हाँ भाई निठल्ले ये बताओ चिट्ठागिरी में करना क्या होता है सर्किट ने पूछा। अब हमें पता होता तो बताते पहला दिन था, इतना पता था कि नारद को ऊपर से लेकर नीचे टटोलना होता है जैसे आजकल एयरपोर्ट में करते हैं। तभी सर्किट चिल्लाया, भाई दुबई! मुन्ना भाई बोले, अबे चुप, हर जगह बस दुबई दिखायी देता है। कसम से भाई, वो देखो कोई जीतू है जो दुबई दिखा रहा है अपनी नजर से। चलो ना भाई हम भी देखते हैं।
लगता है हमने चिट्ठागिरी करने का मन क्या बनाया हमें बापू की आवाज भी सुनायी देने लगी हो सकता है किसी दिन दिखायी भी देने लगे। बापू कह रहे थे, मुन्ना अपने इस दोस्त को बोलो कि धुंधलकों में छिपा सच देखने की आदत डाल ले कही जेल हो गई तो सिर्फ प्रतिक्षा करते रह जायेगा। मुन्ना ने बात सर्किट को दोहरा दी, सर्किट उल्टा खुश होके बोला, भाई अपने को जेल हो गयी तो टीवी वाले आयेंगे ना अपना भी साक्षात्कार लेने। उसके बाद चाहे तो आप लोग भी हमें टीवी में आने के लिये अपना जुगाडी लिंक समझ लेना।
हम बोले, अब तुम दोनो ही बोलते रहोगे क्या। वो देखो कोई रमई काका भी कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं। सर्किट बोला जब हम जैसे असली बाबा घर के अंदर आ गये हैं तो बाकि सब सिर्फ कोशिश ही कर सकते हैं, बोलेंगे तो तभी जब मुन्ना भाई चाहेंगे, क्यों भाई बरोबर बोला ना। मुन्ना भाई बोले, सुशार्न्तिभवतु! ये क्या बासमती चावल की तरह झगड रहे हो, चांद और चांदनी का ये सुन्दर नजारा देखो और फिर प्यार से बोलो गुड मार्निSSSSSग मुम्बई।
बापू बोले, अब मैं नही देख सकता ये सब उमर हो गयी है ना। मुन्ना बोला, कोई नही बापू आप तब तक शक और प्यार का ये लफडा सुनो हम नववर्ष से पहले एक बार रेगिस्तान से सूर्यास्त देख के आते हैं।
हम बोले वाह! ये भी खूब रही तुम लोग इधर उधर कट लोगे तो हम अकेले बैठ ये चंद शेर नही सुनने वाले। हाँ निठल्ले भाई, मैं रहूँगा ना तुम्हारे साथ और साथ में ये पति का मुरब्बा खायेंगे सर्किट बोला। ओये चुप, खुश तो ऐसे हो रहा है जैसे तीन दिन की आफॅ लाईन कैद से मुक्ति मिली हो। चल जल्दी से ये विद्यार्थी जीवन के सुपरहिट संवाद याद करले बाद में पब्लिक को धमकाने के काम आयेंगे। और सुन बाद में माइक्रोसोफ्ट फोनेटिक इनपुट में इनका विवरण डालना मत भूलना।
सर्किट उखड गया, देखलो भाई! ये सीधी दादागिरी है। इसने बोला था सब कुछ ये संभाल लेगा और हम सिर्फ खडे रहेंगे, यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है। हमें बोलना पडा, धैर्य सर्किट धैर्य जो तुम कह रहे हो समझो हो ही गया।
वाह, तरुण भाई, आ गये और छा गये. काहे नहीं, मुन्ना भाई और सर्किट के साथ बापू को जो लाये हो. स्वागत है, बढ़ियां रही ओपनिंग.
जवाब देंहटाएंवाह तरुण भाई, आपने तो वाकई अपना रंग जमा दिया चिट्ठा चर्चा पर। पहले बॉल पर सिक्सर!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब पहले पता होता कि तरुण आज लिखेंगे तो हमारी टाइपिंग बचती!
जवाब देंहटाएंतरूण,
जवाब देंहटाएंआपका चिट्ठा चर्चा दल में स्वागत है.
उम्मीद है नियमित चर्चा करेंगे :)
रवि
चर्चा अच्छी रही.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुरूजनों!
जवाब देंहटाएंअनुप जी हम आप की शान में कसीदे पढ रहे हैं और आप ऐसा कह रहे हैं। आयेंदा से ऐसा नही होगा, ग्रुप में सबको बताने का कोई तरीका है क्या?
(देखें: http://www.readers-cafe.net/nc/?p=100)
रविजी नियमित चर्चा करना मुश्किल था इसीलिये तो नये शब्द का इजाद कर इसको नाम दिये चिट्ठागिरी, फिर भी कोशिश रहेगी