संजय : महाराज चुनाव के माहौल का असर है, अनुपजी ने बताया ही हैं की इंडीब्लोगीज़ तथा तरकश पर चुनाव हो रहे हैं.
धृतराष्ट्र : पर तुम क्यों उम्मीदवारों की तरह दुआ सलाम करते फिर रहे हो? और कल कहाँ थे?
संजय तब तक लैपटोप की स्क्रीन में खो गए थे.
संजय : महाराज, चुनावी टंटो में फस गया था. और यह देखिये पहला घोषणापत्र भी आ गया है, ई-पंडितजी का.
इधर शत शत नमन करते हुए गिरिराजजी चुनावी माहौल पर चिट्ठाकारों की मौज ले रहे है. कृपया अन्यथा न ले.
धृतराष्ट्र : अब यहाँ से बाहर भी निकलो.
संजय : (झेंपते हुए) महाराज शुएब खुदा का वास्ता दे कर सागरजी को हँसाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं ओशो के हँसते हुए धर्म के लतिफे सुना कर हँसा रहे हैं मटरगशती करते प्रभातजी.
धृतराष्ट्र : सभी मटरगशती कर रहें हैं या कोई अनुशासन भी है?
संजय : स्नेह और अनुशासन दोनो है, बापू की गोद में. देखें अफ्लातूनजी के शैशव के संस्मरण.
वहीं सृजन शिल्पी के साथ पाँच वर्ष बाद के भारत को देखते हुए वैकल्पिक दिशा में सोचें.
या फिर नितिन बागलाजी के साथ बैठ कर अवलोकन करे साल 2006 का तथा प्रतिक्षा करें की नए साल में पायरेटेड किताबे नहीं खरिदेंगे.
कहीं आपका यह साल बिहारी बाबू की तरह पहेलियों में तो बीता नहीं जा रहा है?.
धृतराष्ट्र : अभी हमने अवलोकन नहीं किया, करेंगे तो बता भी देंगे.
संजय : क्षमा करें महाराज, घूम कर उसी विषय पर लौटना पड़ रहा है. चुनाव सम्बन्धी जरूरी सुचना जोगलिखी पर लिखी गई है, तथा तरकश पर पुरस्कारों की सूची रखी गई है. इसलिए बताना जरूरी हो गया था.
धृतराष्ट्र : ठीक है.
धृतराष्ट्र ने कोफी का अंतिम घँट भरा.
संजय : महाराज मैं जहाँ तक देख पा रहा था आपको हाल सुना दिया, अब आप जुगाड़ी लिंको का आनन्द लें और मैं होता हूँ लोग-आउट.
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