हिन्दी समिति और राजधानी मंदिर का था आयोजन
टोरांटो से श्री समीर जी उसमें हिस्सा लेने पहुंचे
अपनी कुंडलियों से सबका सराबोर कर डालाथा मन
संध्या पौने सात बजे से साढ़े ग्यारह बजे रात तक
कविता की रसधार बही थी उस पल सभागार के अंदर
पढ़ पायेंगे उड़नतश्तरी पर जल्दी ही पूरा विवरण
तब तक मैं संक्षिप्त जानकारी को आया संग में लेकर
अब उसका खुमार कम करके चिट्ठों पर आ नजरें डाली
कौन समस्या सुलझाता है, कौन अभी तक बना सवाली
बुरा देखने की ख्वाहिश ले भटक रहे हैं श्री खबरिया
औ' प्रतीक जी अपने संग में लाये हैं आरती छबड़िया
फिर विदेश लेकर चलते हैं रिश्वत बिना रवि रतलामी
और प्रतीक लगे कोशिश में जैसे तैसे हँस लें सागर
भैय्ये इतनी कोशिश करते तो दस सरितायें हँस लेती
जो गंभीर रहा करता है, कब हँसता बोलो रत्नाकर ?
मानवता की कमी दिखाता है अनुभूतिकलश कविता में
पौरोष सिमट रहा बतलाता है गज़लों की चली विधा में
मलयाली चिट्ठों की लेकर आये कहानी फ़ुरसतियाजी
मोती शबनम के मिश्राजी दिखा रहे पड़ती छाया में
फिर वे लगे सुनाने सहसा कैमिस्ट्री की एक कहानी
बने मेजबां ईराकी प्रोफ़ेसर की जो की थी मेहमानी
संश्लेषण कर,विश्लेषण कर, करें आसवित सिल्डेनाफिल
इसके आगे की गाथायें छुपी रह गईं सब अनजानी
आज का चित्र:-
आज की टिप्पणी:-
उदयीमान ??? :)भाई इसका सूर्य तो कबका अस्त हो गया।थोडे दिन में भाभी के रोल में या बालाजी के धारावाहिक में दिखने लगे तो अचरज मत करना
By Pankaj Bengani, at 8:24 PM, December 11, 2006
श्री गणेश की प्रतिमा के आगे गणेश जी दीप जलाते
और कुंडली के संग संग में आये अपनी गज़लें गाते
ढले सूर्य को कहें भोर का ,ये तो अच्छी बात नहीं है
पंकज जी प्रतीक को अपनी यह अनमोल राय बतलाते
"श्री गणेश की प्रतिमा के आगे गणेश जी दीप जलाते
जवाब देंहटाएंऔर कुंडली के संग संग में आये अपनी गज़लें गाते"
:) यह जो गणेश जी की प्रतिमा के आगे गणेश जी दीप जला रहे हैं, वो मै हूँ और काया देख कर राकेश भाई कन्फ्यूजन में उन्हें भी गणेश जी ही समझ बैठे. :)