रविवार, दिसंबर 24, 2006

कस्मे वादों से गूँज रहा है गली मोहल्ला

रवि परेशान हैं कि मोबाइल कंपनियों मोबाइलें तो बेचती हैं मगर यूजर्स मैनुअल में दो पन्ने मोबाइल मैनर्स के लिए नहीं रखतीं
आपका कोई पुराना मित्र, जिसके दर्शन महीनों से नहीं हुए होते हैं, अचानक-अकारण आपसे बे-वक्त मिलने आ पहुँचता है. यूँ ही आपके दर्शन करने. उसके हाथ में नया, चमचमाता हुआ, लेटेस्ट वर्जन का मोबाइल फ़ोन होता है. आपको देर से ही सही, समझ में आ जाता है कि दरअसल, आपके मित्र को नहीं, आपके मित्र के नए, कीमती, नए-फ़ीचर युक्त मोबाइल को आपसे मिलने की आवश्यकता थी.
मनीषा बता रही हैं कि भारत में रोजगार का बाजार उछाल भर रहा है, केवल सूचना प्रोद्योगिकी ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी
वर्ष 2007 की पहली तिमाही में यहां रोजगार के अवसरों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की संभावना है। वहीं, चीन में इस दौरान रोजगार में महज 18 प्रतिशत का इजाफा होगा यानी भारत इस मामले में एशिया में सबसे आगे है।
भागमभाग देख कर भाग खड़े हुये शशि फिल्म से नाखुश हैं पर फिर भी कहते हैं
जिस तरह मरा हाथी भी सवा लाख का होता है उसी तरह प्रियदर्शन की बुरी फिल्म भी दर्शकों के लिए हमेशा से पैसा वसूल हैं. तीन घंटे अगर आप अपने दिमाग के बगैर गुजारा कर सकते हैं तो इस समीक्षा को भूलकर सिनेमाघर की तरफ रूख किया जा सकता है.
तरकश के उभरते चिट्ठाकार पुरस्कार आयोजन के लिये सरगर्मी तेज़ है। सब प्रचार पर निकले हैं,
चुनाव का दौर है, देखो चारों ओर
सफेद कपडे पहन के घूम रहे हैं चोर।
घूम रहे हैं चोर, मचा रहे हैं हल्ला गुल्ला
इनके कस्मे वादों से गूँज रहा है गली मोहल्ला।
इन रेलमपेल में भी नायाब पोस्ट लिख बैठै शुकुल जी, उनके हर पोस्ट की हर लाईन पर वाह वाह करने को दिल करता है, कुछ उल्लेखनीय कथन
  • जैसे कि असफल लेखक श्रेष्ठ आलोचक की कुर्सी हथिया लेता है वैसे ही कभी इनाम न पाया हुआ व्यक्ति हमेशा बढ़िया तरह से बंटबारा कर सकता है।
  • इंडीब्लागीस में जो लोग अभी तक इनाम पाये हैं उन लोगों ने इनाम पाने के बाद सबसे पहला काम यह किया है कि लिखना छोड़ दिया या कम कर दिया। आलोक, अतुल, शशिसिंह इसके गवाह हैं। डर यही है कि उभरता हुआ चिट्ठाकार कहीं उखड़ता हुआ चिट्ठाकार न बन जाये!
  • अब मुन्ने की अम्मा हैं, मुन्ने के बापू हैं लेकिन मुन्ना कहीं दिखता नहीं। ये तो ऐसे ही है कि किसी विकास और शील रहित देश को कोई कहे कि वो विकासशील देश है।
  • मजाक क्या पद और गोपनीयता की शपथ है जो हम इसे खाकर भूल जायें। बिना मौज लिये तो हम सांस भी नहीं ले पाते। इहै हमार इस्टाइल बा!
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