधि से बाहर हैं . कुछ नियम जरुर होने चाहिये हर मंच पर .

      चिट्ठाचर्चा
      केवल और केवल ब्लॉग से सम्बंधित हो ताकि ब्लॉग लेखन जो व्यवासिक लेखन से अलग हैं उस पर चर्चा की जा सके

      जवाब देंहटाएं
    15. टिप्पणी को अपने प्रति प्रेम का पैमाना न बनायें। बहुत लोग हैं जो आपसे बहुत खुश होंगे लेकिन आपके ब्लाग पर टिपियाते नहीं। टिप्पणी तो क्षणिक है जी। प्रेम शाश्वत है। आराम से प्रकट होगा।

      टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है।

      उपरोक्त लाइने ही चर्चा का सार है

      जवाब देंहटाएं
    16. अभी कुछ दिन पहले चिटठा चर्चा में बदलाव की बात कही गई थी हमने भी इसका अनुमोदन किया था मगर हमारी तरह ही लोग यह नही बता पाए की क्या बदलाव होना चाहिए और एक मत न होने के कारन चिटठा चर्चा उसी ढर्रे पर चल रही है

      आज की पोस्ट पढ़ कर लगा की ये है असली चर्चा
      आशा करता हूँ की आगे भी इस प्रकार की चर्चा पढने को मिलेगी


      venus kesari

      जवाब देंहटाएं
    17. मुंबई हार्बर लाइन पर चलते समय कोली महिलाओं के सर पर टोकरी में केकड़ों के बारे में सुना ही होगा. हम सब एक हैं.

      जवाब देंहटाएं
    18. आज की चर्चा तमाम खूबि‍यों से लबरेज है। पढ़कर अच्‍छा लगा।

      जवाब देंहटाएं
    19. आपतो इस विषय के अब गंभीर भाष्यकार बन गए हैं -अब शास्त्री जी के ही ब्लॉग पर मैंने लंबे अरसे से टिपियाना छोड़ दिया है ! कारण ? ऐसा लगने लगा है कि वे अब महज ब्लॉग लेखन के लिए ब्लॉग लिखते है और टिप्पणी के लिए टिप्पणी करते हैं .मैं कद्र उनकी अब भी पूरी करता हूँ पर अब वे ख़ुद एक टिप्पणीकार खो बैठे हैं ! ज्ञान जी का वह प्लैंक है -और एक प्रोफेस्सनल की तरह वे क्वालिटी टिप्पणियाँ हलोरते रहते हैं आप की निरंतर सटीक कटूक्तियों के बावजूद भी !
      अब देखिये आपने भी यह लम्बी चौड़ी टिप्पणी खींच ही ली -कद्रदानों की कमी नही है गालिब करे तो कोई कमाल पैदा !

      जवाब देंहटाएं
    20. "आपका क्या कहना है?"

      प्रिय अनूप, सारथी पर छपे एक आलेख को विस्तार से उखाडने/उधेडने के लिये आभार. सारथी चूंकि शास्त्रार्थ के लिये समर्पित है अत: उस पर छपी हर बात विश्लेषण, खंडन आदि के लिए खुला है.

      "ज्ञान" किसी भी एक व्यक्ति की संपत्ति नहीं है बल्कि हम सबके पास ज्ञान के सिर्फ छोटे छोटे भंडार हैं. जब ये सारे भंडार शास्त्रार्थ द्वारा एक जगह एकत्रित किये जायेंगे एवं जब इस गेंहूँ से सारे कंकड पत्थर बीन कर अलग कर दिये जायेंगे तभी असल ज्ञान सामने आयगा.

      इस दिशा में आपने जो पहल की है उस के लिये आभार.

      हां, ऐसे चर्चों में भी एक-लाईना जरूर बनाये रखें क्योंकि वह एक-लाईना बहुत लोगों के लिये टानिक/प्रोत्साहन का कार्य करता है.

      सस्नेह

      -- शास्त्री

      -- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

      महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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    21. "टिप्पणी को अपने प्रति प्रेम का पैमाना न बनायें। बहुत लोग हैं जो आपसे बहुत खुश होंगे लेकिन आपके ब्लाग पर टिपियाते नहीं। टिप्पणी तो क्षणिक है जी। प्रेम शाश्वत है। आराम से प्रकट होगा।"
      अनूप जी, आपने सच्मुच बहुत सुन्दर बात कही.इस चर्चा हेतु आप साधुवाद के पात्र हैं
      नवजात शिशुओं (new bloggers) हेतु पूर्णतः मार्गर्दशक...

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