रविवार, दिसंबर 03, 2006

रविवारीय चिट्ठा चर्चा

अरे यार! भाई लोगों ने हमे अच्छा फंसाया है। रविवार के दिन, शनिवार के चिट्ठों की चर्चा करने के लिए। अब परेशानी ये होती है, अक्सर ब्लॉगर भईया रविवार के दिन अपना मैन्टीनेन्स करते है, हमको बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। कई कई बार पोस्ट लिखो, कई बार तो पब्लिश मे काम लग जाता है और कई कई बार तो ड्राफ़्ट संचित करने मे ही नानी याद आ जाती है। इस हफ़्ते एक और गफ़लत हो गयी, ये अतुलवा है ना बहुत नटखट है, बोला इस बार हम लिखेंगे। हम बोले ठीक है तुम लिख लो। अब इस लखनऊ के नवाब की वजह से हम चिट्ठा चर्चा नही किए, उधर शुकुल तगादा करते हुए पहुँचे, हड़काते हुए बोले, लिखो, अतुल भी लिखना चाहे तो वो भी लिख ले, तुम काहे अपनी दिहाड़ी से हाथ धो। तो भई शुरु करते है, चिट्ठा चर्चा।
सबसे पहले तो स्वागत किया जाए, तुषार भाई का, जो मराठी चिट्ठों की चर्चा कर रहे है:

तुषार भाई, तुमचा चिठ्ठाचर्चात हार्दिक स्वागत। तुमच्या आल्यानि आमचा मराठी ब्लॉग च्या वासा नी पण परिचय होइल।
(तुषार भाई, आपका चिट्ठा चर्चा मे हार्दिक स्वागत है। आपके आने से हमे, मराठी चिट्ठों की खुशबू से भी परिचय हो जाएगा।)

सबसे पहले विश्व एड्स दिवस पर रमण कौल का लेख। रमण भाई ने यह लेख १ तारीख को लिखा था, लेकिन नारद के पास ये २ तारीख को पहुँचा, इसे हम २ तारीख की प्रविष्टियों मे शामिल मान रहे है। साथ ही रमण भाई, एयरटेल और गूगल के साझेदारी के बारे मे भी बता रहे है। एड्स दिवस वाले लेख मे रमण भाई कहते है:
आज विश्व एड्स दिवस पर बिल क्लिंटन भारत में थे, जिन्होंने बताया कि “भारत एड्स पीड़ितों का नया केंद्र बन गया है”। उधर दूसरे बिल (गेट्स) भी अपना कुछ न कुछ योगदान देते रहते हैं। अब ज़रूरत है कि हम लोग और हमारा सरकारी तन्त्र बिल से बाहर निकलें।


उधर एड्स दिवस से बेखबर, रत्ना जी, तीन जनवरी से इलाहाबाद के संगम तट पर ढेड़ माह तक चलने वाले अर्ध-कुम्भ
मेले के बारे मे बता रही है:
माघ मास प्रयाग बुलावे
संगम तट नगरी बस जावे
संगी साथी के दल-बल में
भक्तन् का दरिया लहरावे

अब अर्ध-कुम्भ मे नहायेंगे तो स्वर्ग का टिकट तो कटबै करिहे, ना कटे तो अपन भुवनेश भईया है ना, ऊ ले जाब। का चोखी बात कहि हो भुवनेश बाबू:
जो लोग मर जाते हैं उनका मरण दिन पुण्यतिथि कहलाने लगता है। पर सभी का मरण दिन पुण्यतिथि हो ऐसा भी नहीं। पुण्यतिथि केवल उन्हीं लोगों की होती है जिनके लड़के हर साल अखबार में बढ़िया विज्ञापन छपवाते हैं। साथ में जलती हुई अगरबत्तियाँ भी छपी रहती हैं पर पता नहीं क्यों उनकी खुशबू मेरी नाक तक नहीं पहुँचती। शायद ऊँची नाक वाले लोगों की नाक में पहुँचती हो, पर मेरी नाक जरा छोटी है। कुछ विशेष स्वर्गीय लोगों की पुण्यतिथि तो अखबार के मुखपृष्ठ पर रंगीन फ़ोटो और अगरबत्तियाँ लगाकर मनाई जाती है। विज्ञापन की रंगीनियत को देखकर समझ में आ जाता है कि मरने वाला स्वर्ग में कितने रंगीन दिन गुजार रहा होगा।


इधर मास्साब को ट्वेन्टी ट्वेन्टी क्रिकेट का बुखार चढने लगा, अब ये फ़ास्ट क्रिकेट था या चीयर्स मेकर्स लड़किया (जिनके टाप दिनो दिन ऊपर और स्कर्ट दिनो दिन नीचे होती जा रही है।) खैर अपना क्या, आइये मनीषा के साथ शहरों को न्यूयार्क बनाने के बारे मे पढे। सुनील भाई सेक्सोमेनिया नाम की नयी बीमारी के बारे मे बता रहे है :
यह बीमारी कुछ कुछ नींद में चलने की बीमारी से मिलती जुलती है. इसका नाम रखा गया है सेक्सोमनिया, यानि सोते सोते नींद में अपने साथ सोये साथी के साथ यौन सम्पर्क बनाना. जब व्यक्ति जागता है तो उसे मालूम नहीं चलता कि उसने नींद में क्या किया.


संजय भाई बता रहे है, हिटलर का भारत की आजादी मे योगदान। बहुत सही लेख,आप खुद पढिए, यहाँ बताकर मजा किरकिरा नही करूंगा। रमा जी का बेमिसाल दर्शन देखिए:
ऐसा लगता है हम
पत्थर युग की ओर
धीरे-धीरे सरक रहे हैं।
अच्छा है अगर,
अगर सब पत्थर बन जाएं
कम से कम ऊंच-नीच की खाई तो
पट जायेगी
और भावनाएं इस तरह
लहूलुहान तो नहीं होंगी॥


शोएब के खुदा, एड्स दिवस के बारे मे बतियाते हुए, एशियन गेम्स देखने, दोहा, कतर पहुँच गये है। तुषार जोशी कहते है :
तुम अब ठान लोगे
ज़िंदगी की हर उलझन को
नया समाधान दोगे
तुम अब ठान लोगे


रवि भाई के वैब पर लिखे लेख, अब अखबारों मे छपने लगे, यानि बयार उल्टी बहने लगी। रवि भाई साथ ही बता रहे है T6 तकनीक के बारे में। अनूप भार्गव ने शेरो शायरी मे एक गुजारिश की है:
छू लिया आ कर के तूनें इस तरह मेरा वज़ूद
साँस भी तेरी मुझे अब अपनें जैसी ही लगे है ।
मानोशी ने तपाक से जवाब दे मारा एक गज़ल के जरिए :
ढूँढता है दर बदर क्यों मारा मारा
प्यार ही तो ज़िन्दगी में सब नहीं है

आज का झकास लेख फुरसतिया के लेख से "एक चलताऊ चैनल चर्चा" ये लेख भी २ और ३ तारीख के पचड़े में फंसा हुआ है, ३ तारीख की चर्चा वाले भाई इसके बारे मे विस्तार से लिखें। रजनी भार्गव की बिखरे हुए रंग हैं पानी के कैन्वस पर..., जरुर देखें।

जगदीश भाटिया जी अमृता प्रीतम एक पंजाबी कविता का अनुवाद पेश कर रहे है। सुखसागर से ययाति की कथा पढिए।

आज की टिप्पणी: सुनील भाई के लेख से:
इस बिमारी के बारे में पहली बार सुन रहा हूँ. अगर इसे मान्यता मिल जाती है, तो इसके काफी बुरे प्रभाव भी सामने आ सकते हैं.बलात्कारी तब अपराधी न हो कर, मरीज़ बन जाएंगे. - संजय बेंगानी।


पिछले साल इसी सप्ताह:
मुक्त जनपद से: नवें दशक का उफान
अनकही बाते: हम फिल्मे क्यों देखते है?
( ये दोनो ब्लॉगर इस समय लेखन से गायब है, यहाँ पर लिंक देने का उद्देश्य है कि इनको सोते से जगाया जाए।)


मेरी पसन्द का आज का चित्र: सौजन्य से : hvhe1

Post Comment

Post Comment

1 टिप्पणी:

  1. बढ़िया है! सबेरे कहा और दोपहर तक तुम लिख दिये चिट्ठाचर्चा! क्या इस्पीड है!इस्टाइअल तो हइयै है!

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative