कल की सबसे मजेदार पोस्ट रही की बोर्ड के सिपाही नीरज दीवान की सुंदरी बचाऒ कथा। जीतेंद्र की शुरू की हुयी कथा को आगे बढा़ते हुये उन्होंने सुंदरी भैंस को खोजने के काम को आगे बढ़ाया। इसके लिये जगदीश भाटिया ने टिप्पणी भी की:-
हमेशा गंभीर विषयों पर पूरे अत्मविश्वास और जोश के साथ लिखने वाले नीरज भाई, कमाल का व्यंग लिखा है भाई, किसी भी तरह से एक शानदार साहित्यिक रचना। बहुत बधाई!!
सुंदरी बचाऒ अभियान में वे सारे लटके-झटके मिलेंगे आपको जो टेलीविजन के लगभग हर चैनेल में दिखते हैं आपको। निहायत बचकानी रिपोर्टिंग में पूरे देश को उलझाये रखना, विज्ञापन जुगाड़ना और हर मामले पर एक्सपर्ट से चर्चा करवाना आदि। खुद टेलिविजन से जुड़े रहने के कारण भी नीरज दीवन तमाम अंदरूनी लटके-झटकों से भी रूबरू कराते रहे:-
स्टूडियो में बातचीत जारी है. ”सुंदरी को बचाना है” का स्टिंग हर ब्रेक पर भैसे की डकार के साथ शुरू और खत्म होता है. स्क्रीन पर हां और ना के एसएमएस वाला ग्राफ़ दिखाया जा रहा है. फुल्ली फालतू बैठे लोगों के बीच यह प्रोग्राम रोमांच पैदा कर रहा है. जिसकी गवाही एसएमएस से आए स्करोल पर नाच रहे मैसेज दे रहे हैं. तभी पैनल प्रोड्यूसर को पता चलता है कि कुमारी छल्लो असेम्बली पहुंच चुकी है. लाइव के लिए तैयार हैं. गजोधर कंसोल पर बैठ जाता है. चाय आती है. चाय का स्वाद बदला-सा लगा है. गजोधर कारण पूछता है. चपरासी बताता है फुरसतिया जी की भैंस पिछवाड़े बंधी है. उसी को दुहकर चाय तैयार की है. गजोधर मुस्कुराता है. कंट्रोल रूम में सभी खिलखिला उठते हैं.
आज की दूसरी मजेदार पोस्ट में है अनुराग श्रीवास्तव(जिसे अनुराग जी ने अपने ब्लाग पर श्रीवस्तव लिख रखा है) की दुकान पर चौपट राजा पानी के बतासे खा रहे हैं। यहां भी प्रेस कांन्फेंस चल रही है। इसका पूरा आनंद उठाने के लिये भी शर्त है:-
जिस प्रकार मंदिर में जूते-चप्पल पहन कर जाना वर्जित होता है, उसी प्रकार इस पोस्ट को पढने के लिये दिमाग का इस्तेमाल करना वर्जित है।
आगे पढने से पहले अपना दिमाग कृपया यहां => ( ) <= रख छोड़िये। टोकन लेना मत भूलियेगा, कहीं ऐसा ना हो कि वापस जाते समय आप किसी और ही का दिमाग साथ ले कर चलते बनें।
यह लेख हाल की घटनाऒं पर व्यंग्य करता है जिसमें जरा-जरा सी बात पर सरकारी सम्पत्तियां फूक देना आम बात है:-
रेलवे मंत्रालय का नाम बदल कर ‘ऐंगर मैनेजमेंट मिनिस्ट्री’ रखा जायेगा। यह मंत्रालय देस के क्रुद्ध लोगों को अपना गुस्सा ठंडा करने की मदद करेगी। इसी में हम अपना रेलवे का इनफ़्रास्ट्रक्चर भी इस्तेमाल करेंगे। कम गुस्सा है तो आप रेलवे के डिब्बे में जाकर बल्ब वगैरह फोड़ लीजिये, अधिक नारजगी है तो सीसा-कांच तोड लीजिये और अगर बहुत अधिक और सामुदायिक गुस्सा है तो पूरी की पूरी बोगी फूंक डालिये।
उधर उन्मुक्तजी अपनी बहुत संक्षिप्त पोस्ट में अपनी शिक्षा प्रणाली की कमियों की तरफ़ इशारा करते हुये बताते हैं:-
केवल इम्तिहान में रट कर अच्छे नम्बर ले आना ही जीवन को सफल नहीं बना सकता - शायद यही हमारी शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी कमी है।
संजय बेंगाणी ने नरेंद्र मोदी को पसन्द करने का कारण बताते हुये लिखा:-
मोदी में ऐसा तो कुछ होगा की मीडिया, विपक्ष तथा खुद की पार्टीवालो के विरोध के बाद भी युवा तथा महिला वर्ग के वोटो की वजह से टिके हुए हैं. मुझे मोदी पसन्द हैं क्योंकि उनके पास राज्य के लिए दीर्घकालिन विजन हैं, क्योंकि वे कर्मठ है, क्योंकि वे अच्छे-बुरे परिणामो की जिम्मेदारी लेने से नहीं भागते, क्योंकि वे नौकरशाही तथा मुफ्तखोरों पर लगाम कसने में सफल रहे हैं, क्योंकि वे जाति के नाम पर वोट नहीं मांगते, क्योंकि वे मुफ्त बिजली का लालच देकर वोट नहीं मांगते, क्योंकि वे आरक्षण का लॉलिपोप दिखा कर वोट नहीं मांगते. क्योंकि वे बेदाग है (आप मात्र दंगों का दोषी मान सकते है). क्योंकि वे देशद्रोही संगठनों को बेदाग घोषित नहीं करते. क्योंकि उनमें योजनाओं को पूरा करवाने की क्षमता है. हमें ऐसा ही सख्त व साहसी स्वभाव वाला मुख्यमंत्री चाहिए. इस पसन्द को छत्रछाया माना जाता है तो वो भी सही, दूसरे मुख्यमंत्री क्या ये भी देने में सफल रहे हैं?
इस पर हम कुछ टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हैं। वैसे भी पहले भी देखा गया है कि लोकप्रिय शासकों के तमाम कारनामें उसके सत्ता से हटने के बाद पता चलते हैं।
देश के सबसे तेज चैनेल आज तक में वरिष्ठ निर्माता संजय सिंन्हा अपनी 'कार ठुकन कथा' के साथ से हिंदी ब्लाग जगत में शामिल हुये। 'जनसत्ता' और 'आज तक' जैसे हिंदी माध्यमों से जुड़े रहने के प्रमाण स्वरूप उन्होंने अपने ब्लाग का नाम तथा परिचय अंग्रेजी में ही दिया। शायद यह मान्यता है कि जो 'पंच' अंग्रेजी में है वह हिंदी में कहां! बहरहाल, अपनी पहली पोस्ट पर आयी टिप्पणियों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुये उन्होंने एक और अनुभव सुनाया। आशा है संजय सिन्हा जी अपने अनुभव नियमित रूप से बताते रहेंगे।
ई तो रही अभी सुबह-सबेरे की चिट्ठाचर्चा। इसके बाद हम लेते हैं नौकरी-पेशा वाला छोटा-मोटा ब्रेक। इसमें हमने गद्य पर हाथ साफ किया अब दोपहर को पद्य पर कुछ लिखेंगे। मनीष की पोस्ट तक के ब्लाग हमारे निशाने पर हैं। अरे खाली कविता नहीं लिखेंगे और भी सब होगा टीम टाम। आप तब तक बोर न हों इसलिये सुनते रहें चुटकुले, बूझते रहें पहेलियां और देखते रहें अपने कवि मित्रों के स्रजनगाथा में जाने के किस्से।
चलिये मिलते हैं दोपहर के बाद!
आज की टिप्पणी:-
१.टिप्पणी:अरे, ऐसा हँसी में फसाये कि हमारा टोकन ही कहीं गिर गया, अब क्या होगा!! :)
समीरलाल पानी के बतासे में
प्रति टिप्पणी:-होगा यही कि जो ले जायेगा आपका दिमाग वह मुंडलिया कहता पाया जायेगा। आपका तो बोझ हल्का हो गया। अब आराम से कायदे की पोस्ट लिखिये। आपका चेला भी आपका अनुसरण करेगा।
आज की फोटॊ
आज की पहली फोटो रामचन्द्र मिश्र के ब्लाग से और दूसरी प्रतीक की पोस्ट से। ऐसा लग रहा है कि मिसिर जी के ब्लाग पर शहतूत देखकर बसंती अपने को सजा-संवारकर शहतूत खाने आयी है:-
शहतूत
रंग दे बसंती
ध्न्यवाद आपका अनुपजी, आपने टिप्पणी तो दे ही दी चाहे जगह बदल गई हो.(जोगलिखी के स्थान पर चिट्ठाचर्चा) :)
जवाब देंहटाएंसनद रहे जब मोदी को हटाने के लिए वोट दिये जाएंगे उनमे मेरा वोट भी होगा.
"...शायद यह मान्यता है कि जो 'पंच' अंग्रेजी में है वह हिंदी में कहां!..."
जवाब देंहटाएंसंभवतः यह कारण नहीं है. ब्लॉगस्पॉट पर मेरा भी परिचय अंग्रेज़ी में ही है. वह इसलिए है कि ब्लॉगस्पॉट पर मेरा एक चिट्ठा अंग्रेज़ी में भी है. अगर मैं हिन्दी में परिचय लिखता हूँ तो वह अंग्रेज़ी चिट्ठे में भी हिन्दी में आएगा, और फिर तमाम एनकोडिंग की समस्याएँ आ जाएंगी..:(
@ रविरतलामी,
जवाब देंहटाएंमेरे साथ भी कुछ यही समस्या है अगर मैं अपने वर्डप्रैस.कॉम के चिट्ठे के प्रोफाइल में Display Name हिन्दी वाला चुनता हूँ तो वह मेरे सभी चिट्ठों (अंग्रेजी वाले सहित) पर हिन्दी में आ जाता है।
हाँ पर यह तो तय है कि संजय सिन्हा जी ब्लॉग का नाम हिन्दी में दे ही सकते थे।