पिछले साल तक ब्लॉगमंडल पर चर्चा होती थी कि युनीकोड की राह न चलने के कारण कितने ही हिन्दी जालस्थल, जिनमें प्रमुखतः प्रोपायटरी या अन्य ट्रूटाइप फाँट्स प्रयोग करने वाले समाचार साईट हैं, डायनोसार होने की कगार पर हैं पर पद्मा और मेधास जैसे प्रयासों से अयूनिकोडित जालस्थलों के युनीकोड स्वरूप को देखना अब संभव है। हालांकि ये जानकारी आन दी फ्लाई यानि तुरतफुरत परिवर्तित हो कर दिखती है और यदि यूनीकोडित सामग्री को ये परिवर्तक स्टोर कर भी रखें तब भी मुझे अनुमान नहीं कि ये जुगाड़ लंबी दूरी की कवायद में कहाँ आ रुकेंगें और गूगल इस यूनीकोडित सामग्री को खोज पायेगा कि नहीं। पर जैसा की बांगला में कहावत है, नहीं मामा से काना मामा अच्छा। यूनीकोड के जाल पर उपयोग और समाचार माध्यमों की इस पर निर्भरता को देखते हुये उनका इस ओर बढ़ना ज़रुरी है और इस पर किया जाने वाला खर्च लाभप्रद ही साबित होगा।
जाल पर हिन्दी में लिखना अब कहीं आसान है, अनुनाद के चिट्ठाकार समूह पर समय समय पर प्रेषित कड़ियों से यह यात्रा दिखती है, ढेरों उपाय हैं, और अब अगर कोई ये कहे कि पर्याप्त जुगाड़ नहीं हैं तो मैं इसे महज़ बहानेबाज़ी ही मानुंगा। वर्डप्रेस जैसे माध्यमों में सीधे हिन्दी में टिप्पणी लिखने के लिये प्लगईन आ गये हैं शायद कुछ दिनों में पोस्ट सीधे लिखने के हिन्दी संपादित्र का भी आ जाय। ब्लॉगर, जिसका अब भी अधिकांश लोग प्रयोग करते हैं और वर्डप्रेस की ५० एमबी की डेटा सीमा के मद्देनज़र आगे भी करेंगे, के लिये अगर कोई ऐसा सीधा जुगाड़ बन सके तो कितना अच्छा हो।
तरकश निश्चित ही चिट्ठाजगत की शान में इज़ाफा करने वाले प्रकल्पों में से है। उभरते चिट्ठाकारों के पोल में नामांकित चिट्ठाकारों की सूची देखकर खुशी होती है, इनमें से कई न केवल अच्छा लिखते हैं वरन नियमित लिखते हैं और दुसरे का लिखा टिप्पणियों से सराहते भी हैं।
गाँधी पर चिट्ठामंडल पर जो बहस हुई वह स्वस्थ चिट्ठामंडल का परिचायक है और आगे भी ऐसी चर्चायें जारी रह सकें इस लिये ज़रूरी है कि व्यक्ति नहीं विचारों की बात हो, आक्षेप निजी स्तर पर न हों और समर वैचारिक हों। अच्छा यह भी हो कि परिचर्चा जैसे फोरम में होने वाली बहसों को चिट्ठों के द्वारा भी उठाया जाय ताकि ये संवाद केवल चिट्ठाजगत ही नहीं एग्रीगेटरों के माध्यम से हिन्दी चिट्ठाजगत के बाहर भी गुंजायमान हों। ग्लोबल वायसेस आनलाईन की एक प्रतिनिधि से हाल ही में चर्चा हुई और यह पता चला कि वे भारतीय भाषाओं के संवाद में रुची रखते हैं पर यह मानते हैं कि ये समुदाय बाहरी ब्लॉगमंडल से जुड़े नहीं है। मैं और अनूप यह प्रयास कर रहे हैं कि जीवी जैसे माध्यमों से हम हिन्दी चिट्ठा जगत की उल्लेखनीय चर्चाओं को कुंयें के बाहर भी परोंसे। जीवी जैसे माध्यम भले हमें खास हिट न दे सकें पर मुख्यधारा का मीडिया ऐसे समाचार श्रोतों पर नज़र रखता है और हमे इसका लाभ लेना चाहिये।
किंचिंत व्यक्तियों पर आधारित प्रकल्पों की आयु अधिक नहीं हो सकती, निरंतर के साथ मैंने यह महसूस किया है और चिट्ठाचर्चा के साथ अनूप ने यह साबित कर दिखाया है कि भागीदारी की ईंट से चिट्ठाचर्चा जैसी भव्य और टिकाउ ईमारत खड़ी की जा सकती है। हालांकि हर प्रकल्प के साथ रिंगमास्टर की उपस्थिति और रुचि चाहिये भी और अनुगूँज के लिये हमें ऐसे रिंगमास्टर की तलाश है जो इसे अपना कर समृद्ध कर सके। देसीटून्ज़ भी ऐसा एक प्रयास रहा जिसमें हम आपकी भागीदारी की भी उम्मीद करते हैं, अगर आप गंभीर या औपचारिक लेखन में रुची रखते हैं तो बुनो कहानी, निरंतर और तरकश जैसे माध्यम भी हैं।
हिन्दी चिट्ठे बाँचने के लिये और नवीनतम चिट्ठों की जानकारी के लिये अब अनेक माध्यम हैं और यह सूची शायद् 2007 में भी आपके काम आयेः
http://narad.akshargram.com
http://chitthacharcha.blogspot.com
http://groups.google.com/group/charcha
http://www.hindiblogs.com
http://hindi-blog-podcast.blogspot.com
http://hindi-b-h.blogspot.com/
http://www.technorati.com/faves/Indiblogger
http://www.myjavaserver.com/~hindi/ (फिलहाल बंद है)
http://feedraider.com/u/debashish/r/dpf9x/
आप सभी के लिये नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनायें!
कामना करता हूँ हिन्दी चिट्ठाकारी का पौधा आने वाले वर्ष में वटवृक्ष का रूप ले.
जवाब देंहटाएं"हालांकि हर प्रकल्प के साथ रिंगमास्टर की उपस्थिति और रुचि चाहिये भी और अनुगूँज के लिये हमें ऐसे रिंगमास्टर की तलाश है जो इसे अपना कर समृद्ध कर सके।"
जवाब देंहटाएंअनुगूँज के बारे में काफी दिनों से पूछने की सोच रहा था। जबसे मैं चिट्ठाजगत में आया हूँ उसका आयोजन नहीं हुआ। मेरे दिमाग में इस के लिए काफी विषय हैं। कृपया इस बारे में बतायें कि किस से संपर्क किया जाए।