रविवार, दिसंबर 24, 2006

चिट्ठा चर्चा: बदलते समय के त्योहार

चुनावों के इस दौर मे २३ तारीख का चिट्ठा लेकर हम हाजिर हूँ। अरे इ का? हम तनिक लेट हुई गए तो देबाशीश ने दन्न से २४ तारीख की चिट्ठा चर्चा भी कर दी। अरे दादा! इत्ती जल्दी का थी, क्रिसमस मनाने जा रहे हो का? खैर हम तो अपनी दिहाड़ी मजबूत करें, नही तो शुकुल दनदानाते हुए तगादे का फायर कर देंगे।

तो भैया शुरुवात करते है, मिसरा जी के क्रिसमस पूर्व भोज की तस्वीरों से, मिसरा जी, जम के माल छान रहे है, तनिक देखा जाए। हमरी तरफ़ से भी सबको सुर में मैरी क्रिसमस बोला जाए। अरे इ का, इधर बबुआ अमित बदलते समय के बदलते त्योहारों से नाराज होइ गवा है, हम पर नही रे, हम पर होता तो हम का चर्चा करने लायक रहते? ये तो इन ससुरी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर नाराज है। बहुत देर धकापेल नाराजगी जताने के बाद, कहता है:
मुझे क्रिसमस पर कोई आपत्ति नहीं है, त्योहारों का मकसद खुशियाँ मनाना होता है, और खुशियाँ किसी एक संप्रदाय या धर्म आदि की जाग़ीर नहीं। उन पर सभी का अधिकार है। इसलिए चाहे दीपावली हो या ईद या क्रिसमस, अपन तो हर वक्त खुशी मनाते हैं। लेकिन यह बर्ताव थोड़ा अजीब सा लगा कि ये तथाकथित हाई-फ़ाई बड़ी दुकानें केवल पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हैं। जिस बाज़ार में हैं वहाँ के लोकल ज़ायके का भी ख़्याल रखना चाहिए।


अरे अमितवा नाराज ना हो, इ तो पूंजीवाद है, ससुरा जो चीज बिकने वाली होगी, बिकबै करि। का तीज त्योहार, राष्ट्रीयता, धर्म, समाज, जो कुछ भी होगा, उस पर बाजार लग जाएगा। तुम अपन स्वास्थ्य का खयाल रखो, इत्ता मत सोचों, कही चिन्ता मे अपना वजन कम कर दोगे, तो तकलीफ़ हो जाएगी, ऊ का है कि वजन बहुत जरुरी है। इधर महाशक्ति वाले प्रमेन्द्र बबुआ फिर लोगो से माफी मांग रहे है काहे? आप खुदैई पढ लो

चुनाव के दौर मे घोषणा पत्रों का दौर चालू है, जनप्रतिनिधि, राजनीतिक समीकरणो के गणित लगाकर, देश की जनता से राम और अल्ला के नाम पर वोट मांगते है। ऊपर से आशवासान भी देते है कि कि बुनकरों के दिन फिरेंगे, आखिर रोजगार देने मे भारत सबसे आगे है। ना ना, ये चुटकुला नही था, ये तो खबर थी, चुटकुला तो इधर मुन्ना भाई सुना रहे है, तो इधर ससुरी मुर्गी बदलचल निकली, मुर्गा अब सनम बेवफ़ा का गाना गाएगा। अब बेचारा मुर्गा आखिर कब तक, अपने बीते हुए पलों के एहसास मे जिए। आज पौराणिक कथाओ मे बकासुर वध पढिए और हास्य व्यंग के लिए राग-दरबारी का अगला अंक। देबाशीष आपके लिए स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह लाए है तो रवि भाई सवाल ठोक दिए कि, बूढी गइया किसके काम की होती है? आप भी जवाब दे दीजिए। शशि के अभी भोजपुरी लोकगीत चल रहे थे उधर से भोजपुरी कहावतों का जवाबी कीर्तन भी चालू है।

आज की तस्वीर का शीर्षक है खाना कब चालू होगा?


आज की टिप्पणी : उड़नतश्तरी द्वारा, उन्मुक्त के ब्लॉग पर
आप चुनाव में विजयी हों-हमारी शुभकामनायें. और यदि प्रतिद्वन्दी की शुभकामना पाकर दिल भर आया हो, आँखें नम सी लगें या गला रुँध जाये, तो नाम वापस ले लेना. मन हल्का लगेगा.
:)

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2 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा तो यही कहना है कि समय चूकि पुनि का पछताने!

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  2. चुनावी माहौल मे मेरे बयान को, गलत ढ़ग से प्रकाशित किया गया है। आज कल की मीडिया (चिठ्ठा चर्चा) चुनावों के दौर मे अपनी टीआरपी रेटिग(पाठक संख्‍या) बढ़ाने के लिये, प्रत्‍याशियों वयान को तोड-मरोड कर प्रकाशित किया जाता है। समाचार की हेडिगं ऐसी रखते है कि जिससे कि जिससे प्रत्‍याशी भी घबराकर अपनी कहीं बात को फिर से पढ़ने के लिये मजबूर हो जाता है।
    पर मै इस बात कस खण्‍डन करता हूँ कि मैने इस चुनावी मलौह मे किसी प्रत्‍याशी चिठ्ठाकार के समाने घुटने(माफी) नही टेके है। मीडिया ने मेरे बायन को गलत ढ़ग प्रस्‍तुत किया है, यह विवक्षी प्रत्‍याशियों की चाल है। उन्‍होने मीडिया को खरीद लिया है।
    मेरी अच्‍छी पोस्‍टों को संवाददाता जी खुद पढने के‍ लिये रख लेते है। और माफी तथा अन्‍य प्रकार के विवदित ममलों को को जम के उछाला जाता है, और दुष्‍प्रचार किया जाता है।
    इसी प्रकार नारद जी पर भी होता है, एक अन्‍य प्रत्‍याशी नाहर भाई की पोस्‍ट 11 बजे लिखते है और उस लेख की न्‍यूज 12 बजे नारद न्‍यूज नेटवर्क पर पर प्रकाशित होने लगती है, और मेरी लेखों की सूचना या आगले दिन 24 घन्‍टों के बात देते है, न्‍यूज देते है तो इतनी जल्‍दी गयाब होती है कि पता नही चलता है कि कब आई और कब गई। या फिर प्रकाशित ही नही होती है, दबा कर रख लेते है, अपने पढने के लिये।
    चुनाव का समय है बाहुबलियो के खौफ के आगे सारे चैनलो ने सही न्‍यूज प्रकाशित करने से तौबा कर लिया है।

    टिप्‍पणी :- चुनाव पर विशेष
    :-)

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