यही सोचकर आया, लेकिन चिट्ठाकार नदारद थे
इधर नजर दौड़ा कर देखा, और उधर नजरें डालीं
लेकिन केवल तीन संदेसे लेकर आये नारद थे
सबसे पहले,खुशी नहीं है महाशक्ति ने बतलाया
यद्यपि तिहरा शतक एक उनके ही हिस्से में आया
ढूँढ़ रहे चेतना, कल्पना में दिव्याभ व्यस्त होकर
लोकतेज ने बेघर होने का इक किस्सा बतलाया
इसके बाद घिरी जो बदली,उससे बून्द नहीं टपकी
घिरा अँधेरा और न कुछ भी चिट्ठों पर आकर बरसा
अब छुट्टी के बाद लिखेंगे उड़नतश्तरी के तेवर
उनको ही अंबार मिलेगा चिट्ठों का रत्नाकर सा
आज का चित्र: वाशिंगटन डीसी में २००६ का राष्ट्रीय क्रिसमस वॄक्ष
तस्वीर जानदार लायें हैं , राकेश भाई
जवाब देंहटाएं