रविवार, दिसंबर 17, 2006

इतना हंसो कि आंख से आंसू छलक पड़े

तो लीजिए जनाब पेश है दिनांक १६ दिसम्बर, दिन शनिवार की चिट्ठा चर्चा। यह चर्चा आज बहुत देर से पोस्ट हो रही है, इसकी वजह मेरा आफिस मे अतिव्यस्त होना रहा। शाम तक तगादे के कई मैसेज आ चुके थे, इसलिए आधी चर्चा ठेके पर लिखवाकर छापी जा रही है।

आज की सबसे चर्चित पोस्ट रही, शुकुल की "
इतना हंसो कि आंख से आंसू छलक पड़े", काहे हँसे, यहाँ रोने तक के वान्दे पड़े है काहे हँसे। लेकिन नही भई, हँसना जरुरी है, शुकुल आपको ऐसे नही जाने देंगे। शुकुल कहते है:

जैसे अमेरिका जैसे देश इराक जैसे देशों को सभ्य/लोकतांत्रिक देश बनाने के लिये उसकी हर तरह से बर्बादी कर रहे हैं उसी श्रद्धा से जोशीजी सागरजी को हंसाने में जुटे हैं। हर संभव उपाय कर रहे हैं। हर किसी आते-जाते को ठेका थमा रहे हैं कि सागरजी को हंसाऒ। अर्जुन को मछली की आंख की तरह उनकी आंखों के आगे केवल सागर चेहरा लहरा रहा है। वे सागर के सीने पर उठती हंसी की लहरों का प्रतिबिम्ब उनकें चेहरे पर देखना चाहते हैं
बकिया आप उनके ब्लॉग पर पढिएगा। एकलव्य का अगूंठा कट जाने पर उसने धनुर्विधा कैसे जारी रखी इस विषय पर अवधिया जी और उन्मुक्त के बीच विचार-विमर्श हुआ है. भई, पौराणिक तथ्यों पर वाद-विवाद की अंतहीन श्रंखला है. मार्के की बात यह है कि एकलव्य था बड़ा प्रतिभावान. ऐसे दो-चार युवा अपने देश में होते तो एशियाई और ओलम्पिक खेलों में भारत को पदकों का मोहताज नहीं होना पड़ता. फिर किसी शांति सौंदराजन को लड़की बनने की ज़रूरत भी नहीं होती.

ठिठुरते हुए सुबह-सुबह ऑफ़िस जाना, वो भी नहा-धोकर जाने की जल्दबाज़ी की बात अपने गीज़र या इलेक्ट्रिक रॉड को कतई पता न लगने दें. वरना हो सकता है कि वह भी अलसा जाए. उन पर भी मरफ़ी के दिलचस्प नियम लागू होते हैं.. कुछ ऐसा ही कहना है रवि रतलामी जी का. रवि जी पर मरफ़ी महोदय की आत्मा का यदा-कदा परकाया प्रवेश होता रहता है. वाणिज्यिक, व्यापारिक, नन्हे-मुन्ने और घरेलू महिलाओं पर इनके नियम पहले ही तय किए जा चुके थे.. इस बार तकनालॉजी पर नियम जारी किए गए हैं. बानगी देखिए-

  • आज के इनफ़ॉर्मेशन ओवरलोड के जमाने में सबसे आवश्यक तकनीकी दक्षता यह है कि हम जो सीखते हैं उससे ज्यादा भूलने लगें.

  • कम्प्यूटर अविश्वसनीय हैं, परंतु मनुष्य और ज्यादा अविश्वसनीय हैं. जो सिस्टम मनुष्य की विश्वसनीयता पर निर्भर है, वह अविश्वसनीय ही होगा.

  • जब कोई सिस्टम इतना सरल बनाया जाता है कि कोई मूर्ख भी उसका इस्तेमाल कर सके, तो फिर उसका इस्तेमाल सिर्फ मूर्ख ही करते हैं.

अमित गुप्ता ने वर्डप्रेस के हिन्दी होमपेज के बारे में पिछले दिनों चर्चा की थी.. जिसे आगे बढ़ाया है ई पंडित ने. वर्डप्रेस ख़ासकर हिन्दी को जितनी तवज्जो दे रहा है उससे कुछ और ब्लॉगस्पॉट वाले चिट्ठाकार अपनी दुकान शिफ़्ट करने का विचार बना सकते हैं.

कवि मोहन राणा को चिंता है कि जलवायु में बदलाव आ रहे हैं. बीच दिसम्बर में वसंत के मौसम के आसार दिख रहे हैं. सबूत के तौर पर उन्होंने चित्र भी चिपकाया है.

'' मन की बात ने बेहतरीन वापसी की है.'' यह तारीफ़ ब्लॉग जगत के कवियों के पितामह समीर लाल जी ने की है. कम्प्यूटर की ख़राबी अब ठीक हो गई है इसलिए मन की बात अपनी रचनाएं लेकर वापस ब्लॉगजगत में आमद दे चुकी है. सरद काल पर सुंदर रचना के साथ वे हाज़िर हैं.

सरद काल
रजाई गद्दा का सवाल
ग़रीब के जी का जंजाल

सरद काल

गुड़ मिला भात

मक्की की रोटी

सरसों का साग

वाह! भई क्या बात

लाल्टू किराए का मकान बदलने में हुई परेशानी का ज़िक्र कर रहे हैं. मकान मालिक और किराएदार के बीच टन्नस की अनगिनत मिसालें हैं. लेकिन लाल्टू ने अपनी परेशानी को देश-विदेश के लोगों की मानसिकता तक प्रसारित कर दिया है.

वीरेन्द्र कुमार सिंह पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति के बारे में ज्ञानवर्धक श्रंखला भौतिक जगत और मानव-४ जारी रखे हुए हैं.

" बाइबिल (Bible) में लिखा है

' ईश्वर की इच्छा से पृथ्वी ने घास तथा पौधे और फसल देनेवाले वृक्ष, जो अपनी किस्म के बीज अपने अंदर सँजोए थे, उपजाए; फिर उसने मछलियॉं बनाई और हर जीव, जो गतिमान है, और पंखदार चिडियॉं तथा रेंगनेवाले जानवर और पशु। और फिर अपनी ही भॉंति मानव का निर्माण किया और जोड़े बनाए। फिर सातवें दिन उसने विश्राम किया।'

यही सातवॉं दिन ईसाइयों का विश्राम दिवस ( Sabbath) बना। इसी प्रकार की कथा कुरान में भी है। पर साम्यवाद ( communism) के रूप में निरीश्वरवादी पंथ आया। इन्होंने ( ओपेरिन, हाल्डेन आदि ने) यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि जीवन रासायनिक आक्षविक प्रक्रिया (chemical atomic process) से उत्पन होकर धीरे धीरे विकसित हुआ। इसे सिध्द करने के लिए कि ईश्वर नहीं है, उन्होने प्रयोगशाला में जीव बनाने का प्रयत्न किया। कहना चाहा,

' कहाँ है तुम्हारी काल्पनिक आत्मा और कहाँ गया तुम्हारा सृष्टिकर्ता परमात्मा ?'

बिग बॉस मे क्या क्या हो रहा है यह जानने के लिए टीवी देखने में वक़्त ख़राब न करें. संजय की भांति आंखों देखा हाल ब्लॉगजगत में लोकतेज सुना रहे हैं. पिछली कड़ियों की तरह इस बार भी उन्होंने शनिवार को जो राउंड अप देखा उसके बारे में विस्तार से लिखा है. अपना वक़्त बचाएं और बिग बॉस की बजाय लोकतेज का चिट्ठा ही पढ़ें. भई ये सब पढ़कर तो लगता है कि ये भी विचारने के लिए गंभीर विषय हो सकता है कि कौन अंदर हुआ कौन बाहर होने वाला है.

मनीषा पर क्रिकेट की धुन सवार है. एक दिवसीय मैचों में औंधे मुंह गिरने के बाद टेस्ट मैच में भारतीय टीम के जीतने की संभावना बढ गई है. इससे मनीषा खासी उत्साहित है. ख़ासकर सौरव गांगुली के प्रशंसनीय प्रदर्शन से. अपने चिट्ठे ' हिन्दी बात' में उन्होंने लिखा है ''सौरव गांगुली जिस तरह की विपरीत परिस्थिति में खेलने आये उसको देखते हुये इसे बहुत अच्छा प्रदर्शन ही माना जायेगा। सौरव गांगुली ने यह दिखाया कि आदमी को अपने उपर पूरा विश्स रखना चाहिये और विपरीत परिस्थितियों में धैर्य नहीं खोना चाहिये। ''

कभी तो बदलेगा इस दिखावटी ज़माने का मिज़ाज भी, मेरे गीतो में वही एक माधुर आस दिखाई देती है- ऐसा कहना है रंजन भाटिया का. अपने दर्द को ग़ज़ल में उतार दिया है. पन्ने पर चित्र भी ग़ज़ल के भाव को प्रतिबिंबित कर रहा है.


आज का चित्र : हमारे दर्पण से (काहे, हमारी मर्जी)


पिछले साल इसी हफ़्ते : बीच बाजार- संसद मे सवाल

आज की टिप्पणी : सागर चन्द नाहरजी (जहाँ से फ़ड्डा शुरु हुआ था) द्वारा फुरसतिया के ब्लॉग से

जो काम आपके चेले नहीं कर पाये आज आपने कर दिया है, वाकई जिस तरह की हँसी मैं हँसना चाह रहा था, आपने हँसा ही दिया। यानि मसखरों की तरह मुँह फ़ाड़ कर नहीं ऐसी हँसी जिसमें भले ही होंठ ना हिलें पर मन में सुकून का अहसास हो, गुदगुदी हो। मेरा साक्षात्कार भी बिल्कुल मेरे ही अंदाज में लिया है, यह अगर सत्य होता तो मैं वाकई यही करता, जिसका वर्णन आपने किया है। गिरीराज जोशी, प्रतीक जी और भुवनेश जी को एक बार फ़िर से धन्यवाद, जिनके प्रयासों से चारे चिट्ठाकारों को एक उत्कृष्ट रचना पढ़नेको मिली।

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2 टिप्‍पणियां:

  1. जल्दीबाजी में की गई चर्चा जब इतनी सही चली, तब आराम से क्या चर्चा पर पोस्ट की जगह किताब लिखोगे क्या भाई!! बहुत बढ़ियां बयानी रही.

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