शुक्रवार, दिसंबर 15, 2006

लेखक पटा न कीजिये सपनेहु में कभी गुमान

कुछ ऐसा हुआ कि चिट्ठाचर्चा नियमित रूप से अनियमित होने लगा। जिनको लिखने के दिन थे या तो व्यस्त हो गये या उनके कम्प्यूटर थोड़े से मस्त हो गये। कल भी कुछ ऐसा ही हुआ जब हमने अतुल को पटाया कि वे गुरुवार की चर्चा कर लें और जुमें की नमाज हम पढ़ लेंगे। अच्छे बच्चे की तरह अतुल तुरन्त तैयार हो गये। लेकिन जो हुआ वो कुछ ऐसा हुआ कि कल चिट्ठाचर्चा हम न कर पाये न किसी ने की। संजय बेंगाणी ने भी भारतीय बल्लेबाजी का अनुसरण करना बेहतर समझा जब नियमित बल्लेबाज अपना काम नहीं कर रहे हैं तो मध्यक्रम क्यों अपना पसीना बहाये। बहरहाल जब अतुल ने कल जो कारण बताये उनको पूरी तरह समझना हमें बाकी है। लेकिन इससे हमारे समीरलाल की आत्मा मेरे पास आ गयी थोड़ी देर के लिये और हमने ये कुंडलिया/मुंडलिया लिख मारी:-

लेखक पटा न कीजिये सपनेहु में कभी गुमान,
वो कब,कैसे बच जायेगा यह कौन सका है जान!
कौन सका है जान कि कुछ ऐसा सा हो जायेगा,
तुम बाट जोहते रह जाओगे वो लिखने ही न पायेगा,
लिखने ही न पायेगा तुम्हारा जी बोलेगा धक-धक
कह'फुरसत'कविराय इसमें ज्यादा क्या कर सकता है लेखक!


बहरहाल, आज के चर्चा का क्रम शुरू करते हुये जानकारी दे दी जाये हमारे कुंडलिया किंग समीरलाल पिछ्ले शनिवार को वाशिंगटन के एक मंदिर
में कथा की तरह कविता बांच आये। ताली की गड़गड़ाहट के बीच ताली पुराण बांचते हुये उनके तथा अन्य कवि गणों , श्रीमती बीना टोडी , श्री राकेश खंण्डेलवाल के, चित्र मय कविता पाठ आप देखिये उड़नतश्तरी में।

यह संयोग ही कहा जायेगा कि जब समीरलाल अपनी कविताऒं पर तालियां पिटवा रहे थे तब रविरतलामी के टून्स शायद टुन्न होकर गेंद पीटने का अभ्यास कर रहे थे। उधर चिट्ठा जगत के सबसे बाली उमर वाले साथी प्रेमेंन्द्र प्रताप अपने लम्बे लेख में पूछ रहे थे कि ये कब सुधरगे। यह लेख का ही प्रताप कहा जायेगा कि पंकज उनसे पहली बार सहमत होते नजर आये।

बिग बास ऐसा रियलिटी शो है जिसे आजकल काफ़ी देखा जाता है। इसके बारे में रमनकौल ने पिछ्ले हफ्ते लेख लिखकर बताया था। आज के किस्से जानिये कि क्या हुआ बिग बास में, किसने क्या किया और आगे क्या हो सकता है।

तकनीकी लेखों में मनीशा जहां बता रही हैं मजेदार जावा स्क्रिप्ट और एयरटेल के मोबाइल पर गूगल के बारे में वहीं अनुनाद बता रहे हैं यूनीकोड परिवर्तन के नये मार्ग के बारे में। इसी क्रम में जयप्रकाश मानस अपने लेखों के माध्यम से जानकारी दे रहे हैं कि विंकलागों के लिये सूचना प्रौद्यौगिकी ने कौन-कौन से सहायक उपहार प्रस्तुत किये हैं। लोक को स्पर्श करती वेबमीड़िया तथाआपके घर से आकाशवाणी
लेखों के माध्यम से मानस जी ने इंटरनेट के प्रसार के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।

दलितों के पूजा के अधिकार पाने की खबर के बारे में जानकारी दे रहे हैं प्रतीक। इस लेख पर कुछ रोचक टिप्पणियां भी हैं-देखना न भूलें।

गिरिराज जोशी पता नहीं क्या पढ़ने के लिये छत पर चले गये:-

हम तो यार बैठे थे पढ़नें की खातिर
पूनम की रात को छत पर जाकर
मौसम ने बदल दिया मिजाज अपना
कर दिया अंधेरा बदली ने आकर


इस मौके के लिये गुमनाम सूत्रों के हवाले से अफलातून जी ने अपनी आरजू भी बताई:-


मेरी आरज़ू है कि कोई मेरी खिड़की से झांके,
और मैं उनसे पूछूं,’मूंगफली खाओगे?’


इसी क्रम में पंकज कुमार तिवारी बता रहे हैं कि उनसे कहा गया है कि वे उनको भूल जायें गोया यादें भी ब्लैकबोर्ड पर चाक से लिखी इबारत हों जिसे कोई डस्टर से मिटा सकता है:-

लेकिन अब जबकि मुझे लगता है,
कि शायद मैं तुम्हें समझने लगा हूँ,
तो तुम एक पहेली की तरह नज़र आ रही हो।
शायद अब मैं इससे ज़्यादा तुम्हें नहीं समझ सकता।
अब तो तुम भी कुछ समझो,
कुछ तुम भी सोचो।


याद करने और भूलने का क्रम जारी है क़तील शिफाई की गज़ल में:-


वो दिल ही क्या जो तेरे मिलने की दुआ ना करे..
मैं तुझको भूल के ज़िन्दा रहूं, ये खुदा ना करे..
रहेगा साथ, तेरा प्यार, ज़िन्दगी बन कर..
ये और बात, मेरी ज़िन्दगी अब वफ़ा ना करे..


कोलेगेटिया दंतपंक्तियों के स्वामी, गीत गजल के शौकीन भाई अपना नाम तो लिखो अपने ब्लाग में!

पंकज बेंगाणी आजकल धुंआधार बैटिंग कर रहे हैं। कल उन्होंने कन्हैया को मवाली बताने वालों का हिसाब किया और आज समाजवादियों पर नजरें इनायत कीं। यह विडम्ब्ना है कि समाजवादी दल अपने उन आदर्शों से मीलों दूर हैं जिनके लिये उनकी परिकल्पना की गयी होगी। बहरहाल,यह लेख पढ़िये और मजा लीजिये।

रामचन्द्र मिसिर जी आरकुट के माध्यम से श्रुति अग्रवाल 'सरस' की कविता पढ़वा रहे हैं:-

स्वप्न हो गये बोझिल ,टूट चुके बंधन तो क्या,
राह कैसी भी विकट हो,स्थिर रहे जब मन तो क्या!


मिसिरजी के ही ब्लाग पर चित्र देखकर गाना अनायास याद आ रहा है:-

सब लाये फूल, बुढ्ढा गोभी लेकर आ गया।


इसके अलावा शशि सिंह एक बार फिर अपने वापस आने की खबर दी तथा भोजपुरी के अमर गीत सुनाने का क्रम जारी किया। मसिजीवीजी ने अपने पुस्तकों की सूची जारी की जिसे उन्होंने इस साल पढ़ा। महाभारत कथा में आगे जानिये कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य के बारे में।

अभिव्यक्ति ने नये वर्ष के आगमन में कवितायें प्रकाशित करनी शुरू की हैं। कल हमारे साथे रीतेश गुप्त ने नये वर्ष का अभिनन्दन करते हुये लिखा:-

एक ओर जश्न की पूरी तैयारी है
टंकी भर ली है और
डिस्को बुक कर ली है
दूसरी ओर किसान चढ़े हैं टंकी पर
जिंदगी को दांव पर लगाते
कर्ज माफी की गुहार और
अपनी व्यथा से
सरकार को अवगत कराते


उधर रागदरबारी का अगला भाग पोस्ट किया गया। इस बार आप जानिये कभी न उखड़ने वाले गवाह पंडित राधेलाल के बारे में:-


वैसे,'कभी न उखड़नेवाले गवाह' की ख्याति ही पं. राधेलाल की जीविका का साधन थी। वे निरक्षरता और साक्षरता की सीमा पर रहते थे और जरुरत पड़ने पर अदालतों में 'दस्तखत कर लेता हू,' 'मैं पढ़ा-लिखा नही हूं' इनमें कोई भी बयान दे सकते थे। पर दीवानी और फ़ौजदारी कानूनों का उन्हें इतना ज्ञान सहज रुप में मिल गया था कि वे किसी भी मुकदमें में गवाह की हैसियत से बयान दे सकते थे और जिरह में अब तक उन्हें कोई भी वकील उखाड़ नही पाया था। जिस तरह कोई भी जज अपने सामने किसी भी मुकदमे का फ़ैसला दे सकता है, कोई भी वकील किसी भी मुकदमे की वकालत कर सकता है, वैसे ही पं. राधेलाल किसी भी मामले के चश्मदीद गवाह बन सकते थे। संक्षेप में, मुकदमेबाजी की जंजीर में वे भी जज, वकील, पेशकार आदि की तरह एक अनिवार्य कड़ी थे और जिस अंग्रेजी कानून की मोटर पर चढ़कर हम बड़े गौरव के साथ 'रुल आफ़ ला' की घोषणा करते हुए निकलते है, उसके पहियों में वे टाइराड की तरह बंधे हुए उसे मनमाने ढंग से मोड़ते चलते थे।


फिलहाल आज की चर्चा में इतना ही। कल देबाशीष आगे की चर्चा करेंगे और रविवार को जीतू पता नहीं किसको भेजते हैं इस बार! इस बीच मध्याह्न चर्चा काफी के मग के साथ चलती ही रहेगी। मराठी, गुजराती, राजस्थानी ब्लाग के बारे में जानकारी मिले तो चौकियेगा नहीं!

आज की टिप्पणी:-


1.प्रतीक भाई
कई बार तो इस तरह के विवाद जबरन पैदा किये जाते हैं जैसे नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में पर्षों से दलित और पिछड़े आराम से दर्शन कर रहे थे परन्तु पूर्व मुख्यमंत्री को दलितो का उद्धार करने का शौक चढ़ा और ऐलान करवा दिया कि वे हरिजनों को श्रीनाथजी के मंदिर में प्रवेश करवायेंगे, उन्होने करवाया भी पर जबरन पैदा किये गये इस विवाद में कई दिनों तक नाथद्वारा में तनाव रहा था।
सागर चन्द नाहर

2.पहले तो आप यह बताइए कि आप गायब किधर हो जाते हो? आपकी तनख्वाह क्यों ना काटी जाए? :)
पंकज बेंगाणी

पहले तनख्वाह देना शुरू तो करें तब काटें।

3.हमें इन सब चीज़ों को ब्लैक या व्हाइट के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। राधा, कृष्ण, भीम, हिडिंबा, यह तो सब कहानियाँ हैं — इन को सच मानकर न तो इन की समसामयिक विषयों से तुलना की जा सकती है, न इन्हें आदर्श आचरण की परिधि में रखा जा सकता हैं। यदि आप के बच्चे युवा हों - विशेषकर पुत्रियाँ - तो आप भी शायद उन को रासलीलाओं से दूर ही रखने चाहेंगे। विहिप वालों का पुलिसिया व्यवहार पचता तो नहीं है, पर यदि यही काम सिटिज़न वेलफेयर कमेटी के नाम से कोई NGO करती तो शायद आप को आपत्ति नहीं होती। पुलिस से तो उम्मीद है नहीं, वे या तो किसी को पकडेगी नहीं, पकडेगी तो केवल पैसा लेने के लिए। इसलिए किसी हद तक सिटिज़न ऐकशन ठीक भी है, पर यहाँ जिस नाम के अन्तर्गत किया गया वह कुछ लोगों को अपाच्य है। यदि मज़दूर इकट्ठा हो कर किसी कंपनी का काम बन्द कराएँ या उसे लूटें या अवैध हड़ताल करें तो वह ठीक है।

फिर यह भी मुद्दा है कि रासलीला या प्रेमी युगलों का मिलन किस हद तक सार्वजनिक स्थानों में होना चाहिए और कितना पर्दे में? कितना इस में पारस्परिक इच्छा से होता है, और कितना छेड़छाड़ के दायरे में आता है? जहाँ हम पेप्सी-कोक या अन्य अमरीकी चीज़ों का विरोध करते हैं, वहीं कुछ लोग सार्वजनिक जगहों पर चुम्माचाटी का विरोध भी करें तो क्या बुरा है?

रमन कौल

आज की फोटो:-



आज की फोटो रामचन्द्र मिश्र के फोटोब्लाग से

गोभी का फूल
गोभी का फूल

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कवरेज, बिना बारी हुये. ऐसे मे हमें बता दिया करो महाराज, हमा भी कुछ मदद गार साबित हो सकते हैं:)

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  2. आप इतना अच्छा व्यंग्य करते हैं कि क्या कहें।


    पता भी चल जाता है और लैशमात्र भी बुरा नहीं लगता। काश दुसरे बुद्दिजीवी लोग इसे समझें।

    मैं बुद्धिजीवी तो नहीं पर समझ गया। :)

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  3. हमे लगा था मैच फिक्स हो गया है. खाँमखाँ अगर रन पीट लिए तो पैसा मारा जाएगा, इसलिए बिना कुछ किये पेवेलियन लौट गए. बादमें पता चला फिक्सींग का मामला नहीं था.

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