संजय : महाराज शादी-ब्याह का सिजन-सा चल रहा है, रोज एक-दो जगह जाना पड़ता है. मुफ्त के भोज का लालच सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करने पर मजबूर कर देता है.
धृतराष्ट्र : अब तो आदत-सी हो गई है, उल्टा जब आते हो तब आश्चर्य होता है.छोड़ो यह सब बताओ कौन क्या लिख रहा है?
तब तक संजय लैपटॉप पर आँखें गड़ाए उसमें खो गए थे.
संजय : महाराज श्रीशजी फोटोशोप में हिन्दी कैसे लिखे, यह बता रहे हैं. हिन्दी में लिख तो पहले भी सकते थे पर उनके अनुसार यह सरल तरीका है.
धृतराष्ट्र : वो तो ठीक पर यह कोलाहल क्यों मचा हुआ है.
संजय : हाँ महाराज, इधर अफ्लातुनजी ने मजनुओं की तुलना कृष्ण से कर निशाना मुख्यमंत्री पर साधा, उधर पंकज भाई ने जवाबी गोला दागा की कृष्ण मवाली तो न थे. इसी से थोड़ी ‘हो-हा’ हो गई.
धृतराष्ट्र : इस शोर-शराबे के बीच नाहर हँस क्यों रहे है?
संजय : महाराज जोशीजी ने कविता करते करते अचानक सागरजी को हँसाने की मुहिम छेड़ दी. जब कोई उन्हे हँसा न सका तो कहा गया की अब सागरजी खुद ही लिखे और उसे पढ़ कर हँसे. सागरजी ने वही किया और अब हँस रहे है.
धृतराष्ट्र : ये कवि भी अजीब-अजीब खुराफ़ात करते रहते हैं.
संजय : यह क्या कम था कि एक और कवि का पदार्पण हुआ है. अभिजीत महाशय लाएं है अपनी कलम से निकली शेरो-शायरी. इनका स्वागत करें तथा जानी-मानी गुजराती चिट्ठाकार व कवियत्री उर्मिजी की हिन्दी कविता पढ़े तरकश पर.
इधर नाराज कवि शैलेश पूछ रहे हैं की तुमने कैसे कहा की तुम्हें भूल जाऊँ.
धृतराष्ट्र : यहाँ माहौल जरा भावुक हो रहा है.
संजय : तो इस तरफ गौर करें महाराज, सुख-सागर से आज भीम नागलोक की ओर जा रहें हैं, तो जोगलिखी के अनुसार सूरज उतर रहा है पृथ्वी पर.
और बसंती तथा ट्रांसफार्मर में क्या सम्बन्ध है, यह जानने के लिए तो देसी टूंज को ही देखना पड़ेगा.
आप इनके सम्बन्ध को समझने की कोशिश करें महाराज, तब तक मैं एक और भोज में शामिल हो कर आता हूँ.
चलो, हमारे कहने से ही सही, आप जागे तो वरना तो ८ तारीख से बिना बताये ही छुट्टी काटी जा रही थी.
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