धृतराष्ट्र ने कोफी का घूँट भरा, इधर संजय भी अब सजग हो कर संजाल पर विचरण करने लगे.
धृतराष्ट्र : संजय जगह जगह पर इतनी भीड़ क्यों जमा है?
संजय : महाराज यहाँ कुछ विचित्र से प्राणी उठा लाए हैं, लाल्टूजी, तथा हाथ उठा उठा कर सबको दिखा रहे हैं. बस इन्हे देखने के लिए लोग जमा हो रहे है.
दुसरी तरफ इधर-उधर से शुद्ध हिन्दी लिखने के तरीके जुटा कर लाये हैं, रमणजी, सिखा रहे है नुक़्ते या फिर नुक्ते या जो भी हो... अब लोग-बाग को रोक तो सकते नहीं, सभी नुक्ते लगाना सिख रहे हैं.
यहाँ लादेन के मारे जाने की खबर लेकर आएं हैं जितूभाई. एफ.बी.आई. वालो ने मेरा-पन्ना को घेर लिया और भीड़ जमा हो गई. अब जीतूजी अपनी बात से मुकर रहे हैं. कहते हैं जो मरा वह हाथी था.
अब इधर पार्टी चल रही है, इसलिए भीड़ है, सुन्दरी को बचा लिया गया है. जीतूभाई खुश है, सबको कुछ न कुछ मिला है, पार्टी चल रही है. भैंस नोट चर रही है.
धृतराष्ट्र : हम आगे चलते हैं. इन्हे पार्टी का मजा लेने दो.
संजय : महाराज मजा तो अमित का किरकिरा हो गया. समय बदला तो तन्दूरी चिकन का स्वाद भी बेस्वाद हो गया.
धृतराष्ट्र : बुरा हुआ, पर यह कौन गुनगुनाता हुआ जा रहा है.
संजय : महाराज, मुम्बई वाले शशि सिहं है, इन्हे कबुल-एक्सप्रेस फिल्म खुब पसन्द आयी तथा घर लौटते समय मस्ती में भोजपुरी गीत गुनगुना रहे हैं.इन्हे गुनगुनाते देख राज भी शेरो-शायरी के मूड में आ गए तथा गाने लगे “मौला मेरे.. मौला मेरे..मेरे मौला..”
धृतराष्ट्र : गाने ही क्यों किस्से कहानियाँ भी खूब चल रही है, इन दिनो.
संजय : हाँ महाराज, अफ्फातुनजी अपने शैशवकाल के किस्से सुना रहे हैं, तो सुखसागर में आज कर्ण-अर्जुन की कथा है. वहीं महमूद गज़नी के हाथो भारत के लुटते रहने की कथा सुना रहे हैं तरकश पर संजय.
महाराज आप भारत के नियाग्रा प्रपात को निहारीये तथा यहाँ चिट्ठाकार रवि कामदार को उनके जन्मदिवस की बधाई दिजीये. मैं होता हूँ लोग-आउट.
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